राय साहब काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त कर छात्र राजनीति में सक्रिय रहते हुए, ऐतिहासिक जयप्रकाश आंदोलन के नायकों में रहे। दैनिक 'आज' में बांग्लादेश मुक्ति संग्राम का आंखों देखा वर्णन लिखकर आपने अपनी पत्रकारीय पारी की एक सार्थक शुरुआत की। युगवार्ता फीचर सेवा, हिन्दुस्तान समाचार संवाद समिति में कार्य करने के बाद आप 'जनसत्ता' से जुड़ गए। 'जनसत्ता' में एक संवाददाता के रूप में कार्य प्रारंभ कर वे उसी संस्थान में मुख्य संवाददाता, समाचार ब्यूरो प्रमुख, संपादक : जनसत्ता समाचार सेवा के पदों पर रहे।
आप नवभारत टाइम्स, दिल्ली में विशेष संवाददाता भी रहे। प्रथम प्रवक्ता के संपादक पद पर रहने के बाद अब आप 'यथावत' पत्रिका के संपादक हैं। आप देश की अनेक सामाजिक संस्थाओं से जुड़े हैं जिनमें प्रज्ञा संस्थान, युगवार्ता ट्रस्ट, दशमेश एजुकेशनल चेरिटेबल ट्रस्ट, इंडियन नेशनल कमीशन फॉर यूनेस्को, प्रभाष परंपरा न्यास, भानुप्रताप शुक्ल न्यास के नाम प्रमुख हैं।
आपकी सामाजिक सेवाओं और पत्रकारीय योगदान के लिए आपको कई सम्मानों से नवाजा गया है जिनमें भगवान दास जनजागरण पत्रकारिता पुरस्कार, हिन्दी अकादमी दिल्ली की ओर से पत्रकारिता पुरस्कार, माधवराव सप्रे संग्रहालय का पत्रकारिता सम्मान, सत्याग्रही सम्मान जयपुर, विकल्प संस्था का पत्रकारिता सम्मान प्रमुख हैं।
आपने कई पुस्तकें लिखी हैं जिनमें रहबरी के सवाल (पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर की जीवनी), मंजिल से ज्यादा सफर (पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह की जीवनी), काली खबरों की कहानी (पेड न्यूज पर केंद्रित), भानुप्रताप शुक्ल- व्यक्तित्व और विचार प्रमुख हैं।
भारतीय पत्रकारिता की उजली परंपरा के नायक के रूप में रामबहादुर राय आज भी निराश नहीं हैं, बदलाव और परिवर्तन की चेतना उनमें आज भी जिंदा है। स्वास्थ्यगत समस्याओं के बावजूद आयु के इस मोड़ पर भी वे उतने ही तरोताजा हैं।
(मीडिया विमर्श में संजय द्विवेदी)