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Last Modified: शनिवार, 1 अक्टूबर 2016 (10:39 IST)

पहली बार तीन मां-बाप वाले बच्चे का जन्म

पहली बार तीन मां-बाप वाले बच्चे का जन्म - World’s first baby born with new 3 parent technique
दुनिया में पहली बार तीन मां-बाप से पैदा होने वाले बच्चे ने किलकारी भरी है। उम्मीद है कि मेक्सिको में पैदा हुआ यह बच्चा एक स्वस्थ जिंदगी जी सकेगा।
अमेरिकी वैज्ञानिकों ने तीन लोगों का डीएनए निकाला और उसे भ्रूण में डाला। उनके इस प्रयोग पर खूब विवाद हुआ लेकिन वैज्ञानिक आगे बढ़े। अब न्यू साइंटिस्ट मैगजीन ने इस प्रयोग से जन्मे बच्चे की खबर दी है। बच्चे का जन्म पांच महीने पहले मेक्सिको में हुआ। और फिलहाल वह स्वस्थ है।
 
असल में बच्चे की मां के जीन में लीह सिंड्रोम था। यह तंत्रिका तंत्र से जुड़ी घातक बीमारी पैदा करता है। जॉर्डन के दंपत्ति के दो बच्चे पहले इस बीमारी से मारे गए। मां को चार बार गर्भपात का सामना भी करना पड़ा। बच्चे की चाहत में दंपत्ति ने न्यू यॉर्क सिटी के वैज्ञानिक जॉन झांग से संपर्क किया। दंपत्ति चाहते थे कि बच्चा भी हो और उसे मां की बीमारी से अनुवांशिक बीमारी भी न मिले। अमेरिका में गर्भधारण के लिए तीन अभिभावकों की मदद लेना प्रतिबंधित है, लिहाजा दंपत्ति और डॉक्टरों को मेक्सिको का रुख करना पड़ा।
 
न्यू साइंटिस्ट मैगजीन के मुताबिक मेक्सिको में ऐसा कोई नियम नहीं है। यूके में एक तरीके को मान्यता दी गई है। उसे प्रोन्यूक्लियर ट्रांसफर कहा जाता है। दंपत्ति को यह तरीका मंजूर नहीं था। उस तरीके में दो भ्रूण नष्ट हो जाते हैं।
 
डॉक्टर झांग ने अलग तरीका अपनाया। बीमारी मां के जीन के भीतर माइटोकॉन्ड्रिया में छुपी थी। रिपोर्ट के मुताबिक, "उन्होंने एक मां के अंडाणु से न्यूक्लियस निकाला और उसे न्यूक्लियस निकाले जा चुके दूसरे अंडाणु में डाला। इससे जो अंडाणु पूर्ण हुआ उसमे मां का न्यूक्लियर डीएनए और दाता का माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए था। फिर उसे पिता के शुक्राणु से निषेचित किया गया।"
 
अब झांग और उनकी टीम अपना तरीका दुनिया के सामने रखेगी। हालांकि दूसरे विशेषज्ञ अब भी शंकाएं जता रहे हैं। मोनाश यूनिवर्सिटी में जीन संबंधी बीमारियों के सेंटर के निदेशक प्रोफेसर जस्टिन सेंट जॉन कहते हैं, "यह तकनीक दुनिया में पहली है और विवादित भी है, लिहाजा मैं समझता हूं कि इसके नतीजों का एलान करने के बजाए जांचकर्ताओं को विस्तृत रिपोर्ट को व्यापक समीक्षा के लिए भेजना चाहिए था।"
 
मां के अंडाणु में दाता के माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए को डालने की पहली कोशिश 1990 के दशक में हुई थी। न्यू साइंटिस्ट्स रिपोर्ट के मुताबिक, "इसके बावजूद कुछ बच्चों में जीन संबंधी बीमारियां सामने आईं और तकनीक पर प्रतिबंध लगा दिया गया। शायद समस्या यह हुई होगी कि बच्चे में दो स्रोतों का माइटोकॉन्ड्रिया था।"
 
बंदरों पर हुए ऐसे ही प्रयोगों की याद दिलाते हुए लेंकास्टर यूनिवर्सिटी के लेक्चरर डेविड क्लेंसी भी कहते हैं, "माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए निचले स्तर से बहुत ऊंचे स्तर तक जा सकता है। इससे बीमारी फिर लौट सकती है, बंदरों में ऐसा देखा गया, हो सकता है कि इंसानों में भी ऐसा ही देखने को मिले।"
 
फिलहाल झांग और उनकी टीम आशाओं से भरे हैं। पैदा हुए बच्चे के माइटोकॉन्ड्रिया में म्यूटेशन की आशंका एक फीसदी से भी कम मिली। क्लेंसी इसे अच्छा संकेत मानते हैं, "आम तौर पर 18 फीसदी माइटोकॉन्ड्रिया के प्रभावित होने के बाद समस्या शुरू होती है।" उम्मीद और संशय से भरी आवाज उठाने के बावजूद सभी वैज्ञानिक इस बात पर सहमत है कि अगर मेक्सिको में पैदा हुआ बच्चा स्वस्थ रहा तो यह बड़ी खोज होगी।
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