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होलिका दहन से पूर्व अवश्य पढ़ें पौराणिक कथा

होलिका दहन से पूर्व अवश्य पढ़ें पौराणिक कथा - Holi Katha
होली की पूर्व संध्या में होलिका दहन किया जाता है। इसके पीछे एक प्राचीन कथा है कि असुर हिरण्यकश्यप भगवान विष्णु से घोर शत्रुता रखता था। इसने अपनी शक्ति के घमंड में आकर स्वयं को ईश्वर कहना शुरू कर दिया और घोषणा कर दी कि राज्य में केवल उसी की पूजा की जाएगी। उसने अपने राज्य में यज्ञ और आहुति बंद करवा दी और भगवान के भक्तों को सताना शुरू कर दिया। 








हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का परम भक्त था। पिता के लाख कहने के बावजूद प्रह्लाद विष्णु की भक्ति करता रहा।  असुराधिपति हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र को मारने की भी कई बार कोशिश की परंतु भगवान स्वयं उसकी रक्षा करते रहे और उसका बाल भी बांका नहीं हुआ। असुर राजा की बहन होलिका को भगवान शंकर से ऐसी चादर मिली थी जिसे ओढ़ने पर अग्नि उसे जला नहीं सकती थी। होलिका उस चादर को ओढ़कर प्रह्लाद को गोद में लेकर चिता पर बैठ गई। 
 
दैवयोग से वह चादर उड़कर प्रह्लाद के ऊपर आ गई, जिससे प्रह्लाद की जान बच गई और होलिका जल गई। होलिका दहन के दिन होली जलाकर होलिका नामक दुर्भावना का अंत और भगवान द्वारा भक्त की रक्षा का जश्न मनाया जाता है। 

होली का त्योहार प्रेम और सद्भावना से जुडा़ त्योहार है, जिसमें अध्यात्म का अनोखा रूप झलकता है। इस त्योहार को रंग और गुलाल  के साथ मानने की परम्परा है। इस त्योहार के साथ कई पौराणिक कथाएं एवं मान्यताएं जुड़ी हुई हैं। 
पौराणिक महत्व 
होली का त्योहार भारतवर्ष में अतिप्राचीन काल से मनाया जाता आ रहा है। इतिहास की दृष्टि से देखें तो यह वैदिक काल से मनाया जाता आ रहा है। हिन्दू मास के अनुसार होली के दिन से नए संवत की शुरुआत होती है। चैत्र कृष्ण प्रतिप्रदा के दिन धरती पर प्रथम  मानव मनु का जन्म हुआ था। इसी दिन कामदेव का पुनर्जन्म हुआ था।

इन सभी खुशियों को व्यक्त करने के लिए रंगोत्सव मनाया जाता है। इसके अलावा हुडदंग और रंगोत्सव का यह भी कारण बताया जाता है कि नृसिंह रूप में भगवान इसी दिन प्रकट हुए थे और हिरण्यकश्य नामक महाअसुर का वध कर भक्त प्रह्लाद को दर्शन दिए थे।