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जनवरी माह के नए वर्ष का प्रथम माह बनने का इतिहास

History of Calendar | जनवरी माह के नए वर्ष का प्रथम माह बनने का इतिहास
बहुत प्राचीन समय से ही मार्च में नए वर्ष के प्रारंभ होने का दुनियाभर में प्रचलन रहा है। मार्च में आज भी दुनियाभर में बही खाते बदलने, खाताबंदी करने या कंपनियों में मार्च एंडिंग के कार्य निपटाने का प्रचलन जारी है। एक अप्रैल को छुट्टी होती थी। दो अप्रैल से फिर से नया कामकाज प्रारंभ होता था। दुनिया का लगभग प्रत्येक कैलेण्डर सर्दी के बाद बसंत ऋतु से ही प्रारम्भ होता है, यहां तक की ईस्वी सन वाला कैलेंडर (जो आजकल प्रचलन में है) वो भी कभी मार्च से ही प्रारम्भ होता था। यह यह कैलेंडर भी विक्रम संवत पर आधारित ही है। आओ जानते हैं इस अंग्रेंजी कैलेंडर का इतिहास, जो कभी रोमन कैलेंडर हुआ करता था।
 
 
रोमन से बना ग्रेगेरियन कैलेंडर
प्राचीन दुनिया में भारत, रोम और ग्रीक (यूनानी) शासक ही दुनियाभर में सक्रिय थे। उक्त क्षेत्र में जो भी नया होता था वह संपूर्ण दुनिया में प्रचलित हो जाता था। विक्रम संवत के चैत्र माह की तरह ही प्राचीन रोमन कैलेंडर भी चैत्र अथार्त मार्च माह में प्रारंभ होता था। प्राचीन रोमन कैलेण्डर में मात्र 10 माह होते थे और वर्ष का शुभारम्भ 1 मार्च से होता था। बहुत समय बाद 713 ईस्वी पूर्व के करीब इसमें जनवरी तथा फरवरी माह जोड़े गए। सर्वप्रथम 153 ईस्वी पूर्व में 1 जनवरी को वर्ष का शुभारम्भ माना गया एवं 45 ईस्वी पूर्व में जब रोम के तानाशाह जूलियस सीजर द्वारा जूलियन कैलेण्डर का शुभारम्भ हुआ, तो यह सिलसिला बरकरार रखा गया। ऐसा करने के लिए जूलियस सीजर को पिछला साल, यानि, ईसा पूर्व 46 ई. को 445 दिनों का करना पड़ा था।
 
1 जनवरी को नववर्ष मनाने का चलन 1582 ईस्वी के ग्रेगेरियन कैलेंडर के आरम्भ के बाद हुआ। दुनियाभर में प्रचलित ग्रेगेरियन कैलेंडर को पोप ग्रेगरी अष्टम ने 1582 में तैयार किया था। ग्रेगरी ने इसमें लीप ईयर का प्रावधान भी किया था। ईसाईयों का एक अन्य पंथ ईस्टर्न आर्थोडॉक्स चर्च रोमन कैलेंडर को मानता है। इस कैलेंडर के अनुसार नया साल 14 जनवरी को मनाया जाता है। यही वजह है कि आर्थोडॉक्स चर्च को मानने वाले देशों रूस, जार्जिया, येरुशलम और सर्बिया में नया साल 14 जनवरी को मनाया जाता है।
 
रोम का सबसे पुराना कैलेंडर वहां के राजा न्यूमा पोंपिलियस के समय का माना जाता है। यह राजा ईसा पूर्व सातवीं शताब्दी में था। आज विश्वभर में जो कैलेंडर प्रयोग में लाया जाता है उसका आधार रोमन सम्राट जूलियस सीजर का ईसा पूर्व पहली शताब्दी में बनाया कैलेंडर ही है। जूलियस सीजर ने कैलेंडर को सही बनाने में यूनानी ज्योतिषी सोसिजिनीस की सहायता ली थी। इस नए कैलेंडर की शुरुआत जनवरी से मानी गई है। इसे ईसा के जन्म से छियालीस वर्ष पूर्व लागू किया गया था। जूलियस सीजर के कैलेंडर को ईसाई धर्म मानने वाले सभी देशों ने स्वीकार किया। उन्होंने वर्षों की गिनती ईसा के जन्म से की। जन्म के पूर्व के वर्ष बी.सी. (बिफोर क्राइस्ट) कहलाए और (बाद के) ए.डी. (आफ्टर डेथ) जन्म पूर्व के वर्षों की गिनती पीछे को आती है, जन्म के बाद के वर्षों की गिनती आगे को बढ़ती है। सौ वर्षों की एक शताब्दी होती है।
 
