गुरुवार, 25 अप्रैल 2024
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Written By अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'

गौतम बुद्ध के गुरु, शिष्य और प्रचारक

गौतम बुद्ध के गुरु, शिष्य और प्रचारक - Guru and disciple of Gautam Buddha
भगवान गौतम बुद्ध ही दर्शन और धर्म का अंतिम सत्य है। बौद्ध धर्म को नास्तिकों का धर्म मानना गलत है। जिन्होंने इसका सही अध्ययन किया और समझा वे ही समझ सकते हैं कि सत्य क्या है। गौतम बुद्ध जब राजकुमार थे तब  उनका नाम सिद्धार्थ था। सिद्धार्थ को उनके सारथी सौम्य के द्वारा ही संसार का ज्ञान मिला, जिसमें उन्होंने दुख, जरा, बुढ़ापे और मृत्यु के सत्य को जाना।
हालांकि बौद्ध धर्म कभी धर्मप्रचारक आंदोलन के रूप में विकसित नहीं हुआ, किन्तु भारतीय उपमहाद्वीप में बुद्ध की शिक्षाओं का प्रसार दूर-दूर तक हुआ और फिर वहां से ये शिक्षाएं पूरे एशिया भर में फैल गई। इस्ला‍म के उदय के बाद सबसे ज्यादा नुकसान बौद्धों ने ही झेला, क्योंकि 300 ईसा पूर्व से ही बौद्ध धर्म तुर्क, एलेक्ज़ेंड्रिया, इराक और ईरान के कुछ हिस्सों सहित संपूर्ण अफगानिस्तान, पाकिस्तान, कजाकिस्तान, उजबेकिस्तान, किरगिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, ताजिकिस्तान, चीन के युयान एवं जिंगसियांग प्रांत, तिब्बत, थाइलैंड, लाओस, कम्बोडिया, वियतनाम, मलेशिया, इंडोनेशिया, बांग्लादेश, मंचूरिया, साइबेरिया और यूरोपीय रूस में कैस्पियन सागर के नजदीक आदि क्षेत्रों में अपनी जड़े जमा चुका था। खैर...
 
*बुद्ध के प्रमुख गुरु थे- गुरु विश्वामित्र, अलारा, कलम, उद्दाका रामापुत्त आदि।
*प्रमुख शिष्य थे- आनंद, अनिरुद्ध, महाकश्यप, रानी खेमा (महिला), महाप्रजापति (महिला), भद्रिका, भृगु, किम्बाल, देवदत्त, उपाली आदि।
*प्रमुख प्रचारक- अंगुलिमाल, मिलिंद (यूनानी सम्राट), सम्राट अशोक, ह्वेन त्सांग, फा श्येन, ई जिंग, हे चो, बोधिसत्व आदि।
 
गुरु विश्वामित्र : सिद्धार्थ ने गुरु विश्वामित्र के पास वेद और उपनिषद्‌ तो पढ़े ही, राजकाज और युद्ध-विद्या की भी शिक्षा ली। कुश्ती, घुड़दौड़, तीर-कमान, रथ हांकने में कोई उसकी बराबरी नहीं कर पाता था।
 
गुरु अलारा कलम और उद्दाका रामापुत्त : ज्ञान की तलाश में सिद्धार्थ घूमते-घूमते अलारा कलम और उद्दाका रामापुत्त के पास पहुंचे। उनसे उन्होंने योग-साधना सीखी। कई माह तक योग करने के बाद भी जब ज्ञान की प्राप्ति नहीं हुई तो उन्होंने उरुवेला पहुंच कर वहां घोर तपस्या की।  छः साल बीत गए तपस्या करते हुए। सिद्धार्थ की तपस्या सफल नहीं हुई। तब एक दिन कुछ स्त्रियां किसी नगर से लौटती हुई वहां से निकलीं, जहां सिद्धार्थ तपस्या कर रहे थे। उनका एक गीत सिद्धार्थ के कान में पड़ा- ‘वीणा के तारों को ढीला मत छोड़ दो। ढीला छोड़ देने से उनका सुरीला स्वर नहीं निकलेगा। पर तारों को इतना कसो भी मत कि वे टूट जाएं।’ बात सिद्धार्थ को जंच गई। वह मान गए कि नियमित आहार-विहार से ही योग सिद्ध होता है। अति किसी बात की अच्छी नहीं। किसी भी प्राप्ति के लिए मध्यम मार्ग ही ठीक होता है। बस फिर क्या था कुछ ही समय बाद ज्ञान प्राप्त हो गया।
 
आनंद :- यह बुद्ध और देवदत्त के भाई थे और बुद्ध के दस सर्वश्रेष्ठ शिष्यों में से एक हैं।
यह लगातार बीस वर्षों तक बुद्ध की संगत में रहे। इन्हें गुरु का सर्वप्रिय शिष्य माना जाता था। आनंद को बुद्ध के निर्वाण के पश्चात प्रबोधन प्राप्त हुआ। वह अपनी स्मरण शक्ति के लिए प्रसिद्ध थे।
 
