शनिवार, 27 अप्रैल 2024
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Written By समय ताम्रकर

जॉन रेम्बो : सिल्वेस्टर की वापसी

जॉन रेम्बो : सिल्वेस्टर की वापसी -
निर्माता : अवी लेर्नर, केविन किंग, जॉन थॉम्पसन
निर्देशक : सिल्वेस्टर स्टेलोन
कलाकार : सिल्वेस्टर स्टेलोन, जूली बेंज, सेम एलियट, मैथ्यू मार्डसन, पॉल शुल्ज़
रेटिंग : 2.5/5

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दो दशक पूर्व सिल्वेस्टर स्टेलोन को एक्शन हीरो के रूप में बेहद पसंद किया गया था। सिल्वेस्टर के स्टाइलिश एक्शन को देख कई लोग उनके प्रशंसक बन गए थे। उनकी रेम्बो स‍िरीज की फिल्मों को बॉक्स ऑफिस पर जबरदस्त सफलता मिली थी। ‘जॉन रेम्बो’ के रूप में ‍सिल्वेस्टर ने फिर इतिहास दोहराने की कोशिश की है।

फिल्म की शुरुआत में कम्बोडिया, वियतनाम, थाईलैंड और बर्मा का नक्शा दिखाया जाता है। इसके बाद बर्मा में हो रहे अत्याचार की झलक मिलती है। फिर कहानी आती है जॉन रेम्बो (सिल्वेस्टर स्टेलोन) पर, जो थाईलैंड के एक गाँव में नाविक है और उसे नदी के रास्तों का अच्छा ज्ञान है। वह जंगलों से घने साँप पकड़कर बेचता है। बर्मा में चल रहे भीषण गृहयुद्ध से उसे कोई लेना-देना नहीं है। उसका मानना है कि कुछ भी बदलना मुश्किल है।

उसके पास अमेरिकन मिशनरीज़ के कुछ सदस्य आते हैं जो उसे नदी के रास्ते से बर्मा ले चलने को कहते हैं। वे वहाँ जाकर अत्याचार के शिकार लोगों का इलाज करना चाहते हैं। उनमें दवाइयाँ और धार्मिक किताबें बाँटना चाहते हैं। रेम्बो पहले तो उनकी सहायता करने से इंकार कर देता है, लेकिन बाद में साराह (जूली बेंज) के समझाने पर मान जाता है। वह उन्हें छोड़कर वापस आ जाता है।

कुछ दिनों बाद उसे आर्थर मार्श बताता है कि वह दल वापस नहीं लौटा है और उनके बारे में कोई सूचना भी नहीं है। आर्थर कुछ भाड़े के ‍सैनिकों को नदी के रास्ते से वहाँ पहुँचाने के लिए रेम्बो को कहता है। रेम्बो यह काम कर देता है। वह चाहता है कि वह भी उनके साथ उस दल की खोज करे, लेकिन भाड़े के सैनिक मना कर देते हैं।

रेम्बो फिर भी जाता है और मुसीबत से घिरे भाड़े के सैनिकों की जान बचाता है। इस घटना के बाद वे उसे अपने साथ शामिल कर लेते हैं। रेम्बो और उसके साथियों को पता चलता है कि साराह और माइकल के दल को पकड़ लिया गया है। रेम्बो मुट्‍ठीभर साथियों के साथ कई गुना बड़ी सेना से मुकाबला करता है और दल को सुरक्षित वापस ले आता है।

फिल्म के पहले घंटे में बर्मा में हो रहे अत्याचारों को दिखाया गया है कि किस तरह बर्मा की सेना बेगुनाह और मासूम लोगों को बिना किसी अपराध के कीड़े-मकोड़ों की तरह मार डालती है। उनकी क्रूरता और बर्बरता को परदे पर जस का तस पेश करने की कोशिश की गई है। वे लोगों के हाथ, पैर, सिर गाजर-मूली की तरह काट देते हैं। जिंदा आदमी को भूखे सूअरों को खाने को दे देते हैं।

शुरुआत में धीमी गति से चलने वाली फिल्म उस समय गति पकड़ती है जब रेम्बो के एक्शन देखने को मिलते हैं। फिल्म का क्लॉयमैक्स उम्दा है जब अकेला रेम्बो पूरी सेना से मुकाबला कर विजयी होता है।

फिल्म की कहानी इस तरह से लिखी गई है कि रेम्बो को अपनी बहादुरी दिखाने का मौका मिले। बर्मा में चल रहे गृहयुद्ध से उसे कोई मतलब नहीं है। उद्देश्यहीन जिंदगी जी रहे रेम्बो को अमेरिकन मिशनरीज़ के दल को बचाने का मकसद मिल जाता है। अचानक वह क्यों बदल जाता है, ये स्पष्ट नहीं है। शायद उसे साराह के प्रति हमदर्दी रहती है, इसीलिए वह अपनी जान जोखिम में डालता है।

फिल्म थाईलैंड के घने जंगलों में फिल्माई गई है। अँधेरे घने जंगल, गहरी नदी, घनघोर बारिश और वहाँ छाई हुई चुप्पी फिल्म को प्रभावशाली बनाने में मदद करते हैं।

सिल्वेस्टर स्टेलोन अब बूढ़े और धीमे हो गए हैं। उन्होंने फिल्म में बेहद कम संवाद बोले हैं। पूरी फिल्म में उन्होंने एक जैसी मुखमुद्रा बनाकर रखी है। उनके ज्यादातर एक्शन दृश्यों में लाइट काफी कम रखा गया है ताकि कमजोरियों को छिपाया जा सके। जूली बेंज़, पॉल शूल्ज, मैथ्यू मार्डसन ने सिल्वेस्टर का साथ अच्छी तरह निभाया है।

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ग्लेन मक्फर्सन का कैमरा वर्क अंतरराष्ट्रीय स्तर का है। एक्शन दृश्यों की जितनी सराहना की जाए कम है। सारे दृश्य वास्तविक लगते हैं। बैकग्राउंड म्यूजिक फिल्म को प्रभावशाली बनाता है।

कुल मिलाकर ‘जॉन रेम्बो’ उन अपेक्षाओं पर खरी नहीं उतरती जितनी कि दर्शकों को इस फिल्म को लेकर थी। एक्शन फिल्म पसंद करने वालों को जरूर अच्छी लग सकती है।