मंगलवार, 23 अप्रैल 2024
  • Webdunia Deals
  1. धर्म-संसार
  2. व्रत-त्योहार
  3. मकर संक्रां‍ति
  4. Makar Sankranti Gujrat
Written By

गुजरात की मकर संक्रांति के मजे ही निराले हैं...पढ़ें दिलचस्प आलेख

गुजरात की मकर संक्रांति के मजे ही निराले हैं...पढ़ें दिलचस्प आलेख - Makar Sankranti Gujrat
- रेणुका शास्त्री
 
पुरुष प्रधान देश होने के कारण हमारे त्योहार तक पर इसका प्रभाव देखा जा सकता है। दीपावली जैसे बड़े पर्व पर साफ-सफाई में महिलाओं की भूमिका जितनी अहम होती है, क्या पटाखे फोड़ने में उन्हें उतनी स्वतंत्रता मिलती है? मगर कहीं-कहीं परंपरागत रूप से आज तक कुछ त्योहारों में महिलाओं का शामिल होना, ऊधम करना, मौज-मस्ती करना पुरुषों की तरह वाजिब है। यहाँ बात हो रही है मकर संक्रांति पर्व की।
 
जी हां, गुजरात में मकर संक्रांति का पर्व महिलाओं के लिए भी मौज-मस्ती का दिन होता है। हालांकि अन्य प्रदेशों में इस दिन गली-गली गिल्ली-डंडा खेला जाता है, मगर गुजरात में घर-घर लोग पतंगबाजी का मजा लेते हैं। इस दिन पूरा परिवार घर की छत पर जमा हो जाता है। यदि आसमान से नीचे देखा जा सके तो पता चलता है कि सिर्फ पुरुष वर्ग ही नहीं महिलाएं भी पतंग उड़ा रही हैं।
 
गुजरात में महिलाओं को पतंग उ़ड़ाना बचपन से सीख में मिलता है। तिल्ली के लड्डू, मूंगफली की पट्टी बनाने के साथ वे पतंगबाजी में भी निपुण होती हैं। मकर संक्रांति (गुजरात में इसे 'उत्तरायण' पर्व कहा जाता है) के आते ही पूरा परिवार पतंग और डोर लिए घर की छत पर जा पहुँचता है और जब वापस नीचे उतरता है तो रात हो चुकी होती है। हालाँकि रात में भी कैंडल पतंग संक्रांति की रात का संदेश देती तारों के बीच झिलमिलाती है।
 
गुजरात की हर सोसायटी (कॉलोनी) घर की छत पर भरी नजर आती है। इसमें अपने पिता, भाई या पति, ससुर, देवर, जेठ के साथ पतंग उड़ाती घर की महिला में भी वही उत्साह देखने को मिलता है, जो कि पुरुषों में। पूरे उल्लास के साथ आसमां पर छेड़खानी देर तक की जाती है। आमतौर पर अपनी सखी-सहेलियों के साथ मौज-मजा, हंसी-ठिठोली करने वाली हर लड़की इस दिन अपनी पतंग से किसी दूसरी पतंग की छेड़खानी करती है। फिर किसी एक सोसायटी की पतंग दूसरी सोसायटी की जयाबेन काट देती है और खुशी के मारे उछल पड़ती है- 'काट्यो छे' और विजेता-सी चमक चेहरे पर आ जाती है।
 
हमारे समाज में महिलाओं की ऐसी स्वतंत्रता के पर्व चंद ही हैं। मगर बावजूद इसके समय बदलने के साथ पतंगबाजी के इस पर्व में परिवर्तन नहीं आया। इसके प्रति अरुचि नहीं आई। गुजरात का हर घर संक्रांति के पहले से ही डोर और पतंग से भरने लगता है। हां, खरीददारी जरूर भैया या पप्पा करते हैं मगर जब उड़ाने की बारी आती है तो घर की महिलाओं के मांजे और मजे दोनों अलग होते हैं, उन्हें मांगकर 'कुछ देर' पतंग नहीं उड़ानी पड़ती।
 
यही तो है भारतीय पर्व का स्वरूप। खास बात यह कि इस पूरे पतंगबाजी के दौर में कहीं कोई छींटाकशी या फब्ती नहीं होती। किसी लड़के की पतंग किसी लड़की ने काटी हो या इसके उलट, एक शोर वातावरण में होता है और विजयी पक्ष थोड़ा उल्लासित हो जाता है तो दूसरा पक्ष मुस्कराकर अपनी बची डोर समेटने लग जाता है।
 
उत्तरायण के दिन पूरा परिवार छत पर एकत्र होकर एक संदेश और दे जाता है। वह यह कि आनंद के पल साथ-साथ बिताएं, कुछ समय के लिए ही सही सोसायटी के दूसरे लोगों के साथ थोड़ी गपशप हो जाए, थोड़ी चिल्लाचोट हो। आखिर मौज-मजा का दौर फिर पूरे साल थोड़े ही मिलता है।

ये भी पढ़ें
मकर संक्रांति स्पेशल : ऐसे बनाएं सफेद तिल और गुड़ की मीठी नमकीन पपड़ी