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Written By समय ताम्रकर

किक : फिल्म समीक्षा

Kick Movie Review | किक : फिल्म समीक्षा
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सलमान खान की तुलना 70 और 80 के दशक की वेस्ट इंडीज क्रिकेट टीम से की जा सकती है। उस टीम के कप्तान क्लाइव लॉयड थे और उन्होंने अपनी कप्तानी में वेस्ट इंडीज को कई मैच जिताएं। कई लोग लॉयड को महान कप्तान नहीं मानते हैं क्योंकि उनका कहना है कि इंडीज टीम इतनी मजबूत है कि अदना सा खिलाड़ी भी कप्तानी करे तो यह टीम मैच जीत जाए।

सलमान खान के स्टारडम का पॉवर भी इंडीज टीम जैसा है। निर्देशक कोई भी हो, फिल्म सुपरहिट हो ही जाती है। यही वजह है कि उनके साथ काम करने वाले दोयम दर्जे के निर्देशक अरबाज और सोहेल खान की फिल्में भी सौ करोड़ क्लब में शामिल हो गईं। सोचिए कि यदि सलमान को बेहतर निर्देशक का साथ मिले तो क्या कमाल हो सकता है।

साजिद नाडियाडवाला को भी वर्षों तक निर्माता रहने के बाद निर्देशन की खुजली होने लगी तो उन्होंने सलमान जैसे सुरक्षित सितारे के साथ ही निर्देशन के मैदान में पहली बार उतरना उचित समझा ताकि उनकी सारी ऐब छिप जाए क्योंकि सल्लू के फैंस तो सलमान को देखने आते हैं और उन्हें निर्देशन, कहानी, अभिनय से कोई मतलब नहीं होता।

दरअसल सलमान को साइन करते ही निर्माता-निर्देशक के हाथ जैकपॉट लग जाता है। कुछ भी बना दो उनके फैंस को फिल्म पसंद आ ही जाती है, लिहाजा सारा ध्यान‍ फिल्म के बजाय सलमान शो बनाने में लग जाता है। 'किक' में भी चारों तरफ सलमान हैं। हर फ्रेम में सलमान के लिए जगह बनाई गई है। फिल्म के अन्य किरदार भी सलमान के संवादों पर प्रतिक्रिया देते हैं।

साजिद नाडियाडवाला ने सलमान को खूब फोकस किया है ताकि उनके प्रशंसकों का पेट भर जाए, लेकिन बचे-खुचे लोग जो एक अच्छी और मनोरंजक फिल्म देखना चाहते हैं उनकी अपेक्षाओं पर किक खरी नहीं उतरती।

तेलुगु फिल्म किक (2009) का हिंदी रिमेक किक में कहानी जैसा कुछ नहीं है। देवी लाल (सलमान खान) बहुत जल्दी बोर हो जाता है। उसे हर काम में किक (थ्रिल) चाहिए। पचासों जॉब उसने छोड़ दिए हैं। वह बहुत ही होशियार है। पैदा होते ही लेडी डॉक्टर को आंख मार दी। पहले वह हंसा फिर रोया। लैपटॉप के की बोर्ड को 180 डिग्री घुमाकर टाइप कर लेता है। दोनों हाथों से लिख लेता है। टेबल-टेनिस में वह सामने खेल रहे दो खिलाड़ियों को अकेला दोनों हाथ से खेलते हुए हरा देता है। पढ़ाई में होशियार। स्कूल में फर्स्ट। कॉलेज में फर्स्ट। कुछ अजीब आदतें भी हैं। टॉयलेट में सिर के बल खड़ा होकर सूसू करता है। देवी लाल के ये सारे गुण एनिमेशन के सहारे दिखाए गए हैं और फिल्म से बढ़िया ये लगते हैं।

साइना (जैकलीन फर्नांडिस) नामक डॉक्टर पर देवी लाल का दिल आ जाता है। साइना पहले उससे चिढ़ती है। फिर मान जाती है। साइना के पिता चाहते हैं कि उनका होने वाला दामाद ढंग की नौकरी करे। देवी लाल मान जाता है, लेकिन चार दिन में नौकरी छोड़ देता है। यह बात उसके और साइना के बीच ब्रेकअप का कारण बनती है।

