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Last Modified: सोमवार, 12 दिसंबर 2016 (14:49 IST)

पाकिस्तान में बच्चों को दूध नहीं पिलातीं मांएं!

पाकिस्तान में बच्चों को दूध नहीं पिलातीं मांएं! - Pakistani mothers
पाकिस्तान में मांएं अक्सर बच्चों को अपना दूध नहीं पिलातीं। कभी परंपराओं की दुहाई तो कभी गरीबी की खाई बन रही है वजह। इसका नतीजा पाकिस्तान के भविष्य पर पड़ेगा।
सात बच्चों की मां माह परी पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में रहती हैं। यह जगह खूब हरी भरी और उपजाऊ है। लेकिन परी का दो साल का बेटा गुल मीर भूख से रो रहा है। परी उसे बहला फुसला कर चुप कराने की कोशिश तो कर रही है लेकिन भूख प्यार से तो नहीं मिट सकती ना। परी आह भरकर कहती हैं, "मेरे सारे बच्चे जन्म से ही कमजोर हैं। शायद मेरा दूध अच्छा नहीं है।"
 
पाकिस्तान में अक्सर मांओं को कहा जाता है कि शिशुओं को चाय, जड़ी-बूटियों वाला काढ़ा या फिर फॉर्मूला दूध पिलाया जाए। यह पाकिस्तानी बच्चों में कुपोषण का एक कारण हो सकता है। मुल्क में 44 फीसदी बच्चे कुपोषण का शिकार हैं।

आठवें बच्चे को गर्भ में पाल रही परी बताती हैं, "हमारी बालोची परंपरा में हम बत्री देते हैं। यह पीसी हुई जड़ी बूटी होती है। सुबह शाम दो वक्त यही देते हैं। दिन में दो बार मैं उसे अपना दूध भी पिलाती हूं और चाय भी देती हूं। सुबह और शाम चाय भी देती हूं।" विश्व स्वास्थ्य संगठनों के मानकों पर तो दिन में दो बार मां का दूध कुछ भी नहीं है। और ऐसा दूसरी जगहों पर भी होता है। कहीं शिशुओं को घी खिलाते हैं तो कहीं शहद या गन्ना।
 
माह परी की मजबूरी दूसरी भी है। वह कहती हैं कि दिनबर काम करती हूं इसलिए दूध पिलाने का वक्त नहीं मिलता। परी को इस बात पर पूरा भरोसा है कि जो पारंपरिक चीजें बच्चों को पिलाई जा रही हैं, वे मां के दूध से बेहतर हैं। लेकिन दो साल के गुल मीर की सेहत कुछ और बयां करती है। वह सिर्फ 5 किलो का है। उसकी आयु के बच्चों का वजन 10 किलो से ज्यादा होना चाहिए। पश्चिम में जन्म के वक्त बच्चे का औसत जन्म 3।5 किलो माना जाता है। और गुल मीर अगर दो साल की आयु में ही 5 किलो का है तो इसका असर उसकी शारीरिक और मानसिक वृद्धि पर स्थायी होगा।
 
पाकिस्तान के चारों प्रांतों में ऐसे बच्चे देखे जा सकते हैं। मुल्क में यूनिसेफ की प्रमुख ऐंगेला कीएर्नी कहती हैं, "यह एक संकट है। एक भारी आपातकालीन संकट।" वह कहती हैं देश में कुपोषित बच्चों की इतनी बड़ी तादाद की एक बड़ी वजह है मां का दूध न मिल पाना। यूनिसेफ का निर्देश है कि पहले छह महीने तक बच्चे को सिर्फ मां का दूध पिलाया जाना चाहिए। लेकिन पाकिस्तान में ऐसे बच्चे सिर्फ 38 फीसदी हैं जो पहले छह महीने सिर्फ मां का दूध पीते हैं। यह आंकड़ा खतरनाक रूप से कम है और इसकी वजह है स्थानीय परंपराएं, मांओं पर काम का बहुत ज्यादा बोझ और दूध उद्योग की आक्रामक मार्केटिंग। डॉक्टर तक लोगों से डेयरी मिल्क पिलाने को कहते हैं।
 
रजूल की बहू खेतों में काम करने जाती है तो वह अपने पोते-पोतियों का ख्याल रखती हैं। वह बताती हैं, "डॉक्टर ने कहा कि बच्चे को नंबर वन मिल्क पिलाओ।" यह नेस्ले का एक ब्रैंड है। डॉक्टर की यह सलाह रजूल की पोती अकीला के लिए घातक साबित हुई है। स्थानीय स्वास्थ्य अधिकारी इम्तियाज हुसैन के मुताबिक लोग समझते हैं, यह ब्रैंडेड दूध बच्चों को एनर्जी देता है। वह कहते हैं, "डॉक्टर भी इसकी सलाह देते हैं। अक्सर ये झोलाछाप डॉक्टर होते हैं जो बस पैसा कमाने तक ही सोचते हैं।"
 
सरकार कहती है कि उसे समस्या की जानकारी है और कोशिश कर रही है कि 2018 तक कुपोषित बच्चों की संख्य को घटाकर 40 फीसदी किया जाए। लेकिन इस कोशिश के लिए कोई योजना नहीं है। जो योजनाएं चल रही हैं वे विदेशों से आने वाले धन के भरोसे हैं।
 
- वीके/एके (एएफपी) 
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