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Last Updated : मंगलवार, 1 मार्च 2016 (14:53 IST)

अटलजी, जिन्होंने कभी हार नहीं मानी

Atal Bihari Vajpayee Profile | Atal Bihari Vajpayee Biography Hindi | अटल बिहारी वाजपेयी बायोग्राफी
भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी के जन्मदिवस पर विशेष
-डॉ. सौरभ मालवीय
टूटे हुए तारों से फूटे वासंती स्वर
पत्थर की छाती में उग आया नव अंकुर
झरे सब पीले पात
कोयल की कुहुक रात
प्राची में अरुणिमा की रेख देख पाता हूं
गीत नया गाता हूं
टूटे हुए सपने की सुने कौन सिसकी
अंतर को चीर व्यथा पलकों पर ठिठकी
हार नहीं मानूंगा
रार नहीं ठानूंगा
काल के कपाल पर लिखता-मिटाता हूं
गीत नया गाता हूं...
 
यह कविता है देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की, जिन्हें सम्मान एवं स्नेह से लोग अटलजी कहकर संबोधित करते हैं। कवि हृदय राजनेता अटल बिहारी वाजपेयी ओजस्वी रचनाकार हैं। अटलजी का जन्म 25 दिसंबर, 1924 को मध्यप्रदेश के ग्वालियर के शिंके का बाड़ा मुहल्ले में हुआ था। उनके पिता पंडित कृष्ण बिहारी वाजपेयी अध्यापन का कार्य करते थे और माता कृष्णा देवी घरेलू महिला थीं। अटलजी अपने माता-पिता की सातवीं संतान थे। उनसे बड़े तीन भाई और तीन बहनें थीं

अटलजी के बड़े भाइयों को अवध बिहारी वाजपेयी, सदा बिहारी वाजपेयी तथा प्रेम बिहारी वाजपेयी के नाम से जाना जाता है। अटलजी बचपन से ही अंतर्मुखी और प्रतिभा संपन्न थे। उनकी प्रारंभिक शिक्षा बड़नगर के गोरखी विद्यालय में हुई। यहां से उन्होंने आठवीं कक्षा तक की शिक्षा प्राप्त की। जब वह पांचवीं कक्षा में थे, तब उन्होंने प्रथम बार भाषण दिया था। लेकिन बड़नगर में उच्च शिक्षा की व्यवस्था न होने के कारण उन्हें ग्वालियर जाना पड़ा।
 
उन्हें विक्टोरिया कॉलेजियट स्कूल में दाख़िल कराया गया, जहां से उन्होंने इंटरमीडिएट तक की पढ़ाई की। इस विद्यालय में रहते हुए उन्होंने वाद-विवाद प्रतियोगिताओं में भाग लिया तथा प्रथम पुरस्कार भी जीता। उन्होंने विक्टोरिया कॉलेज से स्नातक स्तर की शिक्षा ग्रहण की। कॉलेज जीवन में ही उन्होंने राजनीतिक गतिविधियों में भाग लेना आरंभ कर दिया था।
 
आरंभ में वह छात्र संगठन से जुड़े। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख कार्यकर्ता नारायण राव तरटे ने उन्हें बहुत प्रभावित किया। उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के शाखा प्रभारी के रूप में कार्य किया। कॉलेज जीवन में उन्होंने कविताएं लिखनी शुरू कर दी थीं। वह 1943 में कॉलेज यूनियन के सचिव रहे और 1944 में उपाध्यक्ष भी बने।
 
ग्वालियर की स्नातक उपाधि प्राप्त करने के बाद वह कानपुर चले गए। यहां उन्होंने डीएवी महाविद्यालय में प्रवेश लिया। उन्होंने कला में स्नातकोत्तर उपाधि प्रथम श्रेणी में प्राप्त की। इसके बाद वह पीएचडी करने के लिए लखनऊ चले गए। पढ़ाई के साथ-साथ वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्य भी करने लगे। परंतु वह पीएचडी करने में सफलता प्राप्त नहीं कर सके, क्योंकि पत्रकारिता से जुड़ने के कारण उन्हें अध्ययन के लिए समय नहीं मिल रहा था।
 
