एक बार की बात है, घने जंगल में एक उन्मत्त हाथी ने भारी उत्पात मचा रखा था। वह अपनी ताकत के नशे में चूर होने के कारण किसी को कुछ नहीं समझता था।
एक पेड़ पर एक चिड़िया व चिड़े का छोटा-सा सुखी संसार था। चिड़िया अंडों पर बैठी नन्हे-नन्हे प्यारे बच्चों के निकलने के सुनहरे सपने देखती रहती। एक दिन क्रूर हाथी गरजता, चिंघाड़ता पेडों को तोड़ता-मरोड़ता उसी ओर आया। देखते ही देखते उसने चिड़िया के घोंसले वाला पेड़ भी तोड़ डाला। घोंसला नीचे आ गिरा। अंडे टूट गए और ऊपर से हाथी का पैर उस पर पड़ा।
चिड़िया और चिड़ा चीखने-चिल्लाने के सिवा और कुछ न कर सके। हाथी के जाने के बाद चिड़िया छाती पीट-पीटकर रोने लगी। तभी वहां कठफोड़वी आई। वह चिड़िया की अच्छी मित्र थी। कठफोड़वी ने उनके रोने का कारण पूछा तो चिड़िया ने अपनी सारी कहानी कह डाली। कठफोड़वी बोली- 'इस प्रकार गम में डूबे रहने से कुछ नहीं होगा। उस हाथी को सबक सिखाने के लिए हमें कुछ करना होगा।'
चिड़िया ने निराशा दिखाई- 'हम छोटे-मोटे जीव उस बलशाली हाथी से कैसे टक्कर ले सकते हैं?'
कठफोड़वी ने समझाया- 'एक और एक मिलकर ग्यारह बनते हैं। हम अपनी शक्तियां जोड़ेंगे।
'कैसे?' चिड़िया ने पूछा।
'मेरा एक मित्र भंवरा हैं। हमें उससे सलाह लेना चाहिए।'
चिड़िया और कठफोड़वी भंवरे से मिली। भंवरा गुनगुनाया- 'यह तो बहुत बुरा हुआ। मेरा एक मेंढक मित्र हैं आओ, उससे सहायता मांगे।'
अब तीनों उस सरोवर के किनारे पहुंचे, जहां वह मेंढक रहता था। भंवरे ने सारी समस्या बताई। मेंढक भर्राए स्वर में बोला- 'आप लोग धैर्य से जरा यहीं मेरी प्रतीक्षा करें। मैं गहरे पाने में बैठकर सोचता हूं।'
ऐसा कहकर मेंढक जल में कूद गया। आधे घंटे बाद वह पानी से बाहर आया तो उसकी आंखें चमक रही थी।
वह बोला- 'दोस्तों! उस हत्यारे हाथी को नष्ट करने की मेरे दिमाग में एक बडी अच्छी योजना आई हैं। उसमें सभी का योगदान होगा।'
मेंढक ने जैसे ही अपनी योजना बताई, सब खुशी से उछल पड़े। योजना सचमुच ही अदभुत थी। मेंढक ने दोबारा बारी-बारी सबको अपना-अपना रोल समझाया।
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कुछ ही दूर वह उन्मत्त हाथी तोड़-फोड़ मचाकर व पेट भरकर कोंपलों वाली शाखाएं खाकर मस्ती में खड़ा झूम रहा था। पहला काम भंवरे का था। वह हाथी के कानों के पास जाकर मधुर राग गुंजाने लगा। राग सुनकर हाथी मस्त होकर आंखें बंद करके झूमने लगा।
तभी कठफोड़वी ने अपना काम कर दिखाया। वह आई और अपनी सुई जैसी नुकीली चोंच से उसने तेजी से हाथी की दोनों आंखें बींध डाली। हाथी की आंखें फूट गईं। वह तडपता हुआ अंधा होकर इधर-उधर भागने लगा।
जैसे-जैसे समय बीतता जा रहा था, हाथी का क्रोध बढ़ता जा रहा था। आंखों से नजर न आने के कारण ठोकरों और टक्करों से शरीर जख्मी होता जा रहा था। जख्म उसे और चिल्लाने पर मजबूर कर रहे थे।
चिड़िया कृतज्ञ स्वर में मेंढक से बोली- 'भैया, मैं आजीवन तुम्हारी आभारी रहूंगी। तुमने मेरी इतनी सहायता कर दी।'
मेढक ने कहा- 'आभार मानने की जरूरत नहीं। मित्र ही मित्रों के काम आते हैं।'
एक तो आंखों में जलन और ऊपर से चिल्लाते-चिंघाडते हाथी का गला सूख गया। उसे तेज प्यास लगने लगी। अब उसे एक ही चीज की तलाश थी, पानी।
मेंढक ने अपने बहुत से बंधु-बांधवों को इकट्ठा किया और उन्हें ले जाकर दूर बहुत बड़े गड्ढे के किनारे बैठकर टर्राने के लिए कहा। सारे मेंढक टर्राने लगे।
मेंढक की टर्राहट सुनकर हाथी के कान खड़े हो गए। वह यह जानता था कि मेंढक जल स्त्रोत के निकट ही वास करते हैं। वह उसी दिशा में चल पड़ा।
टर्राहट और तेज होती जा रही थी। प्यासा हाथी और तेज भागने लगा।
जैसे ही हाथी गड्ढे के निकट पहुंचा, मेढकों ने पूरा जोर लगाकर टर्राना शुरू किया। हाथी आगे बढ़ा और विशाल पत्थर की तरह गड्ढे में गिर पड़ा, जहां उसके प्राण पखेरू उड़ते देर न लगी। इस प्रकार उस अहंकार में डूबे हाथी का अंत हुआ।
सीख :- एकता में बल हैं। एकजुट होकर बड़े से बड़ा कार्य भी आसानी से किया जा सकता है। अहंकारी का देर या सबेर अंत होता ही हैं।