शुक्रवार, 26 अप्रैल 2024
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Written By समय ताम्रकर

द शौकीन्स : फिल्म समीक्षा

द शौकीन्स : फिल्म समीक्षा -
हृषिकेश मुखर्जी और बासु चटर्जी की हास्य फिल्में बेहद सहज और सरल होती थीं और उस तरह की फिल्में बाद में कोई फिल्मकार नहीं बना पाया। इन महान निर्देशकों की फिल्मों के जितने भी रिमेक बनाए गए कोई भी उस स्तर को छू नहीं पाया। निर्देशक अभिषेक शर्मा ने बासु दा की 'शौकीन' का रिमेक 'द शौकीन्स' नाम से बनाया है। फिल्म की मूल बात को जस का तस रखते हुए उन्होंने फेसबुक जनरेशन के मुताबिक कुछ बदलाव किए हैं।
 
दिल्ली के रहने वाले लाली (अनुपम खेर), पिंकी (पियूष मिश्रा) और केडी (अन्नू कपूर) की उम्र 60 के आसपास है। किसी की सेक्स लाइफ इसलिए डिस्टर्ब हो गई है क्योंकि उसकी पत्नी धार्मिक हो गई है तो किसी की पत्नी का निधन हो गया है। शरीर बूढ़ा हो गया पर दिल नहीं भरा वाली उनकी हालत है। दिल्ली में लड़कियों के पीछे भागते हैं तो लोकलाज का भय लगता है। एक घटना में फंस जाते हैं तो इंस्पेक्टर सलाह देता है कि विदेश क्यों नहीं जाते, वहां सब कानूनन है। तीनों मलेशिया जाकर फैशन डिजाइनर आहना (लीसा हेडन) के घर रहते हैं। आहना फिल्म स्टार अक्षय कुमार (अक्षय कुमार) की फैन है जो उस समय मलेशिया में शूटिंग कर रहे हैं। आहना का कहना है कि जो उसे अक्षय कुमार से मिलवा देगा उसके लिए वह कुछ भी कर सकती है। यह बात लाली, पिंकी और केडी की आंखों में चकम पैदा कर देती है और वे आहना और अक्षय की मुलाकात करवाने में जी जान से जुट जाते हैं। इसके बाद हास्यास्पद परिस्थितियां पैदा होती हैं। 
फिल्म की कथा, पटकथा और संवाद तिग्मांशु धुलिया ने लिखा है। संवादों के जरिये कई बार तिग्मांशु हंसाने में तो कामयाब रहे हैं, लेकिन कहानी पर उन्होंने ठीक से मेहनत नहीं की है। फिल्म की शुरुआत में दिखाया गया है कि तीनों बूढ़े लम्पट और हवस के पुजारी हैं। वे मलेशिया अय्याशी करने जाते हैं, लेकिन वहां जाकर सिर्फ आहना के पीछे ही क्यों पड़ते हैं। आहना को अक्षय कुमार से मिलवाने के चक्कर में वे समय और धन बरबाद करते हैं जो कि उनकी यात्रा का उद्देश्य नहीं था। उनकी हरकतों से ऐसा लगता है कि वे आहना का दिल जीत कर उससे शादी करना चाहते हों। आहना का किरदार भी ठीक से नहीं लिखा गया है। इतने दिनों तक तीनों के साथ रहने के बावजूद वह यह पढ़ नहीं पाती कि इन बूढ़ों के उसके प्रति क्या विचार हैं। फिल्म का क्लाइमेक्स बहुत ही सतही है। किसी तरह से फिल्म को खत्म करना था इसलिए ज्यादा सोचे-विचारे बिना जो सूझा वो लिख दिया गया। 
 
कहानी की इन कमियों को कुछ हद तक संवादों, कुछ कॉमिक दृश्यों, उम्दा अभिनय और अक्षय कुमार वाले ट्रैक ने कम किया है। लगातार हंसी का डोज मिलता रहता है जिसके कारण आप इन कमियों पर ध्यान नहीं देते हैं। शुरुआत में कुछ दृश्य खींचे हुए लगते हैं, लेकिन बाद में फिल्म रफ्तार पकड़ लेती है। अक्षय कुमार वाला ट्रेक बहुत ही उम्दा है जिसमें अक्षय खुद अपना मजाक उड़ाते हैं। वे अपने निर्देशक से कहते हैं कि हर फिल्म में मैं हेलीकॉप्टर से लटकता, कार के पीछे या आइटम गर्ल के पीछे भागता रहता हूं। बोर हो गया हूं। कुछ नया करवाओ। एक बंगाली फिल्म निर्देशक अक्षय को अपनी आर्ट मूवी में लेना चाहता है और अक्षय उसकी फिल्म कर नेशनल अवॉर्ड जीतने का सपना देखते हैं।
 
फिल्म के मुख्य किरदारों का अभिनय बेहतरीन है और वे अभिनय के बूते पर फिल्म का स्तर बनाए रखते हैं। अनुपम खेर और अन्नू कपूर टॉप फॉर्म में नजर आए, लेकिन बाजी पियूष मिश्रा मार ले जाते हैं। उन्होंने अपने किरदार को थोड़ा कैरीकेचर बनाया है, लेकिन अच्छा लगता है। लिसा हेडन का किरदार ठीक से नहीं लिखा गया है और उनका अभिनय औसत दर्जे का है। अक्षय कुमार पर शायद फिल्म के चलने या न चलने की जिम्मेदारी नहीं है, लिहाजा उनका अभिनय और भी निखर कर सामने आया है। रति अग्निहोत्री को फिल्म इसलिए जोड़ा गया ताकि 'शौकीन' से तार जोड़े जा सके। करीना कपूर, अभिषेक बच्चन, डिम्पल कपाड़िया और सुनील शेट्टी भी चंद सेकंड के लिए नजर आते हैं और उनका उपयोग अच्छा किया गया है। फिल्म के एक-दो गाने अच्छे हैं, लेकिन उनकी सिचुएशन सही नहीं है। 
 
कुल मिलाकर 'द शौकीन्स' 1982 में बनी शौकीन के स्तर की तो नहीं है, लेकिन टाइम पास करने के लिए देखी जा सकती है। 
 
बैनर : केप ऑफ गुड फिल्म्स
निर्माता : मुराद खेतानी, अश्विन वर्दे
निर्देशक : अभिषेक शर्मा
संगीत : यो यो हनी सिंह, हर्द कौर, विक्रम नागी, आर्को मुखर्जी, डीजे नॉटोरियस
कलाकार : अक्षय कुमार, लिसा हेडन, अनुपम खेर, पियूष मिश्रा, अन्नू कपूर, मेहमान कलाकार- अभिषेक बच्चन, करीना कपूर खान, डिम्पल कपाड़िया, सुनील शेट्टी
सेंसर सर्टिफिकेट : यूए * 2 घंटे 5 मिनट 
रेटिंग : 2.5/5