महाकश्यप:- महाकश्यप मगध के ब्राह्मण थे, जो तथागत के नजदीकी शिष्य बन गए थे। इन्होंने प्रथम बौद्ध अधिवेशन की अध्यक्षता की थी।
 
रानी खेमा:- रानी खेमा सिद्ध धर्मसंघिनी थीं। यह बीमबिसारा की रानी थीं और अति सुंदर थीं। आगे चलकर खेमा बौद्ध धर्म की अच्छी शिक्षिका बनीं।
 
महाप्रजापति :- महाप्रजापति बुद्ध की माता महामाया की बहन थीं। इन दोनों ने राजा शुद्धोदन से शादी की थी। गौतम बुद्ध के जन्म के सात वर्ष पश्चात महामाया की मृत्यु हो गई। तत्पश्चात महाप्रजापति ने उनका अपने पुत्र जैसे पालन-पोषण किया। राजा शुद्धोदन की मृत्यु के बाद बौद्ध मठ में पहली महिला सदस्य के रूप में महाप्रजापिता को स्थान मिला था।
 
मिलिंद:- मिलिंदा यूनानी राजा थे। ईसा की दूसरी सदी में इनका अफगानिस्तान और उत्तरी भारत पर राज था। बौद्ध भिक्षु नागसेना ने इन्हें बौद्ध धर्म की दीक्षा दी और इन्होंने बौद्ध धर्म को अपना लिया था।
 
सम्राट अशोक:- सम्राट अशोक बौद्ध धर्म के अनुयायी और अखंड भारत के सम्राट थे। इन्होंने ईसा पूर्व 207 ईस्वी में मौर्य वंश की नींव को मजबूत किया था। अशोक ने कई वर्षों की लड़ाई के बाद बौद्ध धर्म अपनाया था। इसके बाद उन्होंने युद्ध का बहिष्कार किया और शिकार करने पर पाबंदी लगाई। बौद्ध धर्म का तीसरा अधिवेशन अशोक के राज्यकाल के 17वें साल में संपन्न हुआ। 
 
सम्राट अशोक ने अपने पुत्र महिंद और पुत्री संघमित्रा को धर्मप्रचार के लिए श्रीलंका भेजा। इनके द्वारा श्रीलंका के राजा देवनामपिया तीस्सा ने बौद्ध धर्म अपनाया और वहां 'महाविहार' नामक बौद्ध मठ की स्थापना की। यह देश आधुनिक युग में भी थेरवाद बौद्ध धर्म का गढ़ है।
 
कनिष्क : कुषाण राजा कनिष्क के विशाल साम्राज्य में विविध धर्मों के अनुयायी विभिन्न लोगों का निवास था। कनिष्क बौद्ध धर्म का अनुयायी था और बौद्ध इतिहास में उसका नाम अशोक के समान ही महत्त्व रखता है। आचार्य अश्वघोष ने उसे बौद्ध धर्म में दीक्षित किया था। इस आचार्य को वह पाटलिपुत्र से अपने साथ लाया था, और इसी से उसने बौद्ध धर्म की दीक्षा ली थी।
 
फ़ाह्यान : फ़ाह्यान का जन्म चीन के 'वु-वंग' नामक स्थान पर हुआ था। उसने लगभग 399 ई. में अपने कुछ मित्रों 'हुई-चिंग', 'ताओंचेंग', 'हुई-मिंग', 'हुईवेई' के साथ भारत यात्रा प्रारम्भ की। फ़ाह्यान की भारत यात्रा का उदेश्य बौद्ध हस्तलिपियों एवं बौद्ध स्मृतियों को खोजना था। फ़ाह्यान बौद्ध धर्म का अनुयायी था, इसीलिए फ़ाह्यान ने उन्ही स्थानों के भ्रमण को महत्त्व दिया, जो बौद्ध धर्म से संबंधित थे।
 
ह्वेन त्सांग : भारत में ह्वेन त्सांग ने बुद्ध के जीवन से जुड़े सभी पवित्र स्थलों का भ्रमण किया और उन्होंने अपना अधिकांश समय नालंदा मठ में बिताया, जो बौद्ध शिक्षा का प्रमुख केंद्र था। यहां उन्होंने संस्कृत, बौद्ध दर्शन एवं भारतीय चिंतन में दक्षता हासिल करने के बाद अपना संपूर्ण जीवन बौद्ध धर्मग्रंथों के अनुवाद में लगा दिया। उसने लगभग 657 ग्रंथों का अनुवाद किया था और 520 पेटियों में उन्हें भारत से चीन ले गया था।। इस विशाल खंड के केवल छोटे से हिस्से (1330 अध्यायों में करीब 73 ग्रंथ) के ही अनुवाद में महायान के कुछ अत्यधिक महत्वपूर्ण ग्रंथ शामिल हैं।

संकलन : अनिरुद्ध जोशी