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फ्री सेक्स की गाली सिर्फ महिलाओं को क्यों ?

फ्री सेक्स की गाली सिर्फ महिलाओं को क्यों ? - My Blog
हाल ही में कविता कृष्णन द्वारा जेएनयू और जादवपुर यूनिवि‍र्सिटी की छात्राओं पर लगे आरोप पर लिखा लेख चर्चाओं में आया... और उससे भी ज्यादा ज्यादा चर्चाओं में आया फ्री सेक्स। सेक्स हो या फ्री सेक्स, शब्द और विषय हमेशा से ही घूंघट में बैठी किसी नवविवाहिता सा रहा है, जो शर्म और लिहाज के आवरण से ढंके रहने के बावजूद दुनिया के आकर्षण का केंद्र होती है।
 
कविता कृष्णन का कहना था - ‘लड़कियों को फ्री सेक्स की गाली क्यों दी जाती है, पुरुषों को क्यों नहीं? क्योंकि माना जाता है कि पुरुषों को फ्री सेक्स का हक है।’ पुरुषों के लिए फ्री सेक्स कॉम्लीमेंट जैसा है। सही मायने में राजनीतिक तौर पर बेबाक महिलाओं को शर्मिंदा करने के लिए उन्हें रं...या फ्री सेक्स करने वाली कहा जाता है। 
 
इस विषय पर बात करने से पहले पहली बात तो मैं यह बता दूं कि इस विषय पर मेरी प्रतिक्रिया या विचार न तो किसी के पक्ष-विपक्ष में है और ना ही हिंदूवाद के खिलाफ। फिर भी मैं यह कहना चाहूंगी कि विवादास्पद होने के बावजूद अगर सेक्स एक सामान्य बात हो सकती है तो फ्री सेक्स क्यों नहीं। दूसरी बात, फ्री सेक्स का सीधा सा मतलब सहमति से सेक्स करना है, तो यह कहा जा सकता है कि, ज्यादातर पति-पत्नियों के बीच सेक्स नहीं फ्री सेक्स ही होता होगा। 
 
लोग अपने घर की महिलाओं चाहे वह मां हो, बहन, बेटी या पत्नी... बेबाकी से फ्री सेक्स की गाली देते हैं, जबकि वे जानते हैं कि उनके घर की वे महिलाएं ऐसा नहीं करती या करती हैं। पौरुषता, पितृसत्तात्मकता को स्थापित करने की बौखलाहट उनकी इन गालियों में साफ झलकती है। वे जानते हैं कि सम्मान और चरित्र महिलाओं का अमूल्य धन है और उन्हें दबाने कब्जे में करने के लिए इसी पर चोट करना सही होगा...जो दरअसल गलत है। इस बौखलाहट में वे यह भी नहीं समझ पाते कि इन खोखली बातों से स्त्री का सम्मान तो वहीं का वहीं होगा लेकिन पुरुष का स्तर और सम्मान जरूर कम होगा।
 
अब बात करें फ्री सेक्स के उस मुद्दे की, जिसकी गर्माहट अपने चरम पर है, तो यदि मनुष्य की बनाई सभी मान्यताओं, नैतिकता के पैमानों और तमाम धर्म, संप्रदाय और ब्ला-ब्ला जैसी चीजों को दरकिनार करके देखें तो हम पाएंगे कि संसार के समस्त जीव-जंतु और पशु-पक्षी फ्री सेक्स का ही समर्थन करते हैं। निर्लिप्त भाव से सोचा जाए, तो सेक्स सिर्फ एक शब्द है, क्रिया है या फिर शारीरिक अथवा आत्मिक प्रेम जताने का तरीका। प्रकृति यह नहीं जानती कि आप यह क्रिया जिसके भी साथ कर रहे हैं, वह कौन है... आपका पति, प्रेमी या कोई और। यह धारणाएं और पैमाने तो इंसान ने ही बनाए हैं, कि पति के साथ सेक्स नैतिक है और फ्री सेक्स अनैतिक।

यहां सवाल यह भी उठता है कि क्या पति के साथ फ्री सेक्स संभव ही नहीं ?... विचार मंथन की असली बात यह है कि स्त्री के लिए बनाई गई नैतिक धारणाएं और पैमाने, पुरुषों के संदर्भ में भी उतनी ही पुख्ता और जोर देकर नहीं समझाए जाते जितना महिलाओं के लिए। यदि ऐसा होता तो शायद फ्री सेक्स को लेकर कोई गाली पुरुषों के लिए भी बनी होती

 
 
जहां तक कविता कृष्णन की बात का सवाल है, तो यही सवाल दुनिया भर की करोड़ों औरतों के मन भी है और जीवन भर रहेगा कि आखिर फ्री सेक्स की गालियां महिलाओं के लिए ही क्यों, जबकि फ्री सेक्स करने के सारे वैध और अवैध अधिकार एक पुरुष अपने पास रखता आया है। दूसरी बात यह, कि अगर फ्री सेक्स पुरुषों के लिए गाली नहीं बल्कि उनकी पौरुषता और शान का प्रतीक है, तो महिलाओं के लिए स्वच्छंदता का प्रतीक क्यों नहीं।
 
भारत जैसे देश में, जहां 21वीं सदी में भी महिलाओं खुद अपने पति परमेश्वर के द्वारा रेप की जाती हैं, वहां फ्री सेक्स के सारे साइट्स सिर्फ एक पुरुष के हो सकते हैं, इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता।  
 
और खास तौर से उसे देश में, जहां सदियों से स्त्रीजाति के संदर्भ में शर्म, लिहाज, गरिमा, सम्मान, मर्यादा और न जाने कितने ही भारी भरकम शब्दों को न केवल कागजों पर उकेरा गया है बल्कि स्त्री की देह में अंदर तक उतार दिया गया है...वहां उसी स्त्री के प्रति दी जाने वाली फ्री सेक्स संबंधित गालियां भी उतनी ही पुरानी है। इन दोनों ही बातों में बड़ा विरोधाभास साफ नजर आता है। इन दोनों बातों के एक पक्ष को ही सही मान लिया जाए, तो दूसरा वहीं निराधार साबित हो जाएगा। 
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