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Written By WD

कविता : दिल बंजारा गाए

कविता : दिल बंजारा गाए - Poem
निशा माथुर 
 
दिल बंजारा गाए,  
सरहद पे, दिल बंजारा गाए । 
सीने में एक हूक-सी उठती 
जाने किस घड़ी, सांस थम जाए, 
दिल बंजारा गाए ...।।
 

 
पहला प्यार मेरे देश की मिट्टी, 
जिसका कण-कण प्रियतमा ।
फुर्सत के लम्हों में दिल,  
रूह से पूछे, तुम कैसी हो मेरी प्रिया ।।
 
खामोश हवाओं संग लिख, 
लिख भेजे, कैसी प्यार भरी चिट्ठियां।
मां के संग बचपन को बांटे, 
और फिर सरहद की खट्ठी-मिट्ठियां ।।
 
बेताब निगाहें पल-पल बूढ़े, 
बाप को ढूंढे, बच्चे सपनों में पलते ।।
जिगर को बांध फिर मोहपाश, 
सिपाही, वतन की राह पे चलते।
 
फिर भी दिल बंजारा गाए ..
सीने में एक हूक सी उठती,   
जाने, किस घड़ी सांस थम जाए ।।

प्रश्नचिन्ह क्यों बनी खड़ी हैं, 
देश की सरहद और सीमाएं ।
सिंहासन ताज के लिए टूट रहीं ,
रोजाना कितनी ही प्रतिमाएं ।।
 
अटल खड़ा वो द्वार,
देश के सामने, बैरी चक्रव्यूह - सी श्रंखलाएं ।
रण का आतप झेल, मस्ती, खेल,
हाथ कफन, लाखों प्रभंजनाएं ।


फिर भी दिल बंजारा गाए…
सीने में एक हूक सी उठती, 
जाने किस घड़ी सांस थम जाए।
 
क्षमा मांग तोड़े मोह का बंधन, 
नीड़ का करता तृण-तृण समर्पित ।
भाल पर मलता मां-चरणों की धूरी,
तन क्या मन तक करता अर्पित ।।
 
सिंह-सी दहाड़, शंखनाद सी पुकार, 
धूल-धुसरित मिट्टी से सुवासित, 
मार भेदी को बाहुपाश से फिर,
कर हस्ताक्षर, नाम शहीदों में चर्चित।।
 
फिर भी दिल बंजारा गाए ..
सीने में एक हूक सी उठती 
जाने किस घड़ी सांस थम जाए।।