उस समय राष्ट्रधर्म नामक समाचार-पत्र पंडित दीनदयाल उपाध्याय के संपादन में लखनऊ से मुद्रित हो रहा था। तब अटलजी इसके सह सम्पादक के रूप में कार्य करने लगे। पंडित दीनदयाल उपाध्याय इस समाचार-पत्र का संपादकीय स्वयं लिखते थे और शेष कार्य अटलजी एवं उनके सहायक करते थे। राष्ट्रधर्म समाचार-पत्र का प्रसार बहुत बढ़ गया। ऐसे में इसके लिए स्वयं की प्रेस का प्रबंध किया गया, जिसका नाम भारत प्रेस रखा गया था।

 
कुछ समय के पश्चात भारत प्रेस से मुद्रित होने वाला दूसरा समाचार पत्र पांचजन्य भी प्रकाशित होने लगा। इस समाचार-पत्र का संपादन पूर्ण रूप से अटलजी ही करते थे। 15 अगस्त, 1947 को देश स्वतंत्र हो गया था। कुछ समय के पश्चात 30 जनवरी, 1948 को महात्मा गांधी की हत्या हुई। इसके बाद भारत सरकार ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को प्रतिबंधित कर दिया। इसके साथ ही भारत प्रेस को बंद कर दिया गया, क्योंकि भारत प्रेस भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रभाव क्षेत्र में थी।
 
भारत प्रेस के बंद होने के पश्चात अटलजी इलाहाबाद चले गए। यहां उन्होंने क्राइसिस टाइम्स नामक अंग्रेज़ी साप्ताहिक के लिए कार्य करना आरंभ कर दिया। परंतु जैसे ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर लगा प्रतिबंध हटा, वह पुन: लखनऊ आ गए और उनके संपादन में स्वदेश नामक दैनिक समाचार-पत्र प्रकाशित होने लगा। परंतु हानि के कारण स्वदेश को बंद कर दिया गया। इसलिए वह दिल्ली से प्रकाशित होने वाले समाचार पत्र वीर अर्जुन में कार्य करने लगे। यह दैनिक एवं साप्ताहिक दोनों आधार पर प्रकाशित हो रहा था। वीर अर्जुन का संपादन करते हुए उन्होंने कविताएं लिखना भी जारी रखा।
 
अटलजी को जनसंघ के सबसे पुराने व्यक्तियों में एक माना जाता है। जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर प्रतिबंध लग गया था, तब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने भारतीय जनसंघ का गठन किया था। यह राजनीतिक विचारधारा वाला दल था। वास्तव में इसका जन्म संघ परिवार की राजनीतिक संस्था के रूप में हुआ। डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी इसके अध्यक्ष थे। अटलजी भी उस समय से ही इस दल से जुड़ गए। वह अध्यक्ष के निजी सचिव के रूप में दल का कार्य देख रहे थे।
 
भारतीय जनसंघ ने सर्वप्रथम 1952 के लोकसभा चुनाव में भाग लिया। तब उसका चुनाव चिह्न दीपक था। इस चुनाव में भारतीय जनसंघ को कोई विशेष सफलता प्राप्त नहीं हुई, परंतु इसका कार्य जारी रहा। उस समय भी कश्मीर का मामला अत्यंत संवेदनशील था।
 
डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने अटलजी के साथ जम्मू और कश्मीर के लोगों को जागरूक करने का कार्य किया। परंतु सरकार ने इसे सांप्रदायिक गतिविधि मानते हुए डॉ. मुखर्जी को गिरफ्तार करके जेल भेज दिया, जहां 23 जून, 1953 को जेल में ही उनकी मृत्यु हो गई।
 
