-मिषाएल दा सिल्वा
जर्मन चांसलर ओलाफ शॉल्त्स ने नए साल पर देश के नाम अपने संदेश में कहा कि पहले से 'ज्यादा अस्थिर और कठोर' हो चली दुनिया को देखते हुए जर्मनी को भी बदलना होगा। उन्होंने विश्वास जताया कि देश सभी चुनौतियों से 'पार पा लेगा।' नए साल की पूर्वसंध्या पर देश के नाम अपने संदेश में जर्मनी के चांसलर ओलाफ शॉल्त्स ने पूरे विश्व में जारी कठिन परिस्थितियों का जिक्र करते हुए विश्वास जताया कि 'जर्मनी इन सबसे पार पा लेगा।'
उन्होंने कहा, 'इतना कष्ट है, इतना खून बह रहा है। हमारा विश्व पहले से ज्यादा अस्थिर और कठोर जगह बन गया है। और सब कुछ बहुत तेजी से बदल रहा है।' जर्मन सरकार के प्रमुख शॉल्त्स ने कहा, 'इस सबका नतीजा ये निकलता है कि हमें भी बदलना पड़ रहा है। इससे हममें से कई लोग चिंता में हैं। कई लोगों में इसे लेकर असंतोष भी है। इससे मैं भी गहराई तक प्रभावित हूं।'
चांसलर के कार्यालय से जारी हुए उनके नए साल के संदेश में ऐसा लिखा है। उनका वीडियो संदेश नए साल की पूर्व संध्या पर जर्मनी की सभी सार्वजनिक प्रसारण सेवाओं से प्रसारित किया जाएगा।
कुछ सकारात्मक पहलुओं को याद करते हुए जर्मन चांसलर ने कहा कि देश ने 2023 में घरेलू और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई बड़ी रुकावटों का सफलता से सामना किया। उन्होंने जोर देते हुए कहा, 'हमारी असली शक्ति इसी में है कि हम एक दूसरे का साथ देने के लिए त्याग और समझौते करने को तत्पर रहते हैं।'
अमेरिकी चुनाव का हो सकता है 'दूरगामी असर'
2024 में कई अहम चुनाव होने हैं, जिसमें अमेरिका, ब्रिटेन, भारत और यूरोपीय संसद का नाम प्रमुखता से लिया जा सकता है। चांसलर शॉल्त्स ने भी अपने संदेश में इन चुनावों के महत्व को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि 'अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव का यूक्रेन और मध्य-पूर्व के युद्ध पर खासा असर होगा - और यहां यूरोप में हम पर भी।'
चांसलर ने याद दिलाया कि एक मजबूत जर्मनी के लिए यूरोपीय संघ का शक्तिशाली होना बेहद जरूरी है। उन्होंने कहा, 'यूरोप में एकता का बने रहना बहुत जरूरी है और आने वाले यूरोपीय चुनाव से उसकी शक्ति और बढ़नी चाहिए।' उन्होंने आगे कहा कि 'हमारे ही महाद्वीप के पूर्व में रूस का युद्ध अभी तक थमा नहीं है। न ही मध्य पूर्व की हिंसक वारदातें ही रुकी हैं।'
वित्तीय संकट को बचाने में सफलता
एक साल पहले जो मुद्रास्फीति औसतन 7.9 फीसदी पर थी, वह नवंबर 2023 में 3.2 फीसदी पर पहुंच गई। यह दो साल में इनफ्लेशन का सबसे निचला स्तर रहा। शॉल्त्स ने कहा कि एक साल पहले की तुलना में अब वित्तीय स्थिति कही ज्यादा उज्ज्वल दिखाई दे रही है। हालांकि अभी जर्मनी में मुद्रास्फीति की दर यूरोजोन के औसत 2.4 फीसदी से ऊपर ही बनी हुई है।
जर्मनी में गैस की भरपूर आपूर्ति का भी जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि देश को आर्थिक मंदी में जाने से बचा लिया गया। उन्होंने पूछा, 'क्या आपको याद है कि हम एक साल पहले कहां खड़े थे। कई विशेषज्ञों ने भविष्यवाणी कर दी थी कि 3, 4 या 5 फीसदी तक की आर्थिक मंदी आने वाली है। कई लोगों को आशंका थी कि कीमतें लगातार बढ़ती रहेंगी। कहीं लोग बिजली की कटौती और ठंडे घरों को लेकर चिंता में थे।'
शॉल्त्स ने संतोष के साथ कहा कि 'हुआ कुछ और ही।' उन्होंने कहा, 'देश में महंगाई कम हो रही है, मजदूरी और पेंशन बढ़ रही है। हमारी गैस भंडारण सुविधाएं सर्दियों के लिए लबालब भरी हैं।' चांसलर ने कहा, 'हमने आर्थिक मंदी के रथ को वहीं रोक दिया। साथ ही हम सबने मिल कर ऊर्जा बचाई और समय पर तैयारी की।'
2024 में नई उम्मीदें
जर्मनी की सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी (एसपीडी) के नेता शॉल्त्स ने यह भी कहा कि वर्तमान गठबंधन सरकार सड़क और रेल के बुनियादी ढांचे को अपग्रेड करने को प्राथमिकता देगी। उन्होंने कहा है कि इन क्षेत्रों में आने वाले समय में 'बड़ा निवेश करने की जरूरत है।' इस समय जर्मनी की गठबंधन सरकार में एसपीडी के अलावा ग्रीन्स और नवउदारवादी दल फ्री डेमोक्रेट्स (एफडीपी) का शासन है।
चांसलर ने कहा, 'जो भी इन दिनों ट्रेन से यात्रा करता है, या किसी जर्जर हो गए पुल के कारण ट्रैफिक जाम में फंसता है, सबको दिखता है कि हमारे देश को बहुत लंबे से इसकी जरूरत है।' उन्होंने बताया, 'इसलिए अब हम अच्छी सड़कों और बेहतर रेलवे में निवेश कर रहे हैं।'
लेकिन उन्होंने नवंबर में आए संवैधानिक अदालत के फैसले के बारे में कहा कि पैंडेमिक फंड को जलवायु और हरित उद्योग परियोजनाओं में निवेश न करने देने से 'हम उन सभी योजनाओं को लागू करने में सक्षम नहीं होंगे जिनकी हमने परिकल्पना की थी।'
शॉल्त्स का मानना है कि जर्मनी का हर व्यक्ति एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और आपसी सम्मान के साथ जीते हुए 'हमें भविष्य के बारे में कोई डर नहीं होना चाहिए।' उन्होंने भरोसा दिलाया कि 'फिर वर्ष 2024 हमारे देश के लिए एक अच्छा साल होगा, भले ही कुछ चीजें आज नए साल की पूर्व संध्या पर हमारी कल्पना से अलग ही क्यों न निकलें।'