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Last Updated : रविवार, 2 मई 2021 (19:37 IST)

स्वास्थ्य कभी सरकारों की प्राथमिकता नहीं रहा, न ही राजनीतिक मुद्दा बन सका: दिलीप मावलंकर

Dilip Mavalankar | स्वास्थ्य कभी सरकारों की प्राथमिकता नहीं रहा, न ही राजनीतिक मुद्दा बन सका: दिलीप मावलंकर
नई दिल्ली। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक हेल्थ के निदेशक दिलीप मावलंकर का कहना है कि स्वास्थ्य का विषय न तो कभी सरकारों की प्राथमिकता रहा, न ही लोगों ने कभी उसे राजनीतिक एजेंडा बनाया। उन्होंने सरकार की टीकाकरण नीति पर भी सवाल उठाए और कहा कि अब देश को पब्लिक हेल्थ में निवेश करना ही होगा। देश में कोरोना की दूसरी लहर के मद्देनजर संक्रमण के लगातार बढ़ते मामलों और 1 मई से शुरू हुए टीकाकरण अभियान को लेकर मावलंकर ने दिए भाषा के 5 सवालों के जवाब:-

सवाल: देश कोविड-19 की दूसरी लहर से गुजर रहा है और हालात देखकर लग रहा है कि हमारा स्वास्थ्य ढांचा पूरी तरह चरमरा गया है?
 
जवाब: स्वास्थ्य कभी सरकारों की प्राथमिकता में नहीं रहा। यह विषय कभी राजनीतिक एजेंडा भी नहीं बन सका। लोगों ने भी इस पर दिलचस्पी नहीं दिखाई और न ही कभी स्वास्थ्य ढांचे पर ध्यान दिए। हमें बड़ी-बड़ी मूर्तियां चाहिए। मूर्तियों से भरे पार्क चाहिए। लेकिन मुझे लगता है कि देश में एम्स बनाए जाने चाहिए और स्वास्थ्य संबंधी संसाधन तैयार करने होंगे। अस्पताल बनाने थे लेकिन हम स्वास्थ्य को लेकर बहुत गंभीर नहीं हैं। अक्सर हम सुनते हैं कि रक्षा में इतने करोड़ खर्च किए गए। कभी लड़ाकू विमान, तो कभी तोप और कभी पनडुब्बी। लेकिन हम कभी यह नहीं सुनते कि वेंटिलेटर्स और जरूरी उपकरणों के लिए करोड़ों का कोई करार हुआ। स्वास्थ्य ऑक्सीजन की तरह है। जब तक मिलता है, पता नहीं चलता है, जब ऑक्सीजन मिलना बंद हो जाता है तो पता चलता है।

सवाल: आखिर क्या कमी रह गई, जो आज हम इस स्थिति में पहुंच गए?
 
जवाब: आंकड़े जो आ रहे हैं, वे सही तस्वीर नहीं दिखा रहे हैं। इसकी वजह से एक दौर ऐसा आया कि लगा कोरोना अब समाप्त हो गया है। उसी समय लापरवाही भी हो गई। वह भी दोनों तरफ से। सरकार और जनता दोनों से। आज हमारी स्थिति ऐसी इसलिए हुई, क्योंकि समय रहते हमने कदम नहीं उठाए। केरल ने समय रहते कदम उठाया और उसने ऑक्सीजन का उत्पादन दोगुना कर लिया। आज वह दूसरे राज्यों को ऑक्सीजन की आपूर्ति कर रहा है। यही ओड़िशा कर रहा है। टीकाकरण को लेकर भी हमने जो नीति अपनाई, उसमें भी बहुत कमियां रहीं।

सवाल: टीकाकरण नीति में क्या कमी रह गई?
 
