• Webdunia Deals
  1. धर्म-संसार
  2. व्रत-त्योहार
  3. दीपावली
  4. laxmi puja 2016
Written By

दीपावली पर लक्ष्मी पूजन की 4 आसान विधियां

दीपावली पर लक्ष्मी पूजन की 4 आसान विधियां - laxmi puja 2016
* दिवाली पूजन की सरलतम विधियां 
 

 
दिवाली पर शास्त्रीय विधि से कैसे करें पूजन... 
 
देवी लक्ष्मीजी के पूजन की सामग्री अपनी सामर्थ्य के अनुसार होना चाहिए। इसमें लक्ष्मीजी को कुछ वस्तुएं विशेष प्रिय हैं। उनका उपयोग करने से वे शीघ्र प्रसन्न होती हैं। इनका उपयोग अवश्य करना चाहिए। 
 
* वस्त्र में इनका प्रिय वस्त्र लाल, गुलाबी या पीले रंग का रेशमी वस्त्र है। 
 
* माताजी को पुष्प में कमल व गुलाब प्रिय हैं। 
 
* फल में श्रीफल, सीताफल, बेर, अनार व सिंघाड़े प्रिय हैं। 
 
* सुगंध में केवड़ा, गुलाब, चंदन के इत्र का प्रयोग इनकी पूजा में अवश्य करें। 
 
* अनाज में चावल तथा मिठाई में घर में बनी शुद्धतापूर्ण केसर की मिठाई या हलवा, शीरे का नैवेद्य उपयुक्त है। 
 
* प्रकाश के लिए गाय का घी, मूंगफली या तिल्ली का तेल इनको शीघ्र प्रसन्न करता है। 
 
* अन्य सामग्री में गन्ना, कमल गट्टा, खड़ी हल्दी, बिल्व पत्र, पंचामृत, गंगाजल, ऊन का आसन, रत्न-आभूषण, गाय का गोबर, सिंदूर, भोजपत्र का पूजन में उपयोग करना चाहिए। 
 
लक्ष्मी पूजन की तैयारी 
 
चौकी पर लक्ष्मी व गणेश की मूर्तियां इस प्रकार रखें कि उनका मुख पूर्व या पश्चिम में रहे। लक्ष्मीजी, गणेशजी की दाहिनी ओर रहें। पूजनकर्ता मूर्तियों के सामने की तरफ बैठें। कलश को लक्ष्मीजी के पास चावलों पर रखें। नारियल को लाल वस्त्र में इस प्रकार लपेटें कि नारियल का अग्रभाग दिखाई देता रहे व इसे कलश पर रखें। यह कलश वरुण का प्रतीक है।
 
दो बड़े दीपक रखें। एक में घी भरें व दूसरे में तेल। एक दीपक चौकी के दाईं ओर रखें व दूसरा मूर्तियों के चरणों में। इसके अतिरिक्त एक दीपक गणेशजी के पास रखें।
 
मूर्तियों वाली चौकी के सामने छोटी चौकी रखकर उस पर लाल वस्त्र बिछाएं। कलश की ओर 1 मुट्ठी चावल से लाल वस्त्र पर नवग्रह की प्रतीक 9 ढेरियां बनाएं। गणेशजी की ओर चावल की 16 ढेरियां बनाएं। ये 16 मातृका की प्रतीक हैं। नवग्रह व षोडश मातृका के बीच स्वस्तिक का चिह्न बनाएं। इसके बीच में सुपारी रखें व चारों कोनों पर चावल की ढेरी। सबसे ऊपर बीचोबीच 'ॐ' लिखें। छोटी चौकी के सामने 3 थाली व जल भरकर कलश रखें। 
 
थालियों की निम्नानुसार व्यवस्था करें-
 
1. 11 दीपक।
 
2. खील, बताशे, मिठाई, वस्त्र, आभूषण, चंदन का लेप, सिन्दूर, कुंकुम, सुपारी, पान।
 
3. फूल, दुर्वा, चावल, लौंग, इलायची, केसर-कपूर, हल्दी-चूने का लेप, सुगंधित पदार्थ, धूप, अगरबत्ती, 1 दीपक। 
 
इन थालियों के सामने यजमान बैठें। आपके परिवार के सदस्य आपकी बाईं ओर बैठें। कोई आगंतुक हो तो वह आपके या आपके परिवार के सदस्यों के पीछे बैठे।
 
