• Webdunia Deals
  1. लाइफ स्‍टाइल
  2. नन्ही दुनिया
  3. बाल दिवस
  4. बहुत याद आता है बचपन...
Written By WD

बहुत याद आता है बचपन...

बहुत याद आता है बचपन... - बहुत याद आता है बचपन...
- रवीन्द्र गुप्ता
बचपन से पचपन तक यादों का अनोखा संसार



 
FILE


हर किसी को अपना बचपन याद आता है। हम सबने अपने बचपन को जीया है। शायद ही कोई होगा, जिसे अपना बचपन याद न आता हो। बचपन की अपनी मधुर यादों में माता-पिता, भाई-बहन, यार-दोस्त, स्कूल के दिन, आम के पेड़ पर चढ़कर 'चोरी से' आम खाना, खेत से गन्ना उखाड़कर चूसना और ‍खेत मालिक के आने पर 'नौ दो ग्यारह' हो जाना हर किसी को याद है। जिसने 'चोरी से' आम नहीं खाए व गन्ना नहीं चूसा, उसने क्या खाक अपने बचपन को 'जीया' है! चोरी और ‍चिरौरी तथा पकड़े जाने पर साफ झूठ बोलना बचपन की यादों में शुमार है। बचपन से पचपन तक यादों का अनोखा संसार है।

सपने सुहाने लड़कपन के...

छुटपन में धूल-गारे में खेलना, मिट्टी मुंह पर लगाना, मिट्टी खाना किसे नहीं याद है? और किसे यह याद नहीं है कि इसके बाद मां की प्यारभरी डांट-फटकार व रुंआसे होने पर मां का प्यारभरा स्पर्श! इन शैतानीभरी बातों से लबरेज है सारा बचपन।

जो नटखट नहीं किया, वो बचपन क्या जीया?

जिस किसी ने भी अपने बचपन में शरारत या नटखट नहीं की, उसने भी अपने बचपन को क्या खाक जीया होगा, क्योंकि 'बचपन का दूसरा नाम' नटखट ही होता है। शोर व उधम मचाते, चिल्लाते बच्चे सबको लुभाते हैं तथा हम सभी को भी अपने बचपन की सहसा याद हो आती है।

एक पुरानी हिन्दी फिल्म 'दूर की आवाज' में जानी वॉकर पर फिल्माए गए गीत की पंक्तियां कुछ यूं ही बयान करती हैं-

'हम भी अगर बच्चे होते
हम भी अगर बच्चे होते
नाम हमारा होता गबलू-बबलू
खाने को मिलते लड्डू
और दुनिया कहती हैप्पी बर्थडे टू यू'

उपरोक्त लाइन में नायक की भी यही चाहत रहती है कि काश! हम भी अगर बच्चे होते तो बचपन को बेफिक्री से जीते और मनपसंद चीजें खाने को मिलतीं।


गिल्ली-डंडा खेलना व पतंग उड़ाना
FILE


हम में से अधिकतरों का बचपन गिल्ली-डंडा व गुलाम-डांडा खेलते तथा पतंग उड़ाते बीता है। इन खेलों में जो मानसिक व शारीरिक आनंद आता है, वो कम्प्यूटरजनित खेलों में कहां? ये देसी खेल अब तो आजकल के बच्चों के मनोरंजन से निहायत ही बाहर होते जा रहे हैं, क्योंकि वीडियो गेम, टीवी, कम्प्यूटर व मोबाइल ने इन खेलों की जगह ले ली है। आजकल के बच्चों को फटाफट खेल पसंद हैं। मैदान में खेलने से शारीरिक व मानसिक विकास होता है, जो अब नदारद-सा होता जा रहा है।

वो पापा का साइकल पर घुमाना...

हम में अधिकतर अपने बचपन में पापा द्वारा साइकल पर घुमाया जाना कभी नहीं भूल सकते। जैसे ही पापा ऑफिस जाने के लिए निकलते हैं, तब हम भी पापा के साथ जाने को मचल उठते हैं, तब पापा भी लाड़ में आकर अपने लाड़ले-लाड़लियों को साइकल पर घुमा देते थे। आज बाइक व कार के जमाने में वो 'साइकल वाली' यादों का झरोखा अब कहां?

शिक्षा-दीक्षा

पहले बचपन में बच्चों की शिक्षा-दीक्षा पट्टी-पेम पर हुआ करती थी। वे पट्टी पर लिख-लिखकर याद करते व मिटाते थे। एक बार गलती होने पर मिटा व सुधारकर फिर से बच्चे को लिखना व पढ़ना सिखाया जाता था। बच्चा इससे सहजता व सरलता से पढ़ना-लिखना सीख जाता था तथा वह माता-पिता को भी कई बार 'पढ़ा' दिया करता था।

आजकल केजी-वन से ही बच्चों को कॉपी पर लिखना-पढ़ना व बोलना सिखाया जाता है। इससे कागज की काफी बरबादी होती है, क्योंकि एकदम छोटे बच्चों को शब्द-ज्ञान लगभग नहीं के बराबर होता है तथा वे बार-बार लिखते तथा काटते-पीटते हैं। बच्चों पर पढ़ाई का भी काफी तनाव देखा जाता है आजकल।