अब भारतीय जनसंघ का काम अटलजी प्रमुख रूप से देखने लगे। 1957 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनसंघ को चार स्थानों पर विजय प्राप्त हुई। अटलजी प्रथम बार बलरामपुर सीट से विजयी होकर लोकसभा में पहुंचे। वह इस चुनाव में 10 हजार मतों से विजयी हुए थे। उन्होंने तीन स्थानों से नामांकन पत्र भरा था। बलरामपुर के अलावा उन्होंने लखनऊ और मथुरा से भी नामांकन पत्र भरे थे। परंतु वह शेष दो स्थानों पर हार गए। मथुरा में वह अपनी ज़मानत भी नहीं बचा पाए और लखनऊ में साढ़े बारह हज़ार मतों से पराजय स्वीकार करनी पड़ी।
उस समय किसी भी पार्टी के लिए यह आवश्यक था कि वह कम से कम तीन प्रतिशत मत प्राप्त करे, अन्यथा उस पार्टी की मान्यता समाप्त की जा सकती थी। भारतीय जनसंघ को छह प्रतिशत मत प्राप्त हुए थे। इस चुनाव में हिन्दू महासभा और रामराज्य परिषद जैसे दलों की मान्यता समाप्त हो गई, क्योंकि उन्हें तीन प्रतिशत मत नहीं मिले थे।
 
उन्होंने संसद में अपनी एक अलग पहचान बना ली थी। 1962 के लोकसभा चुनाव में वह पुन: बलरामपुर क्षेत्र से भारतीय जनसंघ के प्रत्याशी बने, परंतु उनकी इस बार पराजय हुई। यह सुखद रहा कि 1962 के चुनाव में जनसंघ ने प्रगति की और उसके 14 प्रतिनिधि संसद पहुंचे। इस संख्या के आधार पर राज्यसभा के लिए जनसंघ को दो सदस्य मनोनीत करने का अधिकार प्राप्त हुआ। ऐसे में अटलजी और पंडित दीनदयाल उपाध्याय राज्यसभा में भेजे गए।
 
फिर 1967 के लोकसभा चुनाव में अटलजी पुन: बलरामपुर की सीट से प्रत्याशी बने और उन्होंने विजय प्राप्त की। उन्होंने 1972 का लोकसभा चुनाव अपने गृहनगर अर्थात ग्वालियर से लड़ा था। उन्होंने बलरामपुर संसदीय चुनाव का परित्याग कर दिया था। उस समय श्रीमती इंदिरा गांधी देश की प्रधानमंत्री थीं, जिन्होंने जून, 1975 में आपातकाल लगाकर विपक्ष के कई नेताओं को जेल में डाल दिया था। इनमें अटलजी भी शामिल थे।
 
उन्होंने जेल में रहते हुए समयानुकूल काव्य की रचना की और आपातकाल के यथार्थ को व्यंग्य के माध्यम से प्रकट किया। जेल में रहते हुए ही उनका स्वास्थ्य खराब हो गया और उन्हें अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में भर्ती कराया गया। लगभग 18 माह के बाद आपातकाल समाप्त हुआ।
 
फिर 1977 में लोकसभा चुनाव हुए, परंतु आपातकाल के कारण श्रीमती इंदिरा गांधी चुनाव हार गईं। विपक्ष द्वारा मोरारजी देसाई के प्रधानमंत्रित्व में जनता पार्टी की सरकार बनी और अटलजी विदेश मंत्री बनाए गए। उन्होंने कई देशों की यात्राएं कीं और भारत का पक्ष रखा। 4 अक्टूबर, 1977 को उन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ के अधिवेशन में हिंदी में संबोधन दिया।
 
इससे पूर्व किसी भी भारतीय नागरिक ने राष्ट्रभाषा का प्रयोग इस मंच पर नहीं किया था। जनता पार्टी सरकार का पतन होने के पश्चात् 1980 में नए चुनाव हुए और इंदिरा गांधी पुन: सत्ता में आ गईं। इसके बाद 1996 तक अटलजी विपक्ष में रहे।
 
