गंदा है पर धंधा है, यह पंक्ति एक फिल्म के गाने की है, जिसमें अंडरवर्ल्ड के धंधे को लेकर कहा गया है कि
‘गंदा है पर धंधा है ये’
अब यह पंक्ति अगर वर्तमान में मीडिया के लिए इस्तेमाल की जाए जो शायद गलत नहीं होगा। पिछले दिनों से लगातार चल रहे मीडिया ट्रायल ने मीडिया की यही तस्वीर पेश की है। मीडियाकर्मी सबसे ज्यादा सनसनी, सबसे पहले और सबसे तेज दिखाने के चक्कर में इस हद तक नौटंकी करने लगे उनका असल चेहरा दुनिया के सामने उजागर हो गया।
सुशांतसिंह राजपूत की मौत और बॉलीवुड ड्रग माफिया को लेकर जिस तरह से मीडिया ने ट्रायल किए और खबरें दिखाईं उसके बाद कई ऐसे अभिनेता भी थे जो इन ट्रायल से आहत हो गए। अब उन्होंने रिपब्लिक के अर्नब गोस्वामी, प्रदीप भंडारी और टाइम्स नाऊ के न्यूज एंकर राहुल शिवशंकर और नविका कुमार के खिलाफ अदालत का रुख कर लिया है।
मीडिया को बॉलीवुड के खिलाफ यह ट्रायल महंगा पड़ गया। इन पत्रकारों को शाहरुख खान, सलमान खान, आमिर खान, अजय देवगन, अक्षय कुमार, अनिल कपूर, रितिक रोशन, करन जोहर और फरहान अख्तर समेत कई अभिनेताओं और फिल्म कंपनियों ने याचिका दायर की है।
अभिनेताओं ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर इन्हें बॉलीवुड के ख़िलाफ़ गैर-ज़िम्मेदाराना और अपमानजनक टिप्पणी करने से रोकने की मांग की है।
ऐसे में अब मीडिया के लिए अपने गिरेबां में झांकने का वक्त आ गया है कि वे किस तरह की और किस स्तर की पत्रकारिता करना चाहते हैं। चीख-पुकार वाली एंकरिंग, कानफोडू बहसें और नौटंकी वाली रिपोर्टिंग कर के मीडिया का तमाशा बनाना चाहते हैं या सिरियस नोट पर गरिमा के साथ पत्रकारिता कर इसे चौथा स्तंभ बनाए रखना चाहते हैं।
मीडिया के लिए यह सोचने का समय जरुर है, हालांकि पिछले दिनों मीडिया ने कई ऐसे मुद्दों पर आवाज उठाई जिन्हें न उठाया जाता तो वे गर्त में चले जाते और गुम हो जाते, उन तमाम राष्ट्रीय घटनाओं में जान फूंककर मीडिया ने उन्हें मुद्दा बनाया। शासन में निरंकुशता न आए, अपराधों पर लगाम लगे और सरकारों पर दबाव बना रहे यह सब मीडिया के माध्यम से ही संभव है। लेकिन मीडिया की गलती यह है कि इन मुद्दों को पेश करने का उसका तरीका काफी गलत और हैरतअंगेज था। इन्हीं मुद्दों को मीडिया पूरी संवेदनशीलता और गरिमा के साथ प्रस्तुत करती तो बात कुछ और होती।
हालांकि यह भी सही है कि बॉलीवुड भी तभी तमतमाया और एकजुट होकर सामने आया जब मीडिया ने उसके ऊपर कीचड़ उछाला। बॉलीवुड को इसलिए भी संदिग्ध नजरों से देखा जाना चाहिए, क्योंकि इसके पहले वो कभी किसी दूसरे मुद्दे पर मुखर नहीं हुआ और सामने नहीं आया।
चाहे वो कश्मीर में धारा 370 की बात हो, चीन के साथ तनातनी की बात हो, पाकिस्तान से संबंधों की बात हो। शाहीन बाग हो या दिल्ली दंगों या देश में कोरोना जैसे गंभीर संक्रमण की बात हो। बॉलीवुड ने कभी इन पर अपनी राय जाहिर नहीं की। न कोई बयान जारी किए और न ही किसी मामले में अपनी देशभक्ति ही दिखाई। वहीं जब फिल्मों के लिए मुद्दे उठाने की बात हो तो यही बॉलीवुड ऐसे तमाम विषयों पर फिल्में बनाकर मोटी कमाई करता है।
जब इन्हें अपनी फिल्मों का प्रमोशन करना हो तो यह मीडिया को हंस-हंसकर अपने इंटरव्यू देते हैं। लेकिन जब देशहित में आम लोग उनकी राय और पक्ष जानना चाहते हैं तो यह गायब हो जाते हैं। लगता है इन्हें देश के आंतरिक और बाहरी मुद्दों से कोई लेना-देना ही नहीं है। लेकिन जब बात खुद उन्हीं के ऊपर आती है तो वे एकजुट भी होते हैं और नोटिस लेकर हाईकोर्ट भी पहुंच जाते हैं।
ऐसे में मीडिया और बॉलीवुड दोनों को अपनी-अपनी जिम्मेदारियों को समझना होगा। दोनों में खामियां है और दोनों में सुधार की गुंजाइश है।
(इस लेख में व्यक्त विचार/विश्लेषण लेखक के निजी हैं। इसमें शामिल तथ्य तथा विचार/विश्लेषण 'वेबदुनिया' के नहीं हैं और 'वेबदुनिया' इसकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं लेती है।)