कुछ लोगों अनुसार सबसे पहले रोमन सम्राट रोम्युलस ने जो कैलेंडर बनवाया था वह 10 माह का था। बाद में सम्राट पोम्पीलस ने इस कैलेंडर में जनवरी और फरवरी माह को जोड़ा। इस कैलेंडर में बारहवां महीना फरवरी था। कहते हैं कि जब बाद में जुलियस सीजर सिंहासन पर बैठा तो उसने जनवरी माह को ही वर्ष का पहला माहीना घोषित कर दिया।
 
इस कैलेंडर में पांचवां महीने का नाम 'क्विटिलस' था। इसी महीने में जुलियस सीजर का जन्म हुआ था। अत: 'क्विटिलस' का नाम बदल कर जुला रख दिया गया। यह जुला ही आगे चलकर जुलाई हो गया। जुलियस सीजर के बाद 37 ईस्वी पूर्व आक्टेबियन रोम साम्राय का सम्राट बना। उसके महान कार्यों को देखते हुए उसे 'इंपेरेटर' तथा 'ऑगस्टस' की उपाधि प्रदान की गई। उस काल में भारत में विक्रमादित्य की उपाधी प्रदान की जाती थी।...
 
आक्टेबियन के समय तक वर्ष के आठवें महीना का नाम 'सैबिस्टालिस' था। सम्राट के आदेश पर इसे बदलकर सम्राट 'ऑगस्टस आक्टेवियन' के नाम पर ऑगस्टस रख दिया गया। यही ऑगस्टस बाद में बिगड़कर अगस्त हो गया। उस काल में सातवें माह में 31 और आठवें माह में 30 दिन होते हैं। चूंकि सातवां माह जुलियस सीजर के नाम पर जुलाई था और उसके माह के दिन ऑगस्टस माह के दिन से ज्यादा थे तो यह बात ऑगस्टस राजा को पसंद नहीं आई। अत: उस समय के फरवरी के 29 दिनों में से एक दिन काटकर अगस्त में जोड़ दिया गया।
 
इस कैलेंडर में कई बार सुधार किए गए पहली बार इसमें सुधार पोप ग्रेगरी तेरहवें के काल में 2 मार्च, 1582 में उनके आदेश पर हुआ। चूंकि यह पोप ग्रेगरी ने सुधार कराया था इसलिए इसका नाम ग्रेगेरियन कैलेंडर रखा गया। फिर सन 1752 में इसे पुन: संशोधित किया गया तब सितंबर 1752 में 2 तारीख के बाद सीधे 14 तारीख का प्रावधान कर संतुलित किया गया। अर्थात सितंबर 1752 में मात्र 19 दिन ही थे। तब से ही इसके सुधरे रूप को अंतरराष्ट्रीय मान्यता मिली।
 
इस कैलेण्डर को शुरुआत में पुर्तगाल, जर्मनी, स्पेन तथा इटली में अपनाया गया। सन 1700 में स्वीडन और डेनमार्क में लागू किया गया। 1752 में इंग्लैण्ड और संयुक्त राय अमेरिका ने 1873 में जापान और 1911 में इसे चीन ने अपनाया। इसी बीच इंग्लैण्ड के सभी उपनिवेशों (गुलाम देशों) और अमेरिकी देशों में यही कैलेंडर अपनाया गया। भारत में इसका प्रचलन अंग्रेजी शासन के दौरान हुआ।
 
