मंगलवार, 19 नवंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. लाइफ स्‍टाइल
  2. नन्ही दुनिया
  3. निबंध
  4. Essay on Sukhdev in Hindi
Written By
Last Updated : बुधवार, 23 मार्च 2022 (14:07 IST)

23 मार्च शहीद दिवस - शहीद सुखदेव पर हिंदी में निबंध

23 मार्च शहीद दिवस - शहीद सुखदेव पर हिंदी में निबंध | Essay on Sukhdev in Hindi
देश की आजादी के लिए कई क्रांतिकारियों ने अपने प्राणों की आहुति दी है। अपनी मातृभूमि के लिए प्राण न्योछावर करने वालों में सर्वाधिक विख्यात नाम में सुखदेव का नाम भी शामिल है। 23 मार्च 1931 को एक साथ सुखदेव, राजगुरु और भगत सिंह को फांसी की सजा दी गई थी। इसके बाद सतलज नदी के किनारे अंतिम संस्कार कर दिया था। बस इसके बाद से क्रांति की नई लहर दौड़ पड़ी। इस लेख में जानेंगे शहीद सुखदेव के बारे में। शहीद सुखदेव पर हिंदी में निबंध।

सुखदेव का जन्म और परिवार

सुखदेव का जन्म लुधियाना में 15 मई 1907 को हुआ था। उनके पिता जी  का नाम रामलाल है और माता का नाम श्रीमती लल्ली देवी था। बचपन से ही सुखदेव ने ब्रिटिश राज के अत्याचारों को समझना शुरू कर दिया था।  छोटी उम्र में ही वह समझ गए थे कि देश के लिए आजादी कितनी महत्पवपूर्ण है। सुखदेव के भाई का नाम मथुरादास थापड़ था और भतीजे का नाम भारत भूषण थापड़ था। सूखदेव और भगत सिंह से काफी गहरी दोस्ती थी। दोनों का एक ही लक्ष्य था देश की आजादी। अंतिम क्षण तक दोनों साथ थे।  

सुखदेव का क्रांतिकारी जीवन

सुखदेव हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन के सदस्य थे। वे पंजाब और उत्तर प्रदेश के कई शहरों में क्रांतिकारी गतिविधियां संभालते थे।  

देश की आजादी की महत्ता को समझते हुए सुखदेव ने लाहौर में अन्य क्रांतिकारियों के साथ मिलकर ‘नौजवां भारत सभा’ की स्थापना की थी। जिसका मुख्य उद्देश्य था देश के युवाओं को देश की आजादी के महत्व को समझाना, युवाओं को जागरूक करना, उन्हें प्रेरित करना। इसके साथ ही स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने और सांप्रदायिकता को खत्म करने के लिए युवाओं को प्रेरित किया।

सुखदेव द्वारा रचा गया षडयंत्र

सुखदेव ने कई क्रांतिकारी गतिविधियों में हिस्सा लिया। लेकिन एक गतिविधि जिसके लिए उन्हें जीवनभर याद किया जाता है।1929 में ‘जेल की भूख हड़ताल में सक्रिय भूमिका निभाई थी। लाहौर षडयंत्र 18 दिसंबर 1928 में उनके द्वारा किए गए हमले में ब्रिटिश सरकार की नींव को हिलाकर रख दिया था। 1928 में तीनों साथियों सुखदेव, भगतसिंह और राजगुरु ने मिलकर मिलकर पुलिस उप-अधीक्षक जे. पी. सॉन्डर्स की हत्या की थी। दरअसल, पुलिस उप-अधीक्षक की हत्या करने का मकसद, लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेना था।

8 अप्रैल 1929 को नई दिल्ली की सेंट्रल असेंबली में बम विस्फोट करने के कारण उनके साथियों को दोषी ठहराया गया और मौत की सजा सुनाई गई।

23 मार्च 1931 को न्यौछावर किए प्राण

23, मार्च 1931 को, तीनों क्रांतिकारियों, भगत सिंह, राजगुरू और सुखदेव को फांसी दी गई। मात्र 23 वर्ष की उम्र में फांसी पर चढ़ गए। सुखदेव को हमेशा देश के आजादी के लिए, देशभक्ति और जीवन त्याग के लिए याद किया जाएगा।
ये भी पढ़ें
Basoda 2022 : बसौड़ा पर्व पर देवी शीतला को लगाएं यह खास भोग, माता प्रसन्न होकर देंगी आशीष