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Last Modified: बुधवार, 13 जनवरी 2021 (08:01 IST)

'कड़कनाथ' भी बर्ड फ्लू की चपेट में, जानिए कोरोना काल में क्यों बढ़ी थी इसकी मांग

'कड़कनाथ' भी बर्ड फ्लू की चपेट में, जानिए कोरोना काल में क्यों बढ़ी थी इसकी मांग - bird flu in kadaknath jhabua poultry farm
झाबुआ। मध्यप्रदेश में कौओं के बाद मुर्गे की प्रजाति कड़कनाथ को भी बर्ड फ्लू ने अपनी चपेट में ले लिया है। झाबुआ में पिछले 5 दिनों में 2500 मुर्गों और चूजों के मारे जाने की खबर है।
 
कड़कनाथ में बर्ड फ्लू की खबर फैलते ही झाबुआ में हड़कंप मच गया। पशुपालन विभान ने पूरे प्रदेश के पोल्ट्री फॉर्म को अलर्ट कर दिया गया है।
 
रूंडीपाड़ा स्थित एक पोल्ट्री फॉर्म में कड़कनाथ में बर्ड फ्लू की पुष्‍टि हुई है। इसके बाद पोल्ट्री फॉर्म से 1 किमी की दूरी में स्थित सभी मुर्गे मुर्गियों को मार दिया गया है। यहां से क्रिकेट स्टार महेंद्र सिंह धोनी को 2000 कड़कनाथ चूजों को रांची भेजने का ऑर्डर मिला था। बर्ड फ्लू की पुष्‍टि के बाद अब धोनी को चूजे नहीं भेजे जा सकेंगे।
 
Corona काल में क्यों बढ़ी थी कड़कनाथ मुर्गे की मांग : लॉकडाउन खत्म होने के बाद कोविड-19 के जारी प्रकोप के बीच मध्य प्रदेश के आदिवासी बहुल झाबुआ जिले की पारंपरिक मुर्गा प्रजाति कड़कनाथ की मांग इसके पोषक तत्वों के कारण देशभर में बढ़ी थी। 
 
ऐसा माना जाता है कि दूसरी प्रजातियों के चिकन के मुकाबले कड़कनाथ के काले रंग के मांस में चर्बी और कोलेस्ट्रॉल काफी कम होता है, जबकि इसमें प्रोटीन की मात्रा अपेक्षाकृत कहीं ज्यादा होती है। कड़कनाथ चिकन में अलग स्वाद के साथ औषधीय गुण भी होते हैं।
 
क्यों कहा जाता है कालामासी : झाबुआ मूल के कड़कनाथ मुर्गे को स्थानीय जुबान में 'कालामासी' कहा जाता है। इसकी त्वचा और पंखों से लेकर मांस तक का रंग काला होता है। देश की जियोग्राफिकल इंडिकेशंस रजिस्ट्री 'मांस उत्पाद तथा पोल्ट्री एवं पोल्ट्री मीट' की श्रेणी में कड़कनाथ चिकन के नाम भौगोलिक पहचान (जीआई) का चिन्ह भी पंजीकृत कर चुकी है।
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