इस कैलेंडर के महीनों का विवरण इस प्रकार है:-
जनवरी : रोमन देवता 'जेनस' के नाम पर वर्ष के पहले महीने जनवरी का नामकरण हुआ। जेनस को लैटिन में जैनअरिस कहा गया। जेनस जो बाद में जेनुअरी बना जो हिन्दी में जनवरी हो गया।
 
फरवरी : इस महीने का संबंध लेटिन के फैबरा से है। इसका अर्थ है 'शुद्धि की दावत।' कुछ लोग फरवरी नाम का संबंध रोम की एक देवी फेबरुएरिया से भी मानते हैं।
 
मार्च : रोमन देवता 'मार्स' के नाम पर मार्च महीने का नामकरण हुआ। रोमन वर्ष का प्रारंभ इसी महीने से होता था। मार्स मार्टिअस का अपभ्रंश है जो आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है। सर्दियां समाप्त होने पर लोग शत्रु देश पर आक्रमण करते थे इसलिए इस महीने को मार्च नाम से पुकारा गया। मार्च पास्ट इसी से बना।
 
अप्रैल : इस महीने की उत्पत्ति लैटिन शब्द 'एस्पेरायर' से हुई। इसका अर्थ है खुलना। रोम में इसी माह कलियां खिलकर फूल बनती थीं अर्थात बसंत का आगमन होता था इसलिए प्रारंभ में इस माह का नाम एप्रिलिस रखा गया। वैज्ञानिकों ने पृथ्वी के सही भ्रमण की जानकारी से दुनिया को अवगत कराया तब वर्ष में दो महीने और जोड़कर एप्रिलिस का नाम पुनः सार्थक किया गया।
 
मई : रोमन देवता मरकरी की माता 'मइया' के नाम पर मई नामकरण हुआ। मई का तात्पर्य 'बड़े-बुजुर्ग रईस' हैं। मई नाम की उत्पत्ति लैटिन के मेजोरेस से भी मानी जाती है।
 
जून : इस महीने लोग शादी करके घर बसाते थे। इसलिए परिवार के लिए उपयोग होने वाले लैटिन शब्द जेन्स के आधार पर जून का नामकरण हुआ। एक अन्य मतानुसार जिस प्रकार हमारे यहां इंद्र को देवताओं का स्वामी माना गया है उसी प्रकार रोम में भी सबसे बड़े देवता जीयस हैं एवं उनकी पत्नी का नाम है जूनो। इसी देवी के नाम पर जून का नामकरण हुआ।
 
जुलाई : राजा जूलियस सीजर का जन्म एवं मृत्यु दोनों जुलाई में हुई। इसलिए इस महीने का नाम जुलाई कर दिया गया।
 
अगस्त : जूलियस सीजर के भतीजे ऑगस्टस सीजर ने अपने नाम को अमर बनाने के लिए सेक्सटिलिस का नाम बदलकर ऑगस्टस कर दिया जो बाद में केवल अगस्त रह गया।
 
सितंबर : रोम में सैप्टेंबर कहा जाता था। सेप्टैंबर में सेप्टै लेटिन शब्द है जिसका अर्थ है सात एवं बर का अर्थ है वां, यानी सेप्टैंबर का अर्थ सातवां किन्तु बाद में यह नौवां महीना बन गया। यह सैप्टेंबर भारत में सितंबर कहा जाने लगा।
 
अक्टूबर : इसे लैटिन 'आक्ट' (आठ) के आधार पर अक्टूबर या आठवां कहते थे किंतु दसवां महीना होने पर भी इसका नाम अक्टूबर ही चलता रहा। दरवसल, जनवरी और फरवरी माह को जोड़ने और जनवरी को पहला माहीना बनाने के कारण यह क्रम गड़बड़ा गया।
 
नवंबर : नवंबर को लैटिन में पहले 'नोवेम्बर' यानी नौवां कहा गया। ग्यारहवां महीना बनने पर भी इसका नाम नहीं बदला एवं इसे नोवेम्बर से नवंबर कहा जाने लगा।
 
दिसंबर : इसी प्रकार लैटिन डेसेम के आधार पर दिसंबर महीने को डेसेंबर कहा गया। वर्ष का 12वां महीना बनने पर भी इसका नाम नहीं बदला।
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