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Written By WD

पॉकेटमनी का बढ़ता चलन

मेरी पॉकेटमनी, मेरी कमाई

पॉकेटमनी का बढ़ता चलन -
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करियर की डगर पर सफलता पा लेने और कमाई की ज़द में आने से पहले लगभग हर युवा पॉकेटमनी पर निर्भर करता है। पॉकेटमनी अर्थात वह धन जो उन्हें ज्यादातर सीमित मात्रा में माता-पिता से प्राप्त होता है।

हालाँकि हमारे देश में पॉकेटमनी का चलन अब ज्यादा बढ़ गया है। इसका एक कारण माता-पिता दोनों का कामकाजी होना भी है। बहरहाल यह धन बच्चों को उनके आवश्यक खर्चों के लिए दिया जाता है।

इनमें से रोज रेस्तराँ तथा तफरीह में पॉकेटमनी खर्च करने वाले बच्चों का प्रतिशत थोड़ा ही होता है। ज्यादातर बच्चे परिवहन, चाय-पानी, किताबों तथा अन्य जरूरी चीजों के लिए जेबखर्च लेते हैं। खैर... आज एक और नया चलन जो देखने में आ रहा है, वह है खुद की पॉकेटमनी खुद जुटाना। इसके लिए युवा छोटा-मोटा काम करके अपने खर्चों के लिए पैसा निकालते हैं। ये युवाओं की पसंद है या मजबूरी तथा वे किस तरह से पॉकेटमनी जुटाते हैं? आइए जानते हैं, उन्हीं से।

  "जेबखर्च खुद कमाने की आदत आपको पैसे की कद्र करना सिखाती है। साथ ही इससे आप समय, धन एवं स्थितियों का प्रबंधन करना भी सीखते हैं।" कहती हैं आईटी फील्ड से जुड़ीं पूर्वा कुलकर्णी।      
एलएलबी की छात्रा पूजा हिरदे के अनुसार "इस मामले का एक पहलू यह भी है कि यदि कभी बच्चे अपने बूते पर पॉकेटमनी जुटाना चाहते भी हैं तो माता-पिता का तर्क होता है- पहले पढ़ाई पूरी कर लो फिर कोई काम करना।

वरना पढ़ाई पर असर पड़ेगा और एक हद तक यह बात सही भी है। लेकिन यह भी सही है कि अपने तईं जेबखर्च जुटाने की भावना आपके आत्मविश्वास में इज़ाफा करती है।

अतः होना यह चाहिए कि जेबखर्च खुद जुटाने की भावना आपमें हो, लेकिन उसका असर पढ़ाई पर न पड़े। साथ ही आपको जो भी जेबखर्च मिले उसे यूँ ही खर्च कर देने की बजाय आप उसका सही उपयोग करें।

मुझे आठवीं कक्षा से पॉकेटमनी मिल रही है और मैं उसे जमा करके रखती थी। आज जब मैं खुद भी कुछ पैसा पढ़ाई के साथ अर्जित कर रही हूँ तब मेरी बचत की वह आदत फायदेमंद साबित हो रही है और आज भी मैं फिजूलखर्च की बजाय बचत को प्राथमिकता देती हूँ।"

"जेबखर्च खुद कमाने की आदत आपको पैसे की कद्र करना सिखाती है। साथ ही इससे आप समय, धन एवं स्थितियों का प्रबंधन करना भी सीखते हैं।" कहती हैं आईटी फील्ड से जुड़ीं पूर्वा कुलकर्णी। पूर्वा कहती हैं कि इस बात का ध्यान रखना जरूरी है कि माता-पिता जो जेबखर्च बच्चों को दे रहे हैं उसका उपयोग बच्चे किस तरह से कर रहे हैं।

यदि माता-पिता को लगता है कि बच्चे धन का अपव्यय कर रहे हैं तो वे उनके जेबखर्च पर तुरंत अंकुश लगा सकते हैं। वैसे चाहे आपकी आर्थिक परिस्थिति कैसी भी हो यदि आप अपने बल पर थोड़ा-सा भी कुछ अर्जित करते हैं तो यह आपको कई तरह की चीजें सिखा देता है।

मैं खुद दसवीं कक्षा से अपने जेबखर्च के लिए ट्यूशन्स कर रही हूँ और मैं मानती हूँ कि मैंने इससे धन के प्रबंधन से लेकर उसे संभालने की जिम्मेदारी तक के बारे में काफी कुछ सीखा है। मेरे माता-पिता ने भी मेरी इस आदत को बढ़ावा दिया और मुझे हमेशा प्रोत्साहित किया है।