साइना और देवी लाल एक साल से नहीं‍ मिले हैं। साइना के लिए उसके घर वाले एक लड़का हिमांशु (रणदीप हुडा) ढूंढते हैं। दोनों की मुलाकात कराई जाती है। साइना उसे अपने अफेयर के बारे में बताती है। हिमांशु पुलिस ऑफिसर है। वह भी बताता है कि वह डेविल नामक एक चोर को ढूंढ रहा है, जो उसे हर बार चुनौती देता है और करोड़ों की चोरी करता है। यह बताने की जरूरत नहीं है कि डेविल कौन है? वह चोरी क्यों कर रहा है? क्या साइना और देवी लाल एक होंगे? इन सवालों के जवाब फिल्म के आखिर में मिलते हैं।

फिल्म का पहला हाफ हास्य और रोमांस को समर्पित है। सलमान का दोस्त भाग कर शादी करता है, जिसमें सलमान उसकी मदद करता है। यह प्रसंग बेहद लंबा और खींचा गया है। खूब हंसाने की कोशिश इस सीन में की गई है, लेकिन हंसी नहीं आती। इसके बाद सलमान का अपने पिता (मिथनु चक्रवर्ती) के साथ शराब पीना। टुन्न होकर जैकलीन की मदद से घर लौटना। घर पर जैकलीन की सलमान की मां से मुलाकात वाले सीन भी बेहद उबाऊ हैं। इन दोनों घटनाक्रमों को बहुत ही लंबा खींचा गया है। साथ ही ये सीन इतने सतही हैं कि दर्शक इनसे जुड़ाव महसूस नहीं कर पाता।

सलमान और जैकलीन का रोमांस और ब्रेक अप भी बेहद सतही है। जैकलीन अचानक सलमान को पसंद करने लगती है और बिना किसी ठोस कारण के दोनों में ब्रेकअप हो जाता है। दर्शक बेचारे अचंभित ही रह जाते हैं कि इनमें प्यार क्यों हुआ। यदि हुआ तो फिर दोनों अलग क्यों हुए?

सेकंड हाफ एक्शन को समर्पित है। सलमान कृष और धूम सीरिज की फिल्मों जैसा एक्शन करते हैं, लेकिन थ्रिल नदारद है। पुलिस को तारीख, समय और ठिकाना बताकर सलमान चोरी करते हैं। इस चैलेंज में बिलकुल भी मजा नहीं आता क्योंकि सलमान पांच सौ करोड़ भी इतनी आसानी से चुरा लेते हैं मानो बच्चे के हाथ से लॉलीपॉप लेना हो।

भारतीय पुलिस तो फिल्मों में निकम्मी दिखाई ही जाती है, लेकिन पोलैण्ड पुलिस का भी वही हाल दिखाया गया है। फिर सलमान भी हर बार पुलिस ऑफिसर को चुनौती देकर अपने लिए ही हालात मुश्किल क्यों बनाता है, यह भी समझ से परे है।

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नवाजुद्दीन सिद्दकी वाला ट्रेक भी बेहद कन्फ्यूजिंग है। इंटरवल के बाद इस ट्रेक को काफी फुटेज दिए गए हैं और इस दौरान फिल्म अपने निम्नतम स्तर पर पहुंच जाती है। फिल्म खत्म होने के 20 मिनट पूर्व फिल्म का स्तर ऊंचा उठता है। इमोशनल टच दिया गया है जो सलमान के व्यक्तित्व से मेल खाता है। इसलिए सिनेमाहॉल छोड़ते समय दर्शक थोड़ा अच्छा महसूस करता है।

फिल्म के कुछ एक्शन सीन उम्दा है और सलमान ने उन्हें बखूबी निभाया है। सलमान का जैकलीन के पिता से पहली मुलाकात वाला दृश्य भी मनोरंजक है।

फिल्म समीक्षा का शेष भाग और रेटिंग... अगले पेज पर


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फिल्म की स्क्रिप्ट चार लोगों, साजिद नाडियाडवाला, रजत अरोरा, चेतन भगत और कीथ गोम्स ने मिलकर लिखी है। तीन तिगाड़ा काम बिगाड़ा होता है, लेकिन ये चार लोग तो एक कदम और आगे निकल गए हैं। सलमान के स्टारडम के साथ न्याय करने वाली स्क्रिप्ट ये लोग नहीं लिख पाए। लिहाजा फिल्म में ढेर सारे बोरियत भरे क्षण से रूबरू होना पड़ता है। कई बार फिल्म का एनर्जी लेवल इतना गिर जाता है कि फिल्म हांफने लगती है। 'किक' लगने वाली को इतनी बार दोहराया गया है ताकि दर्शक के दिमाग में घुस जाए कि 'किक' लगना क्या होता है। इस पर बहुत सारी और व्यर्थ मेहनत की गई है।

