ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित, बांंग्ला भाषा की कलम थामे उम्दा साहित्य का सृजन करने वालीं प्रसिद्ध साहित्यकार और समाज सेविका 90 वर्षीय महाश्वेता देवी का 28 जुलाई गुरूवार को निधन हो गया।
बांग्ला साहित्य की इस महान साहित्यकार का जन्म 14 जनवरी सन 1926 में ढाका में उस वक्त हुआ, जब वह भारत का ही हिस्सा था। महाश्वेता देवी ने एक साहित्यिक परिवार में जन्म लिया, जिसका असर उनके व्यक्तित्व और कृतित्व पर ताउम्र दिखाई दिया। उनके पिता मनीष कटक एक कवि और उपन्यासकार थे, और उनकी माता धारीत्री देवी एक लेखिका और समाज सेविका थीं। महाश्वेता देवी में साहित्य और समाज की समझ अपने परिवार में संस्कारों के साथ पाई।
अपनी स्कूली शिक्षा ढाका में पूर्ण करने के बाद उन्होंने विश्वभारती शांति निकेतन से अंग्रेजी में बी.ए ऑनर्स और इसके बाद कोलकाता विश्वविद्यालय से इसी विषय में एम.ए ऑनर्स की डिग्री प्राप्त की। पढ़ाई पूरी करने बाद उन्होंने एक शिक्षक और पत्रकार के रूप में अपने जीवन की नई पारी शुरू की। बाद में वे कोलकाता विश्वविद्यालय में व्याख्याता भी रहीं। 1984 में उन्होंने अपना पूरा ध्यान लेखन पर केंद्रित करते हुए सेवानिवृत्ति ले ली।
काफी कम उम्र में लेखन की शुरुआत करने वालीं महाश्वेता देवी ने अपने साहित्यिक सफर के दौरान कई पत्रिकाओं में लघुकथाएं लिखी और बाद में उपन्यास की रचना की और नाती नामक उपन्यास लिखा। हालांकि 1956 में प्रकाशित झांसी की रानी, महाश्वेता देवी की प्रथम रचना थी, जिसे लिखने के बाद उन्हें अपने भावी कथाकार होने का आभास हुआ था। अर्थात शुरुआत में महाश्वेता देवी के लेखन की मूल विधा कविता थी जो बाद में कहानी और उपन्यास में बदल गई।
बंग्ला और हिन्दी भाषा को मिलाकर अग्निगर्भ, जंगल के दावेदार, 1084 की मां, माहेश्वर, ग्राम बंग्ला, अमृत संचय, आदिवासी कथा, ईंट पर ईंट, उन्तीसवीं धारा का आरोपी, घहराती घटाएं, जकड़न, जली थी अग्निशिखा, मातृछवि, मास्टर साब, मीलू के लिए स्त्री पर्व, कृष्ण द्वादशी, आदि उनकी प्रमुख रचनाओं में शामिल हैं। अपने संपूर्ण जीवन में महाश्वेता देवी ने 40 से अधिक कहानी संग्रह और सैकड़ों उपन्यास लिखे। महाश्वेता देवी की कुछ रचनाएं हिन्दी में भी काफी पसंद की गईं, लेकिन उनकी मूल भाषा बांग्ला ही रही।
मृत्यु के दो महीने पहले से महाश्वेता देवी कोलकाता में बेले व्यू क्लिनिक में इलाज चला और डॉक्टर्स उम्र के चलते होने वाली बीमारी को वे स्वीकार कर चुकी थीं। अनुसार उनके रक्त में इंफेक्शन था और किडनी फेल हो चुकी थी, जिसके कारण उनकी स्थिति पहले से काफी बिगड़ गई थी।
अपने जीवनकाल में ज्ञानपीठ, पद्मभूषण, साहित्य अकादमी एवं अन्य सम्माननीय पुरस्कार से सम्मानित महाश्वेता देवी ने अपने जीवन में कई अलग-अलग लेकिन महत्वपूर्ण किरदार निभाए। उन्होंने पत्रकारिता से लेकर लेखन, साहित्य, समाज सेवा एवं अन्य कई समाज हित से जुड़े किरदारों को बखूबी निभाया। महाश्वेता देवी ने अपने जीवन में न केवल बेहतरीन साहित्य का सृजन किया बल्कि समाज सेवा के विभिन्न पहलुओं को भी समर्पण के साथ जिया। उन्होंने आदिवासियों के हित में भी अपना अमूल्य सहयोग दिया।
जीवन भर किए गए अपने सृजन और सदकार्यों की महक को दुनिया में बिखेरकर, 90 सालों तक बंग्ला साहित्य की बगिया को पोषित करने वाली महाश्वेता देवी अंतत: 28 जुलाई 2016 इस दुनिया को अलविदा कह गईंं।