चौकी
 
(1) लक्ष्मी, (2) गणेश, (3-4) मिट्टी के 2 बड़े दीपक, (5) कलश जिस पर नारियल रखें, वरुण, (6) नवग्रह, (7) षोडश मातृकाएं, (8) कोई प्रतीक, (9) बही-खाता, (10) कलम और दवात, (11) नकदी की संदूकची, (12) थालियां 1, 2, 3, (13) जल का पात्र, (14) यजमान, (15) पुजारी, (16) परिवार के सदस्य, (17) आगंतुक।
 
पूजा की संक्षिप्त विधि
 
सबसे पहले पवित्रीकरण करें। आप हाथ में पूजा के जलपात्र से थोड़ा-सा जल ले लें और अब उसे मूर्तियों के ऊपर छिड़कें तथा साथ में मंत्र पढ़ें। इस मंत्र और पानी को छिड़ककर आप अपने आप, पूजा की सामग्री और अपने आसन को भी पवित्र कर लें।
 
ॐ पवित्रः अपवित्रो वा सर्वावस्थांगतोऽपिवा।
यः स्मरेत्‌ पुण्डरीकाक्षं स वाह्यभ्यन्तर शुचिः।।
पृथ्विति मंत्रस्य मेरुपृष्ठः ग ऋषिः सुतलं छन्दः
कूर्मोदेवता आसने विनियोगः।।
 
अब पृथ्वी पर जिस जगह आपने आसन बिछाया है, उस जगह को पवित्र कर लें और मां पृथ्वी को प्रणाम करके यह मंत्र बोलें-
 
ॐ पृथ्वी त्वया धृता लोका देवि त्वं विष्णुना धृता।
त्वं च धारय मां देवि पवित्रं कुरु चासनम्‌।।
पृथिव्यै नम: आधारशक्तये नम:।
 
अब आचमन करें-
 
पुष्प, चम्मच या अंजुलि से 1 बूंद पानी अपने मुंह में छोड़िए और बोलिए-
 
ॐ केशवाय नम:
 
और फिर 1 बूंद पानी अपने मुंह में छोड़िए और बोलिए-
 
ॐ नारायणाय नम:
 
फिर 1 तीसरी बूंद पानी की मुंह में छोड़िए और बोलिए-
 
ॐ वासुदेवाय नम:
 
फिर ॐ ऋषिकेशाय नम: कहते हुए हाथों को खोलें और अंगूठे के मूल से होंठों को पोंछकर हाथों को धो लें। पुन: तिलक लगाने के बाद प्राणायाम व अंग न्यास आदि करें। आचमन करने से विद्या तत्व, आत्म तत्व और बुद्धि तत्व का शोधन हो जाता है तथा तिलक व अंग न्यास से मनुष्य पूजा के लिए पवित्र हो जाता है। 
 
आचमन आदि के बाद आंखें बंद करके मन को स्थिर कीजिए और 3 बार गहरी सांस लीजिए यानी प्राणायाम कीजिए, क्योंकि भगवान के साकार रूप का ध्यान करने के लिए यह आवश्यक है फिर पूजा के प्रारंभ में स्वस्ति वाचन किया जाता है। उसके लिए हाथ में पुष्प, अक्षत और थोड़ा जल लेकर स्वतिन: इन्द्र वेद मंत्रों का उच्चारण करते हुए परमपिता परमात्मा को प्रणाम किया जाता है फिर पूजा का संकल्प किया जाता है। संकल्प हर एक पूजा में प्रधान होता है।
 
संकल्प
 
आप हाथ में अक्षत लें, पुष्प और जल ले लीजिए। कुछ द्रव्य भी ले लीजिए। द्रव्य का अर्थ है कुछ धन। ये सब हाथ में लेकर संकल्प मंत्र को बोलते हुए संकल्प कीजिए कि मैं अमुक व्यक्ति, अमुक स्थान व समय पर अमुक देवी-देवता की पूजा करने जा रहा हूं जिससे मुझे शास्त्रोक्त फल प्राप्त हों। 
 
सबसे पहले गणेशजी व गौरी का पूजन कीजिए। उसके बाद वरुण पूजा यानी कलश पूजन करनी चाहिए। हाथ में थोड़ा-सा जल ले लीजिए और आह्वान व पूजन मंत्र बोलिए और पूजा सामग्री चढ़ाइए। फिर नवग्रहों का पूजन कीजिए। हाथ में अक्षत और पुष्प ले लीजिए और नवग्रह स्तोत्र बोलिए। इसके बाद भगवती षोडश मातृकाओं का पूजन किया जाता है।
 
हाथ में गंध, अक्षत, पुष्प ले लीजिए। 16 माताओं को नमस्कार कर लीजिए और पूजा सामग्री चढ़ा दीजिए। 16 माताओं की पूजा के बाद रक्षाबंधन होता है। रक्षाबंधन विधि में मौली लेकर भगवान गणपति पर चढ़ाइए और फिर अपने हाथ में बंधवा लीजिए और तिलक लगा लीजिए। अब आनंदचित से निर्भय होकर महालक्ष्मी की पूजा प्रारंभ कीजिए।
अगले पृष्‍ठ पर पढ़ें दूसरी विधि... 
 
