2019 के पहले आठ महीनों में दुनिया भर में जंगलों की आग के 1.6 करोड़ मामले सामने आए। इसमें हिमालय के जंगलों की आग भी शामिल है और अफ्रीका और अमेजन के वनों की राख भी।
इसमें कोई शक नहीं कि दुनिया भर में जलते जंगलों को अंतरिक्ष से अच्छी तरह देखा जा सकता है। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा का "अर्थ ऑब्जर्विंग सिस्टम डाटा एंड इंफॉर्मेशन सिस्टम" (EOSDIS) इन घटनाओं को सामने लाने में अहम भूमिका निभाता है।
उपग्रहों का एक सघन नेटवर्क दुनिया भर में जारी हॉट स्पॉट्स को रजिस्टर करता है। स्पेक्ट्रोरेडियोमीटर, मीडियम रिजोल्यूशन की तस्वीरें मुहैया कराते हैं। इनके अलावा रेडियोमीटर इंफ्रारेड तस्वीरें देते हैं। इन तस्वीरों की समीक्षा से पता चलता है कि धरती के किस हिस्से में तापमान बहुत ज्यादा है और आग कितनी ताकतवर है।
जंगलों में लगने वाली आग का डाटा, रियल टाइम में ट्रैक किया जाता है। इसे ग्लोबल फॉरेस्ट वॉच फायर्स जैसी पर्यावरण संस्थाओं के साथ साझा किया जाता है। ग्लोबल फॉरेस्ट वॉच फायर्स के मैप से साफ पता चलता है कि दुनिया भर में दावाग्नि, जंगलों के कितने बड़े हिस्से को खाक कर रही है। नक्शे से यह भी पता चलता है कि दुनिया के कई हिस्सों में हर साल जंगल बुरी तरह जलते हैं, लेकिन उन घटनाओं को मीडिया में अमेजन के वर्षावनों में लगी आग जैसी अहमियत नहीं मिलती।
उदाहरण के लिए, अफ्रीकी महाद्वीप के दक्षिणी हिस्से को ही लीजिए। अगस्त के तीसरे हफ्ते में कांगो में दावाग्नि के 1,10,000 मामले सामने आए। अंगोला में 1,35,000, जाम्बिया में 73,000, तंजानिया में 24,000 से ज्यादा और मोजाम्बिक में जंगलों की आग के करीब 40,000 मामले दर्ज किए गए।
एशिया में मंगोलिया, इंडोनेशिया और उत्तर भारत के जंगल धधके। सन 2000 से लेकर अब तक भारत के पर्वतीय राज्य उत्तराखंड में 44,554 हेक्टेयर जंगल जल चुके हैं। आकार के हिसाब से देखा जाए तो फुटबॉल के 61,000 मैदान। गर्मियों में हर साल उत्तराखंड व हिमाचल के बड़े इलाके में जंगल सुलगने लगते हैं।
मंगोलिया और इंडोनेशिया में नासा की सैटेलाइट्स ने वनाग्नि के 18,500 मामले दर्ज किए। ऑस्ट्रेलिया में 22,500 मामले।
उत्तरी गोलार्ध भी चपेट में
जंगलों की आग के मामले सिर्फ दक्षिणी गोलार्ध या विषुवत व कर्क रेखा वाले इलाकों में ही नहीं हैं। उत्तरी गोलार्ध का बड़ा हिस्सा भी झुलस रहा है। सर्दियों में बर्फ से आच्छादित रहने वाले अलास्का और ब्रिटिश कोलंबिया में भी जंगलों ने भंयकर आग का सामना किया। रूस के सर्द इलाके साइबेरिया में भी जंगल धधक उठे।
ग्लोबल फॉरेस्ट वॉच फायर्स ने 2019 के आठ महीनों में अब तक दुनिया भर में वनाग्नि के 1।6 करो़ड़ मामले दर्ज किए हैं। यह सिर्फ आग के मामलों की संख्या है, इससे नुकसान का पता नहीं चलता।
हर साल तीन से चार करोड़ वर्गकिलोमीटर का इलाका राख हो जाता है। लेकिन इंसान इन घटनाओं से ज्यादा परेशान नहीं होता। आग की कुछ ही घटनाएं प्राकृतिक हैं। ज्यादातर मामलों में तो इंसान जानबूझकर जंगलों में आग लगाता है। एक चिंगारी से शुरू हुई आग देखते देखते कितनी ताकतवर हो जाती है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि दावाग्नि को पृथ्वी से 408 किमी दूर स्थित अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (आईएसएस) से भी देखा जा सकता है।
जलवायु परिवर्तन जंगलों में आग को और ज्यादा भड़काएगा। जंगल जितने ज्यादा जलेंगे, जलवायु परिवर्तन की रफ्तार तेज होने का जोखिम भी उतना ही बढ़ेगा। यह एक कुचक्र है। जंगलों की आग हिमालय, रॉकी और एंडीज पर्वतमालाओं की बर्फ पर भी असर डालेगी। बढ़ता तापमान उत्तरी व दक्षिणी ध्रुव की आदिकालीन बर्फ को और तेजी से पिघलाएगा।
रिपोर्ट अलेक्जांडर फ्रॉएंड