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Written By WD Feature Desk

lunar eclipse 2024 : चंद्र ग्रहण पर निबंध

lunar eclipse 2024 : चंद्र ग्रहण पर निबंध - Essay on moon eclipse
HIGHLIGHTS
• राहु और केतु, चंद्रमा पर निबंध।
• चंद्र ग्रहण की पौराणिक कथा।
lunar eclipse essay 2024 : प्रस्तावना : चंद्र ग्रहण एक खगोलीय घटना है, जिसे हिन्दू धर्म और ज्योतिष शास्त्र में बहुत ही महत्वपूर्ण घटना माना गया है। धार्मिक शास्त्रों के अनुसार चंद्र ग्रहण पूर्णिमा के दिन होता है। मान्यतानुसार ग्रहण के समय कुछ सावधानियां अवश्य रखनी चाहिए। बता दें कि चंद्र ग्रहण के समय सूर्य, चंद्रमा एवं पृथ्वी एक ही क्रम में होते हैं, जिसके कारण चंद्र ग्रहण लगता है। 
 
चंद्र ग्रहण के प्रकार : चंद्र ग्रहण के कुल 3 प्रकार के होते हैं, जो निम्नलिखित हैं-
1. उपच्‍छाया चंद्र ग्रहण, 2. पूर्ण चंद्र ग्रहण और 3. आंशिक यानी खंडग्रास चंद्र ग्रहण। 
 
आंशिक चंद्र ग्रहण में चंद्रमा को धरती अपनी छाया से आंशिक रूप से ही ढंकती है। जब ग्रहण पूर्णरूपेण दृश्यमान होता है तो उसे खग्रास एवं जब ग्रहण कुछ मात्रा में दृश्यमान होता है तब उसे खंडग्रास कहा जाता है किंतु जब ग्रहण बिल्कुल भी दृश्यमान नहीं होता तो उसे मान्द्य ग्रहण कहा जाता है। ग्रहण के बाद नियम पालन तथा दान का विशेष महत्व माना जाता है। कहा जाता है कि ग्रहण की समाप्ति पर कुछ विशेष चीजों का दान करने से इसका दुष्प्रभाव दूर होता हैं और दुर्घटनाओं से बचाव भी होता हैं। इस दौरान शुभ कार्य वर्जित होते हैं। 
 
सूतक काल : चंद्र ग्रहण के वक्त सूतक काल 9 घंटे पूर्व आरंभ होता है, जबकि सूर्य ग्रहण के दौरान 12 घंटे पहले होता है। ग्रहण काल में जहां-जहां ग्रहण दिखाई देता हैं, वहां-वहां सूतक काल मान्य रहता हैं तथा जहां ग्रहण नहीं दिखाई देता वहां सूतक काल मान्य नहीं होता है। जैसे- भारत के अधिकांश हिस्सों में चंद्र ग्रहण नहीं दिखाई देता है तो वहां सूतक काल मान्य नहीं होगा।
 
सूतक काल के नियम : ग्रहण के सूतक काल के समय घर पर रहना चाहिए। सूतक काल में खाना नहीं बनाना चाहिए। ग्रहण के बाद स्नान कर पूजा करनी चाहिए। भोजन और पानी में तुलसी डालकर रखना चाहिए फिर ही उनका उपयोग करना चाहिए। ग्रहण के मोक्ष के बाद गंगा, यमुना, नर्मदा आदि तट पर जाकर स्नान करना चाहिए, लेकिन यदि यह संभव नहीं हैं तो घर में ही नहाने के पानी में गंगा जल डाल कर स्नान करना चाहिए।
 
कहानी : चंद्र ग्रहण की पौराणिक कथा के अनुसार जब समुद्र मंथन के दौरान देवों और दानवों के बीच अमृत पान को लेकर विवाद हुआ तो इस मसले को सुलझाने के लिए भगवान श्री विष्णु ने मोहिनी एकादशी के दिन मोहिनी रूप धारण किया। और देवता तथा असुरों को अलग-अलग बिठा दिया गया, लेकिन छल से असुर देवताओं की लाइन में आकर बैठ गए और अमृत पान कर लिया।

यह वाकया चंद्रमा और सूर्य ने देख लिया कि असुर राहु देवों की लाइन में बैठकर अमृत पान कर लिया है। तब उन्होंने इस बात की जानकारी भगवान विष्णु को दी। जिसके बाद श्री विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से राहु का सिर धड़ से अलग कर दिया। लेकिन राहु के अमृत पान करने के कारण उसकी मृत्यु नहीं हुई और उसके सिर वाला भाग राहु और धड़ वाला भाग केतु के नाम से जाना गया। इसी वजह से राहु-केतु सूर्य और चंद्रमा को अपना शत्रु मानते हैं तथा पूर्णिमा के दिन चंद्रमा को ग्रस लेते हैं। इसलिए चंद्र ग्रहण होता है।
 
उपसंहार : ज्योतिष में ग्रहण को शुभ घटना नहीं माना जाता है। तथा इस दिन देवी-देवताओं के दर्शन करने की मनाही है, यह अशुभ माना गया है। इस दिन मंदिरों के पट बंद रहते हैं तथा पूजन करने की भी मनाही है। लेकिन चंद्र ग्रहण के दौरान मंत्रों का जाप करना सर्वश्रेष्ठ माना गया है। अत: इस समयावधि में कोई भी मंत्र जप सकते हैं।

ग्रहण के बाद दान चावल, शकर, चांदी तथा दूध का दान करने का विशेष महत्व है। इसी कारण ग्रहण के बाद इन खास वस्तुओं का दान करके ग्रहण के दुष्प्रभाव दूर किए जा सकते हैं। गर्भवती महिलाओं को खासतौर पर ग्रहण के नियमों का पालन करना चाहिए तथा विशेष तौर से अपनी सेहत का खास ध्यान रखना चाहिए।

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