शनिवार, 27 अप्रैल 2024
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एक नई सुबह के लिए देर रात चला सरकारी जश्न

एक नई सुबह के लिए देर रात चला सरकारी जश्न - My Blog
कुशल, सक्षम  और बेहतरीन प्रशासन के चलते केंद्र सरकार ने समय पर ही दो साल पूरे कर लिए हैं और इसलिए सरकार दो साल पूरे होने का जश्न भी मना रही है। वैसे कुछ समय पहले तक सरकार, उत्तराखंड में बागियों को मना रही थी। ये पूर्ण बहुमत वाली सरकार है इसलिए “मनाने” और “मनवाने” में विश्वास रखती है।


“मनाने और मनवाने” इन दोनों कार्यक्रमों की जानकारी, जनता को इतवार को होने वाली “मन की बात” के जरिए दे दी जाती है। यह सरकार शुरू से ही संवेदनशील होने का दावा करती आई है और इसी का सबूत देते हुए इस सरकार ने अपने दो साल पूरे होने पर इंडिया – गेट पर जश्न का आयोजन किया, ताकि जो लोग इस भीषण गर्मी में कुंभ में जाने और नहाने से रह गए थे वो विकास की इस “बहती और आरोप सहती” गंगा के आयोजन में “डिजिटल- डुबकी” लगाकर कुछ पुण्य अर्जित कर सकें।
 
जश्न मनाने का सरकार की सफलता या असफलता से ज्यादा “लेना-देना” नहीं होता है। और ना ही इसका “लेना-देना’, “देना बैंक” से है। इसका “लेना-देना” सरकार के विज्ञापन-बजट से होता है। जितना ज्यादा बजट, उतना ही बड़ा जश्न। जितना बड़ा जश्न, उतनी ही बड़ी कवरेज। जितनी बड़ी “कवरेज”, उतना ही ज्यादा “आउटरेज” और जितना ज्यादा आउटरेज, उतनी ही ज्यादा “टीआरपी”। 
 
यह एक ईमानदार सरकार है इसलिए जनता से धोखा करते हुए घोटाले करके खजाना खाली करने में डरती है। इसलिए पूर्ण पारदर्शी तरीके से “निविदा” निकालकर सरकार के दो साल “विदा” होने का जश्न मनाकर, खजाना खाली किया जा रहा है। “मेक इन इंडिया”, “स्किल इंडिया”, “डिजिटल इंडिया”, “स्टार्ट अप इंडिया” जैसे प्रोजेक्ट स्टार्ट करने के बाद भी मीडिया या विपक्ष में से कोई भी सरकार की पीठ नहीं थपथपा रहा था इसीलिए सरकार का प्याज और दाल के दाम की तरह ही इंडिया-गेट पर जाकर खुद की पीठ, इंडिया-गेट से खुजाना वाजिब था।
 
जश्न मनाने के लिए बॉलीवुड और अन्य क्षेत्रों की बड़ी-बड़ी हस्तियों को बुलाया गया, क्योंकि “सबका साथ सबका विकास” की अवधारणा को लेकर चलने वाली सरकार का मानना है कि “असली मजा” सबके साथ आता है। इस जश्न में अमिताभ बच्चन भी शामिल हुए क्योंकि सरकार के “कद” का प्रतिनिधित्व केवल “सरकार-राज” ही कर सकते थे।  
 
सूत्रों के अनुसार, अमिताभ का कार्यक्रम पहले से तयशुदा था ताकि उन्हें समय पर “घर वापसी” करने में कोई तकलीफ ना आए। अमिताभ बच्चन अपने बंगले “जलसा” से सीधे इस “सरकारी जलसा” में भाग लेने के लिए पहुंचे। अमिताभ ने इस कार्यक्रम में “बेटी-बचाओ” वाले हिस्से को संबोधित किया, हालांकि ज्यादातर लोगों का मानना है कि अभिषेक बच्चन के करियर को देखते हुए अमिताभ को अब “बेटा-बचाओ”  अभियान में भी भाग लेना चाहिए।
 
करोड़ों रुपए खर्च करके हमें बताया जा रहा है कि अब “हमारा देश बदल रहा है”। हम भारतीयों की भूलने की आदत को देखते हुए यह जिम्मेदार सरकार हमें बार बार याद दिला रही है कि देश बदल रहा है। अब काले धन और अच्छे दिन का इंतजार करना मूर्खता है। अगर इंतजार करना ही है तो प्रधानमंत्री की अगली विदेश यात्रा या “मन की बात” के अगले एपीसोड का करें। वैसे हमारे नेता इंतजार करवाने के लिए कुख्यात हैं लेकिन हमारे प्रधानमंत्री इन दोनों चीजों के लिए ज्यादा इंतजार नहीं करवाते। क्योंकि समय का पहिया और हमारे प्रधानमंत्री हमेशा घूमते रहते हैं।
 
विपक्ष की कसक, इस सरकारी जश्न की भरसक निंदा करने में निकल रही हैं। निंदा करने का उनका इतिहास और ट्रैक रिकॉर्ड, उनके द्वारा किए गए घोटालों की तरह ही किसी से छुपा हुआ नहीं है। उन्होंने तो मात्र निंदा करने के लिए प्रधानमंत्री तक नियुक्त कर रखा था। विपक्ष का कहना है कि सरकार को जश्न मनाने से पहले उनके नेताओं को सदन में चर्चा के लिए मनाना चाहिए, इस सरकार को जश्न मनाने का कोई नैतिक अधिकार नहीं हैं क्योंकि जो सरकार दो साल में एक अदद घोटाले को तरस गई हो, उसे जश्न मनाने से ज्यादा खैर मनाने की जरूरत है। और इसके लिए अमिताभ बच्चन की जगह कैलाश (अनुपम नहीं) खेर को बुलाना उचित रहेगा।
 
विपक्ष के एक नेता ने अपनी “जाती” टीवी पर बताए जाने की शर्त पर बताया कि सरकार ने दो साल में एक भी घोटाला ना करके पिछली सरकार के इतनी मेहनत से अर्जित किए गए घोटालों की “औसत” और “स्ट्राइक रेट” को उनकी राजनीति की तरह नीचे गिरा दिया है। पावर में होते हुए भी इस सरकार को “पावर प्ले” का इस्तेमाल करना नहीं आ रहा है। और यह सरकार आम भारतीय की अपेक्षा और “सरकारी- मानकों” पर खरी नहीं उतर पा रही है, इसलिए अब हमें सड़क पर उतरना पड़ेगा। 
 
साथ ही साथ विपक्ष ने सरकार की ये कहकर भी आलोचना की, कि इस सरकारी जश्न का नाम “एक नई सुबह” रखा गया था, लेकिन जनता को भ्रमित करने के लिए ये पूरा कार्यक्रम रात को आयोजित किया गया। इससे पता चलता है कि  सरकार की कथनी और करनी में “दिन-रात”  का अंतर है।