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Written By Author विकास सिंह
Last Updated : सोमवार, 7 नवंबर 2022 (14:13 IST)

गुजरात विधानसभा चुनाव में मुस्लिम वोटर और उनसे जुड़े मुद्दों की कितनी चर्चा?

बिलकिस बानो केस में गुजरात सरकार का रूख क्या बनेगा चुनावी मुद्दा?

गुजरात विधानसभा चुनाव में मुस्लिम वोटर और उनसे जुड़े मुद्दों की कितनी चर्चा? - How much discussion on Muslim voters and issues related to them in Gujarat assembly elections?
गुजरात में विधानसभा चुनाव की तारीखों का एलान हो चुका है और अब चुनाव प्रचार में सियासी दलों ने वोटरों को रिझाने की अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। गुजरात विधानसभा चुनाव वैसे तो विकास का मुद्दा ही सबसे अधिक हावी है और भाजपा इसको जोर शोर से भुना रही है  लेकिन चुनाव की तारीखों के एलान से मोरबी और बिलिकस बानो के दो ऐसे मुद्दे रहे जिस पर भाजपा चुनाव में बैकफुट है।

2002 के गुजरात दंगों में गर्भवती बिलकिस बानो के साथ गैंगरेप हुआ था और उनकी तीन साल की बेटी की दंगाइयों ने उनकी आँखों के सामने हत्या कर दी थी। बिलकिस बानो के बलात्कारियों को राज्य सरकार की सहमति से रिहा कर दिया गया। इस पूरे मुद्दे को लेकर राज्य की भाजपा सरकार की सियासी किरकिरी हुई थी और उसको गुजरात चुनाव से पहले इसे बहुसंख्यक वर्ग की तुष्टिकरण की सियासत से जोड़कर देखा गया था।

बिलकिस बानो का प्रकरण क्या गुजरात चुनाव में मुद्दा है और गुजरात में 10 फीसदी वोट बैंक वाला मुस्लिम समाज का चुनाव को लेकर क्या रुख है इसकी भी चर्चा हो रही है। गुजरात में करीब 10 फीसदी मुस्लिम मतदाता है और राज्य के 182 विधानसभा सीटों में 25 सीटें ऐसी हैं, जहां मुस्लिम मतदाता सियासी पार्टियों को खेल बनाने और बिगाड़ने की ताकत रखते है। ऐसे में जब 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस के कांटे की टक्कर देखने को मिली थी तब इन बार चुनाव में इन 25 सीटों का महत्व अपने आप बहुच बढ़ जाता है और इसी लिए चुनाव रण में सियासी दलों की नजर मुस्लिम वोटरों के रूख पर टिकी हुई है।

अगर गुजरात के चुनावी इतिहास को देखा जाए तो भाजपा मुसलमानों को टिकट नहीं देती है। 2002 के दंगों के बाद भाजपा मुस्लिम उम्मीदवारों से पहरेज करती आई है। 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने एक भी मुस्लिम चेहरों को मैदान में नहीं उतारा था। चुनाव में भले ही भाजपा मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में नहीं उतारती हो लेकिन भाजपा मुस्लिम वोटरों को टारगेट करने के लिए लगातार अभियान चला रही है। चुनाव से ठीक पहले भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा की प्रदेश ईकाई ने मुसलमानों को सधाने के लिए मुस्लिम बाहुल्य वोटरों वाली विधानसभा क्षेत्र में 100 'अल्पसंख्यक मित्र' बनाए हैं।

वहीं 10 फ़ीसदी मस्लिम वोट बैंक वाले राज्य में कांग्रेस भी मुस्लिम उम्मीदवारों से दूरी बनाते हुए दिखाई दे रही है। 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने केवल छह मुसलमानों के टिकट दिया था, जिनमें से तीन को जीत मिली थी। वहीं कांग्रेस इस बार के विधानसभा चुनाव में मुस्लिम के प्रति खुलकर कुछ नहीं बोल रही है।

मुस्लिम से जुड़े मुद्दों पर सियासी दल खमोश!-2002 के गुजरात दंगों के बाद राज्य में मुस्लिम से जुड़े मुद्दों पर सियासी दल पूरी तरह खमोश है। चुनाव से ठीक पहले बिलकिस बानो प्रकरण में आप और कांग्रेस ने जिस तरह चुप्पी ओढ़ी है उससे उनकी सियासी मजबूर समझी जा सकती है। अक्तूबर महीने में गरबा के दौरान पत्थर फेंकने के मामले में कुछ मुस्लिम युवकों को सार्वजनिक रूप से सड़क पर बाँधकर पीटा गया था लेकिन मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस और गुजरात में अपनी सियासी जमीन की तलाश कर रही आप इसको मुद्दा नहीं बना पाई। प्रदेश कांग्रेस की चुप्पी से अल्पसख्यंकों के मन में कांग्रेस के प्रति एक संदेह का माहौल बना दिया है। दरअसल गुजरात में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी भाजपा को कोई ऐसा मुद्दा नहीं देना चाहती है, जिससे वह चुनाव में धार्मिक ध्रुवीकरण कर सके।

हिंदू-मुस्लिम से बड़ा विकास का मुद्दा?-गुजरात विधानसभा चुनाव में हिंदू-मुस्लिम से बड़ा विकास का मुद्दा है। गुजरात की राजनीति के जानकार सुधीर एस रावल कहते हैं कि विधानसभा चुनाव में अब तक विकास का मुद्दा हावी रहा है और चुनाव में अभी हिंदू-मस्लिम पर नहीं आय़ा है। अभी किसी भी राजनीतिक दल ने हिंदू-मुसलमान का मुद्दा नहीं उठाया है। वह कहते है कि गुजरात में आर्थिक विकास हुआ और इसका फायदा हिंदू-मुस्लिम सभी को बिना किसी भेदभाव के हुआ तो अल्पसंख्यक वोटरों का झुकाव भाजपा की ओर हुआ है।

राजनीतिक विश्लेषक सुधीर एस रावल कहते हैं कि चुनाव के एलान से ठीक पहले गुजरात में भाजपा सरकार ने अपनी आखिरी कैबिनेट की बैठक में कॉमन सिविल कोड की जो बात की है उसको आगे चुनाव में भाजपा भुनाने की कोशिश करेगी। इसके साथ गुजरात चुनाव में अभी ब्लेम गेम की सियासत देखने को मिलेगी उसका आधार कुछ भी हो सकता है।

वहीं सुधीर रावल कहते हैं कि गुजरात चुनाव में विकास के साथ प्रमुख मुद्दा रहेगा और भाजपा पांच साल नहीं पिछले 20 साल के सरकार (केशुभाई पटेल की सरकार शामिल नहीं) की उपलब्धियों को जनता को गिनाएगी। वहीं कांग्रेस के साथ आम आदमी पार्टी बेरोजगारी, महंगाई के मुद्दे के साथ मोरबी के साथ भष्टाचार के मुद्दें को उठाएगी।
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