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Last Modified: मंगलवार, 10 जुलाई 2018 (18:21 IST)

भारत में महिला खतना पर सुप्रीम कोर्ट सख्त

भारत में महिला खतना पर सुप्रीम कोर्ट सख्त | bohra samaj khatna
'हराम की बोटी'... दाऊदी बोहरा समुदाय में बच्चियों के योनि के एक हिस्से को यही नाम दिया गया है। वे बड़ी होकर 'भटके' न इसलिए इस हिस्से को काट दिया जाता है। इस अमानवीय प्रथा पर अब सुप्रीम कोर्ट ने बैन लगाने को कहा है।
 
 
भारत समेत दुनिया के कई हिस्सों में मुसलमानों के दाऊदी बोहरा समुदाय में बच्चियों का खतना यह मानकर किया जाता है कि इससे वे बड़ी होने पर पति के अलावा किसी दूसरे पुरुष से शारीरिक संबंध नहीं बनाएंगी। इस परंपरा के मुताबिक, महिला को शारीरिक संबंध का आनंद लेने का अधिकार नहीं है। यदि उसका खतना होता है तो वह अपने पति के प्रति वफादार रहेगी और घर के बाहर नहीं जाएगी।
 
 
महिला खतना को अंग्रेजी में फीमेल जेनिटल म्यूटेशन कहते हैं। इसमें योनि के क्लिटोरिस के एक हिस्से को रेजर या ब्लेड से काट दिया जाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, यह खतना चार तरह का हो सकता है- क्लिटोरिस के पूरे हिस्से को काट देना, कुछ हिस्सा काटना, योनि की सिलाई या छेदना। इस दर्दनाक और अमानवीय प्रथा से कई बार यौन संक्रमण संबंधी बीमारियां हो सकती है। मानसिक पीड़ा का असर सारी उम्र रहता ही है।
 
 
अपनी हालिया टिप्पणी में सुप्रीम कोर्ट ने महिलाओं का अपने शरीर पर अधिकार की वकालत की। केंद्र ने इस प्रथा पर रोक लगाने की मांग वाली याचिका का समर्थन किया। कोर्ट में इस समुदाय के प्रतिनिधियों की पैरवी करते हुए सीनियर एडवोकेट अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि यह इस समुदाय की बुनियादी परंपरा है और कोर्ट इस समुदाय के धर्म से जुड़े अधिकार में हस्तक्षेप नहीं कर सकता। इस दलील का अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने विरोध किया।
 
 
वेणुगोपाल ने चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस ए एम खानविलकर और जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की बेंच से कहा, "इस प्रथा पर अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन और कई अफ्रीकी देशों में रोक लग चुकी है। इस पर कानूनी प्रतिबंध लगना चाहिए।" 
 
 
चीफ जस्टिस ने कहा कि अगर महिलाएं किसी प्रथा को स्वीकार न करें तो क्या उन पर उसे थोपा जा सकता है? उन्होंने कहा, "अगर वे इसके विरोध में हों तो क्या आप उन पर इसे थोप सकते हैं?" जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, "अपने शरीर की अखंडता के महिला के अधिकार का हनन क्यों हो?" बेंच ने कहा कि वह इस मामले पर जुलाई में ही फिर सुनवाई करेगी और आदेश देगी।
 
 
साहियो नाम की एक गैर सरकारी संस्था महिला खतने के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मुहिम चला रही है। भारत में साहियो की सह संस्थापक और पत्रकार आरेफा जोहरी सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी को आशा की किरण मानती है। डॉयचे वेले से बातचीत में उन्होंने कहा, "हमें उम्मीद है कि महिलाओं के पक्ष में की गई कोर्ट की टिप्पणी फैसले में बदलेगी। खतना प्रथा एक गैर वैज्ञानिक और गैर जरूरी प्रथा है जिसे महिलाओं पर थोपा गया है। जो महिलाओं के शुद्धिकरण के नाम पर इसकी वकालत करते हैं, वे मूर्ख बना रहे हैं।" 
 
 
यूनिसेफ के आंकड़े बताते हैं कि दुनियाभर में हर साल 20 करोड़ महिलाओं का खतना होता है जिनमें अधिकतर की उम्र 14 वर्ष या उससे कम होती है। इंडोनेशिया में आधी से अधिक बच्चियों का खतना हो चुका है। भारत में दाऊदी बोहरा एक छोटा सा समुदाय है, लेकिन महिला खतना को लेकर वह अकसर सुर्खियों में रहता है। सुप्रीम कोर्ट की कड़ी टिप्पणी ने इस प्रथा के खिलाफ आवाज उठा रहे लोगों को एक उम्मीद दी है।
 
 
रिपोर्ट विनम्रता चतुर्वेदी
 
 
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