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Last Modified: बुधवार, 31 मई 2017 (11:14 IST)

बर्लिन में मोदी : रिश्तों की गर्मजोशी

बर्लिन में मोदी : रिश्तों की गर्मजोशी - Narendra Modi Germany Tour
photo @narendramodi
बर्लिन पहुंचते ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिस तरह ट्वीट पर ट्वीट दागे और जिस अंदाज में उनका स्वागत हुआ उससे दोनों देशों के बीच भरपूर गर्मजोशी का पता चलता है लेकिन क्या यह गर्मजोशी ठोस नतीजे भी दे पा रही है?
 
प्रधानमंत्री मोदी चार देशों के दौरे पर निकले हैं और अपनी इस यात्रा का पहला पड़ाव उन्होंने जर्मनी को चुना है। इसके बाद उन्हें स्पेन, रूस और फ्रांस जाना है। जर्मनी पहुंचते ही उन्होंने ट्वीट कर अपने इस दौरे को बहुत अहम बताया और उम्मीद जाहिर की कि इससे लाभकारी परिणाम मिलेंगे और दोनों देशों की मित्रता और गहरी होगी।
 
पीएम मोदी के मुताबिक उनका ये दौरा दोतरफा रिश्तों में एक नया अध्याय होगा। चांसलर मैर्केल ने बर्लिन से 70 किलोमीटर दूर मेसेबुर्ग के महल में मोदी की अगवानी की। उनके प्रवक्ता स्टेफेन जाइबर्ट ने दोनों नेताओं की फोटो ट्वीट की और लिखा भारत जर्मनी अंतर सरकार परामर्श बैठक की तैयारी।
 
साफ तौर पर दोनों देशों के बीच गर्मजोशी और सद्भावना की कोई कमी नहीं है लेकिन शायद भरोसा उतना नहीं है जितना होना चाहिए। जर्मनी यूरोप की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और जब भी कोई भारतीय प्रधानमंत्री जर्मनी का दौरा करता है तो उसके एजेंडे में भारत में जर्मन निवेश और कारोबारियों को आकर्षित करना सबसे ऊपर होता है। यही बात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मौजूदा दौरे पर लागू होती है।
 
जर्मनी और भारत सन 2000 से रणनीतिक साझीदार है। भारत दुनिया के उन चंद देशों में शामिल है जिनके साथ जर्मनी अंतर सरकारी परामर्श बैठक करता है। दोनों ही देशों में लोकतांत्रिक व्यवस्था है। लेकिन बात अगर कारोबार और निवेश की करें तो भारत जर्मन कारोबारियों के सबसे पसंदीदा देशों में शामिल नहीं है।
 
जर्मनी सांख्यिकी विभाग के पिछले साल के आंकड़े साफ़ इशारा करते है कि जर्मनी के निर्यात और आयात साझीदारों की लिस्ट में भारत टॉप 20 में भी शामिल नहीं है।
 
भारत के लिए जर्मनी ईयू में सबसे बड़ा ट्रेड पार्टनर है लेकिन जब हम तस्वीर को जर्मनी के ऐंगल से देखते हैं तो भारत बहुत पीछे दिखता है। जर्मनी जिन देशों से सबसे ज्यादा समान मंगाता है उन में सबसे ऊपर चीन है और जिन देशों को सबसे ज्यादा निर्यात करता है उन में अमेरिका टॉप पर है। चीन जर्मनी के निर्यात साझीदारों में भी 5वें पायदान पर है। भारत की बात करें तो जर्मनी के एक्सपोर्ट पार्टनर्स में वो 24वें नम्बर पर है इम्पोर्ट पार्टनर्स में 28वें नम्बर पर। जिससे भारत कई बार मुक़ाबला करने की कोशिश करता है उसके आसपास भी भारत नहीं है।
 
इसका मतलब साफ है कि व्यापार के मोर्चे पर बहुत कुछ किए जाने की जरूरत है। कुछ ऐसी बाधाएं है जो जर्मन कारोबारियों को भारत की तरफ जाने से रोकती हैं। UPA की सरकार पर करप्शन के बहुत आरोप लगे। लेकिन बात जहां तक जर्मन लोगों के भरोसे की है मोदी सरकार के पिछले तीन साल में भी हालात बहुत ज्यादा नहीं बदले हैं। प्रधानमंत्री मोदी हमेशा उद्यमों को बढ़ावा देने की बात करते है। और इसी को वो आर्थिक तरक़्क़ी और रोजगार की धुरी मानते हैं।
 
2015 में जर्मनी के हैनोवर व्यापार मेले में उन्होंने अपनी अहम मेक इन इंडिया पहल पेश की। कुछ कम्पनियों ने दिलचस्पी जरूर दिखायी है और वे काम भी कर रही हैं लेकिन मेक इन इंडिया के जरिए भारत को मैन्युफैक्चरिंग हब बनाने का सपना अभी दूर की कौड़ी ही लगता है। एक खास पहल के तहत जर्मनी की छोटी और मध्यम स्तर की 300 कम्पनियों से सम्पर्क किया गया लेकिन उन में से सिर्फ लगभग 75 कम्पनी ही भारत में काम करने को तैयार दिखती हैं। यानी सिर्फ़ 25 फ़ीसदी।
 
इसलिए आज मोदी जब जर्मन नेताओं और कारोबारियों से मुख़ातिब होंगे तो उनकी सबसे बड़ी चुनौती भरोसा जीतना ही होगी। उनका काम उस हिचकिचाहट को दूर करना है जो जर्मनी कारोबारियों की राह में बाधा है। मोदी की चुनौती रिश्तों को गर्मजोशी से आगे ठोस नतीजों की तरफ ले जाना है।
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