स्क्रिप्ट की कमियों को कमजोर निर्देशक और गहरा कर देता है। साजिद नाडियाडवाला ने सिर्फ सलमान शो बनाया है। सलमान के फैंस को ताली पीटने और सीटियां बजाने के लिए मजबूर करने वाले कई सीन तो हैं, लेकिन कन्टीन्यूटी जैसी बेसिक बातों का ध्यान उन्होंने नहीं रखा। पोलैण्ड में सलमान बस सहित नदी में गिरते हैं और अगले ही सीन में वे दिल्ली स्थित बार में पीते-नाचते नजर आते हैं। साजिद को कहानी को परदे पर पेश करने का तरीका भी सीखना होगा। दृश्य भी उन्होंने बहुत लंबे रखे हैं। दिव्या भारती को उन्होंने याद करते हुए 'सात समंदर पार' गाना बैकग्राउंड में सुनाया है।

फिल्म का संगीत ठीक-ठाक है। 'जुम्मे की रात' सुनने के बजाय देखने में ज्यादा भव्य है। नरगिस फाखरी पर फिल्माया गया 'यार ना मिले' अच्छा है। सलमान की फिल्मों में दमदार संवाद की अपेक्षा रहती है, लेकिन सुनने को नहीं मिलते। तकनीकी रूप से फिल्म मजबूत है। शानदार सिनेमाटोग्राफी, लोकेशन, एक्शन, बैकग्राउंड म्युजिक जबरदस्त है। कही भी कंजूसी नजर नहीं आती।

सलमान खान हमेशा की तरह हैंडसम लगे और अपने ही अंदाज में उन्होंने रोल निभाया है। एक्शन दृश्यों में उनकी फुर्ती देखने लायक है। रोमांटिक और इमोशन सीन उन्होंने सुपरस्टार की तरह अभिनीत किए हैं। शराब के नशे में टुन्न वाला सीन उन्होंने धर्मेन्द्र स्टाइल में किया है।

जैकलीन फर्नांडिस को ग्लैमरस लुक में पेश किया गया है। सेकंड हाफ में वे बहुत कम समय के लिए नजर आती हैं। वैसे भी सलमान की फिल्म में हीरोइन के लिए कोई स्कोप नहीं होता है। सलमान को सामने पाकर रणदीप हुडा का अभिनय कुछ लड़खड़ा गया, खासतौर पर दोनों का साथ में बैठकर शराब पीने वाले सीन में रणदीप असहज नजर आए। नवाजुद्दीन सिद्दकी ने रोल की डिमांड को ध्यान में रखकर ओवर एक्टिंग की है, लेकिन उनका मैनेरिज्म अच्‍छा लगता है। सौरभ शुक्ला, मिथुन चक्रवर्ती, अर्चना पूरण सिंह के पास ज्यादा करने के लिए कुछ नहीं था।

फिल्म के अंत में सलमान कहते हैं कि मैं दिल में आता हूं समझ में नहीं। किक पर भी यही बात लागू होती है। यदि आप दिल से देखेंगे तो अच्छी लगेगी, दिमाग से देखेंगे तो...

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बैनर : नाडियाडवाला ग्रैंडसन एंटरटेनमेंट, यूटीवी मोशन पिक्चर्स
निर्माता-निर्देशक : साजिद नाडियाडवाला
संगीत : हिमेश रेशमिया, मीत ब्रदर्स, यो यो हनी सिंह, डीजे एंजल
कलाकार : सलमान खान, जैकलीन फर्नांडिस, रणदीप हुडा, नवाजुद्दीन सिद्दकी, सौरभ शुक्ला, ‍मिथुन चक्रवर्ती, अर्चना पूरण सिंह, नरगिस फाखरी (कैमियो)
सेंसर सर्टिफिकेट : यूए * 2 घंटे 26 मिनट 34 सेकंड
रेटिंग : 2/5