जवाब: पिछले साल अगस्त के आसपास तीसरे चरण का ट्रॉयल शुरु हुआ था तभी से देश की आबादी के लिहाज से भारतीय निर्माताओं की क्षमता बढ़ाए जाने पर काम करना था। जनसंख्या के हिसाब से पहले से तैयारी करनी चाहिए थी। फाइजर और मॉडर्ना को भारत क्यों नहीं बुलाया गया ट्रॉयल करने के लिए? जैसे अन्य उद्योगपतियों के लिए रेड कार्पेट बिछाते हैं, उसी प्रकार उनके लिए भी बिछा सकते थे। लेकिन उस समय सोचा नहीं गया। हम अपना टीका विकसित करने के पीछे पड़े रहे। उसमें भी हमने उन्हें पूरी तरह समर्थन नहीं किया। जब टीका आया तो सीरम इंस्टीट्यूट के पास 12 करोड खुराकें थीं। वह भी तैयार। जिसे खरीदा जा सकता था। 12 करोड़ खरीदकर दूसरे 12 करोड़ का ऑर्डर दे देना था लेकिन यह भी नहीं सोचा किसी ने। हमने ऑर्डर दिया 2 करोड़ के करीब का। वैक्सीन यदि हम फास्ट ट्रैक करते तो शायद इस लहर को हम थोड़ा रोक सकते थे। टीकाकारण की रणनीति को लेकर भी मेरा यह सुझाव था कि जिस जिले में सबसे अधिक कोरोना संक्रमण के मामले हैं, वहां पहले टीकाकरण किया जाना चाहिए था। भारत के 740 में से 50 जिले ऐसे थे, जहां 60 प्रतिशत संक्रमण के मामले थे और मृत्यु की दर भी 60 प्रतिशत थी। हमने जो शुरुआती दौर में टीकाकरण अभियान चलाया, उसकी जगह इन जिलों में टीकाकरण अभियान चलाया गया होता तो परिणाम कुछ और होते और आज स्थितियां अलग होतीं। टीकाकरण का अस्त्र हमारे हाथ में था लेकिन हमने उसका सदुपयोग नहीं किया।
 
सवाल: केंद्रीय बजट में स्वास्थ्य के क्षेत्र में आवंटित किए जाने वाले बजट को आप कैसे देखते हैं?
 
जवाब: सरकारें दावा तो करती हैं कि वह बजट में स्वास्थ्य पर जोर देंगी। मनमोहन सिंह ने भी कहा था स्वास्थ्य बजट को सकल घरेलू उत्पाद का 3 प्रतिशत करेंगे लेकिन ये सब खयाली पुलाव ही बनकर रह जाते हैं। अभी तो महामारी के दौर से हम गुजर रहे हैं। हमें पब्लिक हेल्थ में निवेश करना ही होगा। संक्रामक रोगों और वायरोलॉजी के विशेषज्ञ तैयार करने होंगे। देश में प्लेग आया, चिकनगुनिया आया लेकिन हमने इन महामारियों से कोई सीख नहीं ली। हमारी राजनीतिक प्राथमिकताएं कुछ ऐसी हो गई हैं कि पब्लिक हेल्थ को तो हम भूल ही गए हैं।

 
सवाल: सरकार का क्या रुख होना चाहिए स्वास्थ्य को लेकर?
 
जवाब: हमें चिकित्सा शिक्षा और शोध के क्षेत्र में आत्मनिर्भर होना होगा। आधुनिक संसाधन तैयार करने होंगे। उच्च गुणवत्ता वाली प्रयोगशालाओं की संख्या बढ़ानी होगी। लैबोरेटरी विज्ञान को नजरअंदाज किया गया। हमारे यहां के शोध और विदेशों के शोध की गुणवत्ता में बहुत अंतर है। आप चंद्रयान भेज सकते हैं लेकिन माइक्रोबायोलॉजी के मामले में उनसे मुकाबला नहीं कर सकते। जैसे इसरो बनाया है, वैसे ही स्वास्थ्य के क्षेत्र में इस स्तर का संस्थान होना चाहिए था। पब्लिक हेल्थ में हमें निवेश करना होगा। पब्लिक हेल्थ स्कूल खोले जाने चाहिए और मौजूदा स्कूलों को सशक्त करना चाहिए। आजादी के इतने साल हो गए लेकिन महामारी कानून आज भी ब्रिटिश जमाने का है, जो यह दर्शाता है कि हम स्वास्थ्य को लेकर कितने गंभीर हैं? (भाषा)