1980 में भारतीय जनसंघ के नए स्वरूप में भारतीय जनता पार्टी का गठन हुआ और इसका चुनाव चिह्न कमल का फूल रखा गया। उस समय अटलजी ही भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष नेता थे। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के पश्चात् 1984 में आठवीं लोकसभा के चुनाव हुए, परंतु अटलजी ग्वालियर की अपनी सीट से पराजित हो गए। मगर 1986 में उन्हें राज्यसभा के लिए चुन लिया गया।
 
13 मार्च, 1991 को लोकसभा भंग हो गई और 1991 में फिर लोकसभा चुनाव हुए। फिर 1996 में पुन: लोकसभा के चुनाव हुए। इस चुनाव में भारतीय जनता पार्टी सबसे बड़े दल के रूप में उभरी। संसदीय दल के नेता के रूप में अटलजी प्रधानमंत्री बने। उन्होंने 21 मई, 1996 को प्रधानमंत्री के पद एवं गोपनीयता की शपथ ग्रहण की।
 
31 मई, 1996 को उन्हें अंतिम रूप से बहुमत सिद्ध करना था, परंतु विपक्ष संगठित नहीं था। इस कारण अटलजी मात्र 13 दिनों तक ही प्रधानमंत्री रहे। इसके बाद वह अप्रैल, 1999 से अक्टूबर 1999 तक कार्यवाहक प्रधानमंत्री रहे। 1999 के लोकसभा चुनाव में एनडीए को स्पष्ट बहुमत प्राप्त हुआ और 13 अक्टूबर, 1999 को अटलजी ने प्रधानमंत्री के रूप में पद एवं गोपनीयता की शपथ ली। इस प्रकार वह तीसरी बार प्रधानमंत्री बने और अपना कार्यकाल पूरा किया।
 
पत्रकार के रूप में अपना जीवन आरंभ करने वाले अटलजी को कई पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है। राष्ट्र के प्रति उनकी समर्पित सेवाओं के लिए वर्ष 1992 में राष्ट्रपति ने उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया। वर्ष 1993 में कानपुर विश्वविद्यालय ने उन्हें डी लिट की उपाधि प्रदान की। उन्हें 1994 में लोकमान्य तिलक पुरस्कार दिया गया। वर्ष 1994 में श्रेष्ठ सासंद चुना गया तथा पंडित गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इसी वर्ष 27 मार्च, 2015 भारत रत्न पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
 
अटलजी ने कई पुस्तकें लिखी हैं, जिनमें कैदी कविराय की कुंडलियां, न्यू डाइमेंशन ऑफ़ एशियन फ़ोरेन पोलिसी, मृत्यु या हत्या, जनसंघ और मुसलमान, मेरी इक्यावन कविताएं, मेरी संसदीय यात्रा (चार खंड), संकल्प-काल एवं गठबंधन की राजनीति सम्मिलित हैं।
 
अटलजी को इस बात का बहुत हर्ष है कि उनका जन्म 25 दिसंबर को हुआ। वह कहते हैं- 25 दिसंबर! पता नहीं कि उस दिन मेरा जन्म क्यों हुआ? बाद में, बड़ा होने पर मुझे यह बताया गया कि 25 दिसंबर को ईसा मसीह का जन्मदिन है, इसलिए बड़े दिन के रूप में मनाया जाता है। मुझे यह भी बताया गया कि जब मैं पैदा हुआ, तब पड़ोस के गिरजाघर में ईसा मसीह के जन्मदिन का त्योहार मनाया जा रहा था। कैरोल गाए जा रहे थे। उल्लास का वातावरण था। बच्चों में मिठाई बांटी जा रही थी।
 
बाद में मुझे यह भी पता चला कि बड़े दिन धर्म पंडित मदन मोहन मालवीय का भी जन्मदिन है। मुझे जीवन भर इस बात का अभिमान रहा कि मेरा जन्म ऐसे महापुरुषों के जन्म के दिन ही हुआ।