 

महालक्ष्मी पूजन विधान-2 
 

 
दीपावली पूजन की दूसरी विधि
 
दीपावली लक्ष्मीजी का अवतरण दिवस है। समुद्र मंथन के दौरान वे क्षीरसागर से प्रकट हुई थीं अत: घर में लक्ष्मीजी के वास और दरिद्रता के विनाश हेतु इस साधना को करने से लक्ष्मीजी प्रसन्न होती हैं।
 
दीपावली पर लक्ष्मी प्राप्ति के लिए विभिन्न प्रकार की साधनाएं की जाती हैं। लक्ष्मी प्राप्ति की साधना का एक अत्यंत सरल व मात्र त्रिदिवसीय उपाय प्रस्तुत है। 
 
दीपावली के दिन से 3 दिन तक अर्थात भाईदूज तक एक स्वच्छ कमरे में धूप, दीप व अगरबत्ती जलाकर शरीर पर पीले वस्त्र धारण करके, ललाट पर केसर का तिलक कर, स्फटिक मोतियों से बनी माला नित्य प्रात:काल निम्न मंत्र की 2-2 मालाएं जपें।
 
ॐ नम: भाग्यलक्ष्मी च विद्महे। अष्टलक्ष्मी च धीमहि। तन्नोलक्ष्मी प्रचोदयात्।
 
अगले पृष्‍ठ पर पढ़ें तीसरी विधि... 
 
 

महालक्ष्मी पूजन विधान-3 


 
महालक्ष्मी पूजन- महालक्ष्मी पूजन से घर-परिवार में वैभव की प्रतिष्ठा की जा सकती है। प्रात: स्नान, तुलसी सेवन, उद्यापन और दीपदान का उत्तम अवसर कहा गया है-
 
हरिजागरणं प्रात: स्नानं तुलसिसेवनम्। उद्यापनं दीपदानं व्रतान्येतानि कार्तिके॥
 
इन उपायों से सत्यभामा ने अक्षय सुख, सौभाग्य और संपदा के साथ सर्वेश्वर को सुलभ किया था। यदि इस अवधि में लक्ष्मी मंत्र की माला की जाए तो वैभव प्राप्त होता है। लक्ष्मी, गायत्री मंत्र का जाप भी लाभप्रद है। 
 
मंत्र- महालक्ष्म्यै च विद्महे विष्णुपत्न्यै च धीमहि तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात्।
 
गृहस्थ को हमेशा कमलासन पर विराजित लक्ष्मी की पूजा करनी चाहिए। देवी भागवत में कहा गया है कि कमलासना लक्ष्मी की आराधना से इन्द्र ने देवाधिराज होने का गौरव प्राप्त किया था। इन्द्र ने लक्ष्मी की आराधना 'कमलवासिन्यै नम:' मंत्र से की थी। यह मंत्र आज भी अचूक है।
 
दीपावली को अपने घर के ईशान कोण में कमलासन पर मिट्टी या चांदी की लक्ष्मी की प्रतिमा को विराजित कर श्रीयंत्र के साथ उक्त मंत्र से पूजन किया जाए और निरंतर जप किया जाए तो चंचल लक्ष्मी स्थिर होती हैं, बचत आरंभ होती है और पदोन्नति मिलती है। साधक को अपने सिर पर बिल्वपत्र रखकर 15 श्लोकों वाले श्रीसूक्त का जाप भी करना चाहिए।
 
दीपावली की रात देवी लक्ष्मी के साथ एकदंत मंगलमूर्ति गणपति की भी पूजा की जाती है। पूजा स्थल पर गणेश एवं लक्ष्मी की मूर्ति या तस्वीर के पीछे शुभ और लाभ लिखा जाता है व इनके बीच में स्वस्तिक का चिह्न बनाया जाता है। लक्ष्मीजी की पूजा से पहले भगवान गणेश की फूल, अक्षत, कुमकुम, रोली, दूब, पान, सुपारी और मोदक मिष्ठान्न से पूजा की जाती है फिर देवी लक्ष्मी की पूजा भी इसी प्रकार की जाती है।
 
