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Written By Author विकास सिंह
Last Updated : शनिवार, 16 जुलाई 2022 (14:22 IST)

संसद सचिवालय के सर्कुलर पर सियासी संग्राम, असंसदीय शब्दों की सूची और विरोध प्रदर्शन पर रोक पर उठे सवाल

संसद सचिवालय के सर्कुलर पर सियासी संग्राम, असंसदीय शब्दों की सूची और विरोध प्रदर्शन पर रोक पर उठे सवाल - Politics on the circular of prohibition of non-parliamentary words and protest demonstrations in Parliament
संसद का मानसून सत्र 18 जुलाई से शुरु होने जा रहा है। मानसून सत्र काफी हंगामेदार रहने के आसार है। मानसून सत्र के दौरान विपक्ष केंद्र सरकार को अग्निपथ योजना समेत कई अन्य मुद्दों पर घेरने की तैयारी कर रहा है। वहीं संसद के मानसून सत्र से पहले लोकसभा सचिवालय की ओर से दो दिन में जारी एडवाइजरी को लेकर सियासी माहौल गर्मा गया है। दरअसल लोकसभा सचिवालय की ओर ऐसे शब्दों की ऐसी सूची जारी की गई है जिसका सदन में इस्तेमाल अंससदीय माना गया है। वहीं लोकसभा सचिवालय के एक अन्य एडवाइजरी में संसद में धरना, प्रदर्शन, पोस्टर, पर्चे और तख्तियां दिखाने पर रोक लगा दी गई है। 
 
लोकसभा सचिवालय की ओर से जारी संसदीय बुलिटेन में बताया गया है कि संसद में अपने भाषण में सदस्य कौन-से शब्दों का इस्तेमाल नहीं कर पाएंगे। नई एडवाइजरी के मुताबिक अब संसद की कार्यवाही के दौरान जुमलाजीवी,अहंकारी, तानाशाही, जयचंद, अंट-शंट, करप्ट, नौटंकी, ढिंढोरा पीटना, निकम्मा जैसे आम बोलचाल में कहे जाने वाले शब्द अमर्यादित माने जाएंगे। 

असंसदीय शब्दों की इस एडवाइजरी पर विपक्ष के नेता आरोप लगा रहे हैं कि इस सूची में ऐसे शब्दों की भरमार है, जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा के लिए विपक्षी सांसदों द्वारा इस्तेमाल किए जाते हैं। संसद में आपत्तिजनक शब्दों को लेकर सूची 1954 से अब तक कई बार लोकसभा सचिवालय प्रकाशित करता रहा है। दरअसल संसद की कार्यवाही के दौरान कोई शब्द अपमानजनक या आपत्तिजनक है या नहीं, इसका फैसला लोकसभा स्पीकर ही करता है। संसद में कार्यवाही के दौरान सभी शब्द बोले जा सकते हैं लेकिन अध्यक्ष जिन शब्दों और वाक्यों को आपत्तिजनक समझेंगे, उन्हें वे कार्रवाई से हटवा देंगे। 
 
वहीं सवाल यह भी उठ रहा है कि ऐसे शब्द जो अब रोजमर्रा के जीवन में प्रयोग होते है उनको आपत्तिजनक की श्रेणी में डाल देना कहां तक उचित है? जैसे जुमलाजीवी, बालबुद्धि, शकुनि, जयचंद, चांडाल चौकड़ी, पिट्ठू, उचक्का, गुल खिलाए, दलाल, सांड, अंट-संट, तलवे चाटना आदि। वहीं लोकसभा सचिवालय की ओर से जारी एक अन्य सर्कुलर में कहा गया कि संसद भवन परिसर में संसद सदस्य धरना, प्रदर्शन, अनशन और पूजा पाठ में नहीं ला सकते है। 
 
लोकसभा सचिवालय की ओर से दो दिन में दो सर्कुलर जारी होने पर सियासी संग्राम छिड़ गया। कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि संसद भारत की सबसे बड़ी पंचायात है। हम अगर गांधी जी, बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर के पैरों में बैठकर, अहिंसा अपनाते हुए अगर कोई बात रखने की कोशिश करें तो क्या यह गलत है? यह सदन प्रधानमंत्री का खुद का आवास स्थल नहीं है।

टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा ने ट्वीट करते हुए कहा कि संसद परिसर में स्थित गांधी प्रतिमा को हटा दिया जाए। वहीं कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने कहा कि सरकार की मंशा है कि जब वो भ्रष्टाचार करे, तो उसे भ्रष्ट नहीं; भ्रष्टाचार को 'मास्टरस्ट्रोक' बोला जाए। 2 करोड़ रोजगार, किसानों की आय दुगनी जैसे जुमले फेंके, तो उसे जुमलाजीवी नहीं; ‘थैंक यू' बोला जाए। संसद में देश के अन्नदाताओं के लिए आंदोलनजीवी शब्द किसने प्रयोग किया था?

लोकसभा स्पीकर ओम बिड़ला ने पूरे मुद्दें पर सफाई देते हुए कहा कि संसद में बोले जाने वाले किसी भी शब्द पर प्रतिबंध नहीं है। उन्होंने कहा किसी भी शब्द को बैन नहीं किया गया है, लोकसभा सचिवालय ने केवल कुछ असंसदीय शब्दों को हटाया गया है। यह एक प्रक्रिया है जो 1959 से चली आ रही है। इसके साथ ही उन्होंने संसद में धरना प्रदर्शन पर कहा कि लोकसभा में इसको लेकर कोई सर्कुलर जारी नहीं किया गया है। उन्होंने कहा कि यह एक रूटीन प्रक्रिया है जो 2002 से चल रही है। सभी दलों से आग्रह है कि बिना तथ्यों के आरोप-प्रत्यारोप नहीं करे।

लोकतंत्र का मंदिर कहे जाने वाले संसद में असंसदीय शब्द को प्रयोग को सहीं नहीं ठहराया जा सकता, लेकिन सवाल यहीं उठाता है कि रोजमर्रा के जीवन में उपयोग होने वाले शब्दों को असंसदीय शब्दों की कैटेगरी में डाल देना कहा तक उचित है। इसके कहीं न कही संसद के सदस्यों के विशेषाधिकार के साथ संविधान के अनुच्छे 19-1(A) के तरक वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लगाने की कोशिश का भी आभास होता है।