• Webdunia Deals
  1. समाचार
  2. खोज-खबर
  3. रोचक-रोमांचक
  4. Kutiya maharani ka mandir Jhansi
Written By
Last Modified: शुक्रवार, 17 फ़रवरी 2023 (16:39 IST)

झांसी जिले के कुतिया महारानी मंदिर का क्या है सच?

झांसी जिले के कुतिया महारानी मंदिर का क्या है सच? - Kutiya maharani ka mandir Jhansi
कुछ दिनों से एक फोटो वायरल हो रहा है जिसमें एक छोटे से चबूतरे पर बने आलिये में एक कुतिया की मूर्ति बनी है, जहां कुछ गांव वाले अन्न-जल आदि चढ़ाने आते हैं। कुछ लोग इसका मजाक उड़ा रहे हैं और कुछ लोगों का मानना है कि यह मंदिर नहीं है बल्कि इसके पीछे की कहानी को समझना जरूरी है। लोगों का माना है कि सड़क किनारे बना यह ओटला मंदिर नहीं है। इसे मंदिर करना गलत है। यह तो लोगों की आस्था, भावना और पश्‍चाताप का एक केंद्र एक चबूतरा है। 
 
कहां है ये मंदिर : बुंदेलखंड क्षेत्र के झांसी जनपद में स्थित मऊरानीपुर के गांव रेवन और ककवारा गांवों के बीच लिंक रोड पर कुतिया महारानी मां का एक स्थान है, जिसमें काली कुतिया की मूर्ति स्थापित है। आस्था के केंद्र इस मंदिर में लोग प्रतिदिन अन्न जल अर्पित करते हैं। श्रद्धालु यहां सुख-समृद्धि और परिवार एवं फसलों की खुशहाली की मन्नतें मांगते हैं।
 
झांसी के मऊरानीपुर के गांव रेवन और ककवारा के बीच लगभग तीन किलोमीटर का फासला है। इन दोनों गांवों को आपस में जोड़ने वाले लिंक रोड के बीच सड़क किनारे एक चबूतरा बना है। इस चबूतरे पर एक छोटा सा मंदिरनुमा मठ बना हुआ है। इसमें काली कुतिया की मूर्ति स्थापित है। मूर्ति के बाहर लोहे की जालियां लगाई गई हैं, ताकि कोई इस मूर्ति को नुकसान न पहुंचा सके।
 
इस मंदिर पर आसपास के गांवों की महिलाएं प्रतिदिन जल चढ़ाने आती हैं और यहां पूजा-अर्चना कर अपने परिवार की खुशहाली का आशीर्वाद मांगती हैं। वैसे तो आबादी से दूर यह छोटा सा मंदिर सुनसान सड़क पर बना है, मगर यहां के लोगों की कुतिया महारानी के प्रति अपार श्रद्धा है। ग्रामीणों के मुताबिक, कुतिया का यह मंदिर उनकी आस्था का केंद्र है।
 
क्या है इस चबूतरे के बनने की कहानी : बताया जाता है कि दोनों गांवों में जब भी किसी भी आयोजन में होने वाला खाना यानी पंगत होती थी, तो यह कुतिया वहां पहुंचकर पंगत खाती थी। पुराने समय में पंगत शुरू होने से पहले बुंदेलखंडी लोक संगीत का एक वाद्य यंत्र रमतूला बजाया जाता था। उसकी आवाज सुनकर उस आयोजन में आमंत्रित सभी लोग पंगत खाने पहुंच जाते थे। एक बार ककवारा और रेवन दोनों गांवों में कार्यक्रम था। दोनों जगह पंगत होनी थी। कुतिया को भी दोनों जगह जाना था, लेकिन वह उस दिन कुछ बीमार थी।
 
ककवारा का रमतूला जैसे ही बजा, वह ककवारा की ओर दौड़ने लगी। जब तक वह ककवारा पहुंची, वहां पंगत खत्म हो चुकी थी। वह थक कर चूर हो गई। उसने सोचा कुछ आराम कर लूं। वह वहीं लेट गई। इसी दौरान रेवन गांव का रमतूला बजने लगा। कुतिया ने सोचा कि यदि देर हो गई तो रेवन की पंगत भी नहीं मिलेगी और उसे भूखा ही रहना पड़ेगा। यह सोचकर वह रेवन की ओर दौड़ गई। जब तक वह रेवन पहुंची, वहां की भी पंगत खत्म हो गई।
 
दोनों ओर से खाना न मिलने और बीमारी की वजह से वह हताश होकर वापस चल पड़ी और रेवन व ककवारा के बीच एक स्थान पर सड़क किनारे गिरकर बेहोश हो गई और कुछ देर बाद उसकी मौत हो गई। सुबह जब गांव वालों को इसकी जानकारी हुई तो उन्होंने कुतिया के शव को वहीं पर दफना दिया और उसी स्थान पर इस चबूतरे का निर्माण करा दिया। तब से यह कुतिया महारानी मां के मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है।
ये भी पढ़ें
पहली बैठक में होगा दिल्ली में मेयर चुनाव, मनोनीत सदस्य नहीं डाल सकेंगे वोट