देवी लक्ष्मी इस रात अपनी बहन दरिद्रा के साथ भू-लोक की सैर पर आती हैं। जिस घर में साफ-सफाई और स्वच्छता रहती है वहां मां लक्ष्मी अपने कदम रखती हैं और जिस घर में ऐसा नहीं होता वहां दरिद्रा अपना डेरा जमा लेती है। यहां एक और बात ध्यान देने योग्य है कि देवी सीता, जो लक्ष्मीजी की अवतार मानी जाती हैं, भी भगवान श्रीराम के साथ इस दिन वनवास से लौटकर आई थीं इसलिए उनके स्वागत में इस दिन घर की साफ-सफाई करके मां लक्ष्मी का स्वागत व पूजन किया जाता है।
 
घर में मां, दादी या जो कोई भी बुजुर्ग महिला होती हैं, वे रात्रि के अंतिम प्रहर में देवी लक्ष्मी का आह्वान करती हैं और दरिद्रा को बाहर करती हैं। इसके लिए कहीं-कहीं सूप को सरकंडे से पीटा जाता है तो कहीं पुराने छाज में कूड़े आदि भरकर घर से बाहर कहीं फेंका जाता है। इस क्रम में महिलाएं यह बोलती हैं- 'अन्न, धन, लक्ष्मी घर में पधारो, दरिद्रा घर से भागो-भागो।'
 
व्यवसायियों के लिए नववर्ष का आगमन होता है। वे इस दिन पूरे बही-खाते का हिसाब करते हैं और नया खाता-बही लिखते हैं, तंत्र साधना करने वालों के लिए यह रात सिद्धि देने वाली होती है। इस रात भूत, प्रेत, बेताल, पिशाच, डाकनी, शाकनी आदि उन्मुक्त रूप से विचरण करते हैं। ऐसे में जो साधक सिद्धि चाहते हैं उन्हें आसानी से फल की प्राप्ति होती है। 
 
यूं तो महालक्ष्मीजी के कई मंत्र हैं लेकिन तांत्रिक मंत्र 'ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं ॐ स्वाहा' उत्तम है। इस मंत्र का जाप महानिशिथकाल में किया जाए तो उत्तम फल की आशा कर सकते हैं।
 
 
अगले पृष्‍ठ पर पढ़ें चौथी विधि...
 
 

महालक्ष्मी पूजन विधान-4 
 

 
भगवान विष्णु की पत्नी और धन की देवी लक्ष्मी का पूजन कार्तिक अमावस्या को संपूर्ण भारतवर्ष में सभी वर्गों द्वारा समान रूप से किया जाता है। पूर्व ईशान कोण में वेदी बनाकर उस पर लाल कपड़ा बिछा दिया जाता है। 
 
इस पर लक्ष्मीजी की सुंदर प्रतिमा और ईशान में श्रीयंत्र विराजित करें। इसके बाद चावल-गेहूं की 9-9 ढेरी बनाकर नवग्रहों के समान सजाएं। शुद्ध घी का दीपक प्रज्वलित कर 1 या 5 खुशबूदार अगरबत्ती जलाएं। इत्र आदि का सुगंधित द्रव्य के बाद गंध पुष्पादि से नैवेद्य चढ़ाकर यह मंत्र बोलें- 
 
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वर:।
गुरुर्साक्षात्परब्रह्मं तस्मै श्री गुरुवे नम:।।
 
इसके बाद निम्न मंत्र का जाप करें-
 
ब्रह्मा मुरारी त्रिपुरांतकारी भानु: शशि भूमि सुतो बुधश्च।
गुरुश्च शुक्र शनि राहु केतव सर्वे ग्रहा शांति करा भवंतु।। 
 
इसके बाद आसन के नीचे कुछ मुद्रा रखकर उसके ऊपर सुखासन (पालथी मारकर बैठें) में बैठकर सिर पर रूमाल या टोपी लगाकर शुद्ध चित्त मन से इस मंत्र का जितना भी बन पड़े, जाप करना चाहिए- 
 
ॐ श्रीं ह्रीं कमले कमलालये।
प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्री महालक्ष्मै नम:।। 
 
महानिशिथकाल में लक्ष्मीजी का जाप करने से लक्ष्मीजी प्रसन्न होती हैं। यह समय मध्यरात्रि 12.11 से 1.46 तक है।
 
ये भी पढ़ें
भाईदूज : बहन-भाई का त्योहार, पढ़ें पौराणिक रोचक कथा...