FILE


साइकलिंग

थोड़े बड़े होने पर बच्चे साइकल सीखने का प्रयास अपने ही हमउम्र के दोस्तों के साथ करते रहे हैं। कैरियर को 2-3 बच्चे पकड़ते थे व सीट पर बैठा सवार (बच्चा) हैंडिल को अच्छे से पकड़े रहने के साथ साइकल सीखने का प्रयास करता था तथा साथ ही साथ वह कहता जाता था कि कैरियर को छोड़ना नहीं, नहीं तो मैं गिर जाऊंगा/जाऊंगी।

लेकिन कैरियर पकड़े रखने वाले साथीगण साइकल की गति थोड़ी ज्यादा होने पर उसे छोड़ देते थे। इस प्रकार किशोरावस्था का लड़का या लड़की थोड़ा गिरते-पड़ते व धूल झाड़कर उठ खड़े होते साइकल चलाना सीख जाते थे। साइकल चलाने से एक्सरसाइज भी होती थी।

खो गया है बचपन...?

लेकिन लगता है कि आजकल के बच्चों का 'बचपन' (भोलापन), 'पचपन' (जल्दी बड़े होने या हो जाने) के चक्कर में कहीं खो-सा गया है। इसका कारण तेजी से बदलता समय व माता-पिता की अपेक्षाएं हैं।

माता-पिता चाहते हैं कि बच्चा जल्दी-जल्दी सब कुछ सीख ले। माता-पिता की अपेक्षाओं-तले बच्चों का बचपन खत्म-सा होता जा रहा है। हर माता-पिता को अपने बच्चे को उसका बचपन स्वाभाविक रूप से जीने देना चाहिए। आजकल के बच्चों का बचपन लगता है कहीं खो-सा गया है

तोतली व भोली भाषा

बच्चों की तोतली व भोली भाषा सबको लुभाती है। बड़े भी इसकी ही अपेक्षा करते हैं। रेलगाड़ी को 'लेलगाली' व गाड़ी को 'दाड़ी' या 'दाली' सुनकर किसका मन चहक नहीं उठता है? बड़े भी बच्चे के सुर में सुर मिलाकर तोतली भाषा में बात करके अपना मन बहलाते हैं।

वो दादा-दादी का किस्से-कहानी सुनाना

पहले बचपन में दादा-दादी व नाना-नानी ‍काफी किस्से-कहानियां सुनाया करते थे। राम, कृष्ण, गौतम, बुद्ध, गांधी, शिवाजी, महाराणा प्रताप तथा भारतीय वीरों व वीरांगनाओं की कहानियां सुनते-सुनते बच्चों में संस्कारों का बीजारोपण हो जाया करता था। यह आजकल दुर्लभ होता जा रहा है, क्योंकि वर्तमान बुजुर्गों को टीवी व अन्य बातों के कारण समय ही नहीं है।

माता-पिता की डांट-फटकार

कई बच्चे जब जरूरत से ज्यादा शैतानी-नादानी किया करते थे तो वे मां-बाप की मार व डांट-फटकार भी खाया करते थे। माता-पिता का प्रयास रहता है कि बच्चा शैतानी नहीं करे तथा पढ़ने-लिखने में ही अपना सारा समय व ध्यान लगाए। ऐसा सोचना अनुचित है। माता-पिता के व बाल-मनोविज्ञान में जमीं-आसमान का अंतर होता है। बच्चों को अपनी ही सोसायटी में खेलने-कूदने देना चाहिए जिससे कि वे सामाजिकता सीख सकें।

यह स्मरण रहे, बच्चे अपनी हमउम्र बच्चों के साथ जो खेल‍-किलोल कर सकते हैं, वे अपने से बड़ों या छोटों के साथ नहीं कर सकते हैं। उनको उनकी सोसायटी में ही खेलने-कूदने देना चाहिए जिससे कि उनके व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास हो सके।

कभी हंसी, कभी आंसू

जब कभी भी हमें अपने बचपन की याद आती है तो कुछ बातों को याद करके हम हर्षित होते हैं, तो कुछ बातों को लेकर अश्रुधारा बहने लगती है। हम यादों के समंदर में डूबकर भावनाओं के अतिरेक में खो जाते हैं। भाव-विभोर व भावुक होने पर कई बार हमारा मन भीग-सा जाता है।

एक प्रेरणा है बचपन

हर व्यक्ति का बचपन एक प्रेरणा भी है। बचपन में की गई गलतियां, नादानियां व शैतानियां बड़े होने पर जब याद आती हैं तो व्यक्ति सोचता है कि हां, हमने बचपन में ये-ये गलतियां की थीं व अब इसे नहीं दोहराएंगे? लेकिन अब कब? बचपन तो अब बीत जो चुका है! सुधार व परिमार्जन करने की उम्र की दहलीज पर हम खड़े हैं। अब वो जो बचपन बीत चुका है, वह अगले जन्म के पहले नहीं आने वाला! हां, उसकी सुखद-मधुर यादें आपके दिल-ओ-जेहन में मृत्युपर्यंत तक बनी रहेंगी। नहीं जाने वाली हैं वे मधुर यादें।

हां, फिर आना तुम मेरे प्रिय बचपन!
मुझे तुम्हारा इंतजार रहेगा ताउम्र!!
राह तक रहा हूं मैं!!!