शिक्षाप्रद कहानी : ऑपरेशन बाल्टी
बाबू को इस कॉलोनी में आए 5 साल से ज्यादा हो चुके हैं। जब वह यहां के नए मकान में आया था तो उसकी आयु 6 साल के लगभग थी और अब 11 के आसपास है। उसका परिवार पहले गुलाबरा में रहता था किराए के मकान में। वहीं रहते हुए ही उसके पापा ने इस कॉलोनी शिवम सुंदरम नगर में एक प्लाट खरीद लिया था और कॉलोनाइजर ने अपनी शर्तों पर मकान बना दिया था।बहुत अच्छे और सुंदर मकान बने थे। सड़क जरूर डामर अथवा सीमेंट की नहीं थी, पर नालियां सभी अंडरग्राउंड थीं। इस कारण कॉलोनी बहुत साफ-सुथरी लगती थी। उसका मकान चौराहे के पास गली में दूसरे नंबर पर था। तीसरे क्रम में साबू का घर था। साबू के पापा ने भी लगभग 4-5 साल पहले ही गृह प्रवेश किया था। दूसरे मोहल्ले का किराए का मकान खाली कर आए थे।
साबू और बाबू पक्के मित्र थे, दांतकाटी रोटी का मामला था। एकसाथ स्कूल जाना और साथ-साथ वापस आना रोज का नियम था। साथ-साथ रहने, खेलने से दोस्ती की प्रगाढ़ता दिनोदिन बढ़ती जा रही थी। कॉलोनी में कई मकान किराए पर थे, क्योंकि उनके मालिक दूसरी जगह नौकरियों में थे और उन्होंने मकान किराए पर दे दिए थे। बिजली-पानी की व्यवस्था भी ठीक थी, परंतु कचरा फेंकने के मामले में लोग लापरवाही करते रहते थे।कॉलोनी में हालाकि एक स्वीपर 50 रुपए प्रतिमाह देने पर कचरा गाड़ी लेकर आ जाता था और कचरा ले जाता था। कई लोग इस सुविधा का लाभ भी ले रहे थे, परंतु कुछ सिरफिरे लोग 50 रुपए बचाने के चक्कर में कचरा इधर-उधर सड़क के किनारे ही फेंक देते थे।