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Written By भाषा

इंदिरा गांधी : देश की प्रथम महिला प्रधानमंत्री

31 अक्टूबर : पुण्यतिथि पर विशेष

Indira Gandhi | इंदिरा गांधी : देश की प्रथम महिला प्रधानमंत्री
जन्म : 19 नवंबर 1917
मृत्यु : 31 अक्टूबर 1984
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रूसी क्रांति के साल 1917 में 19 नवंबर को पैदा हुईं इंदिरा गांधी ने 1971 के युद्ध में विश्व शक्तियों के सामने न झुकने के नीतिगत और समयानुकूल निर्णय क्षमता से पाकिस्तान को परास्त किया और बांग्लादेश को मुक्ति दिलाकर स्वतंत्र भारत को एक नया गौरवपूर्ण क्षण दिलवाया।

दृढ़ निश्चयी और किसी भी परिस्थिति से जूझने और जीतने की क्षमता रखने वाली प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने न केवल इतिहास बल्कि पाकिस्तान को विभाजित कर दक्षिण एशिया के भूगोल को ही बदल डाला और 1962 के भारत चीन युद्ध की अपमानजनक पराजय की कड़वाहट धूमिल कर भारतीयों में जोश का संचार किया।

देश की प्रथम महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी (1917-1984) के साथ काम कर चुके और पूर्व विदेश मंत्री नटवर सिंह ने कहा- ‘वह एक बड़ी राजनेता थीं और उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि बांग्लादेश की स्वतंत्रता थी। इसके जरिए उन्होंने भूगोल को ही बदल कर रख दिया।’ उस समय भारत के लिए पूर्वी पाकिस्तान पर आक्रमण करना कोई आसान काम नहीं था। अमेरिका और चीन की तरफ से भी भारत पर दबाव बनाया जा रहा था। लेकिन इंदिरा उस समय आत्मविश्वास से लबरेज थीं।

उन्होंने एक कार्यक्रम में बीबीसी से कहा था, ‘हम लोग इस बात पर निर्भर नहीं है कि दूसरे क्या सोचते हैं... हमें यह पता हैं कि हम क्या करना चाहते हैं और हम क्या करने जा रहे हैं। चाहे उसकी कीमत कुछ भी हो।’

स्वप्नदर्शी राजनेता जवाहर लाल नेहरू ने भारत में कई महत्वपूर्ण पहल कीं, लेकिन उन्हें अमली जामा इंदिरा गांधी ने पहनाया। चाहे रजवाड़ों के प्रिवी पर्स समाप्त करना, बैंकों का राष्ट्रीयकरण हो अथवा कोयला उद्योग का राष्ट्रीयकरण... इनके जरिए उन्होंने अपने आपको गरीबों और आम आदमी का समर्थक साबित करने की कोशिश की।

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राजनीति में कदम रखने पर कुछ लोगों ने इंदिरा को ‘गूंगी गुड़िया’ कहा था। लेकिन वह सदैव अपने विरोधियों पर बीस साबित होती थीं। नटवर सिंह ने कहा, ‘इंदिरा गांधी हमेशा अपने विरोधियों पर भारी पड़ती थीं। चौथे राष्ट्रपति चुनाव में कांग्रेस पार्टी के आधिकारिक उम्मीदवार नीलम संजीव रेड्डी की जगह वराहगिरी वेंकट गिरी को जीता कर उन्होंने इसे और पुख्ता किया था।’

बीबीसी के पूर्व संवाददाता मार्क टली ने कहा, ‘इंदिरा गांधी को ‘दुर्गा’, ‘लौह महिला’, ‘भारत की साम्राज्ञी’ और भी न जाने कि कितने विशेषण दिए गए थे जो एक ऐसी नेता की ओर इशारा करते थे जो आज्ञा का पालन करवाने और डंडे के जोर पर शासन करने की क्षमता रखती थी।’ मौजूदा जटिल दौर में देश के कई कोनों से नेतृत्व संकट की आवाज उठ रही है।

वरिष्ठ समाजशास्त्री आशीष नंदी ने कहा, ‘नेतृत्व की पहचान गुडी़-गुडी़ छवि के लिए नहीं, उसके मजबूत समर्थन और विरोध से बनती है। ऐसा न उसके चाहने से होता है, न उनके विरोधियों के। कठिन चुनौतियों का सामना करते हुए उन्हें मजबूती से कुछ चीजों के, कुछ मूल्यों के पक्ष में खड़ा होना होता है और कुछ की उतनी ही तीव्रता से मुखालफत करनी होती है। आज भारत के इतिहास में इंदिरा गांधी की छवि कुछ ऐसे ही संकल्पशील नेता की है।’

इंदिरा गांधी 16 वर्ष देश की प्रधानमंत्री रहीं और उनके शासनकाल में कई उतार-चढ़ाव आए। लेकिन 1975 में आपातकाल लागू करने के फैसले को लेकर इंदिरा गांधी को भारी विरोध-प्रदर्शन और तीखी आलोचनाएं झेलनी पड़ी थी। आलोचकों ने इसे लोकतंत्र और मीडिया पर हमला बताया और कहीं न कहीं भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि भी प्रभावित हुआ।

नटवर सिंह ने कहा, ‘इंदिरा गांधी ने खुद ही आपातकाल खत्म कर आम चुनाव करवाया। हालांकि कांग्रेस को 1977 के चुनाव में हार का सामना करना पड़ा, लेकिन 1980 में उन्होंने भारी बहुमत से वापसी की। फिर 1983 में उन्होंने नई दिल्ली में निर्गुट सम्मेलन और उसी साल नवंबर में राष्ट्रमंडल राष्ट्राध्यक्षों के सम्मेलन का आयोजन किया। इनसे भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि सशक्त हुई।’

आशीष नंदी ने कहा ‘अंतरिक्ष, परमाणु विज्ञान, कंप्यूटर विज्ञान में भारत की आज जैसी स्थिति की कल्पना इंदिरा गांधी के बगैर नहीं की जा सकती थी। हर राजनेता की तरह इंदिरा गांधी की भी कमजोरियां हो सकती हैं, लेकिन एक राष्ट्र के रूप में भारत को यूटोपिया से निकालकर यथार्थ के धरातल पर उतारने का श्रेय उन्हें ही जाता है।’ ऑपरेशन ब्लू स्टार के बाद उपजे तनाव के बीच उनके निजी अंगरक्षकों ने ही 31 अक्टूबर 1984 को गोली मार कर इंदिरा गांधी की हत्या कर दी थी। (भाषा)