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Written By समय ताम्रकर
Last Updated : सोमवार, 10 नवंबर 2014 (14:41 IST)

तमंचे : फिल्म समीक्षा

तमंचे : फिल्म समीक्षा -
तमंचे फिल्म शुरू होने के पांच मिनट बाद ही समझ में आ जाता है आने वाले चंद घंटे बुरे गुजरने वाले हैं और 'तमंचे' कभी भी इस बात को झुठलाती नजर नहीं आती। कुछ दिनों पहले 'देसी कट्टे' नामक फिल्म रिलीज हुई थी, जिसमें एक ताकतवर गुंडे की रखैल पर एक छोटे-मोटे अपराधी का दिल आ जाता है, यही कहानी 'तमंचे' की है। फिल्म का नाम भी मिलता-जुलता है। 'तमंचे' से एक एक्शन फिल्म होने का आभास होता है, लेकिन मूलत: आपराधिक पृष्ठभूमि लिए यह एक प्रेम कहानी है।
 
बाबू (रिचा चड्ढा) और मुन्ना (निखिल द्विवेदी) अपराध जगत से जुड़े हैं। पुलिस वैन में बैठे हुए हैं। कोई जान-पहचान नहीं है। वैन दुर्घटनाग्रस्त होती है। बाबू और मुन्ना भाग निकलते हैं। एक-दूसरे के साथ वे क्यों रहते हैं, ये समझ से परे है। कुछ बकवास से कारण भी बताए गए हैं जो निहायत ही बेहूदा है।
 
निर्देशक और लेखक पूरी कोशिश करते हैं कि दोनों के बीच रोमांस पैदा हो, लेकिन जो परिस्थितियां पैदा की गई है वो बचकानी हैं। रेल के डिब्बे में दोनों सारी हदें भी पार कर देते हैं, लेकिन दर्शकों को तब भी यकीन ही नहीं होता कि दोनों में प्यार जैसा कुछ है। बताया जा रहा है इसलिए मानना पड़ता है कि फिल्म का हीरो और हीरोइन 'लैला-मजनू' से कम नहीं हैं। 
कहानी की बात न ही की जाए तो बेहतर है। जो सूझता गया वो लिखते गए। न कोई ओर न कोई छोर। परदे पर अजीबोगरीब घटनाक्रम घटते रहते हैं। बैंकों को ऐसे लूटा जाता है मानो बच्चे के हाथ से खिलौना छिनना हो। एक्शन घिसा-पिटा है। हीरो-हीरोइन टमाटरों के बीच और बैंक के लॉकर रूम में रोमांस करते हैं, लेकिन झपकी ले रहे है दर्शक को नींद से नहीं जगा पाते। गाना कभी भी टपक पड़ता है। हीरो अपराध जगत में क्यों है इसका कोई जवाब नहीं है।
 
फिल्म का निर्देशन नवनीत बहल ने किया है। उन्हें शायद पता नहीं हो कि कुछ शॉट्स अच्छे से फिल्मा लेना ही निर्देशन नहीं होता। लोकल फ्लेवर डालने के हर तरह की भाषा अपने किरदारों से बुलवाई गई है। यूपी/बिहार के देहातों के लहजे में हीरो ने हिंदी बोली है तो हीरोइन की हिंदी दिल्ली वाली है, विलेन हरियाणा के ताऊ जैसा बोलता है, लेकिन इससे फिल्म की कहानी या प्रस्तुतिकरण पर असर नहीं पड़ता। 
 
रिचा चड्ढा एकमात्र ऐसी कलाकार रहीं जिन्होंने अपना काम गंभीरता से किया है, लेकिन 'तमंचे' जैसी फुस्सी फिल्म में हीरोइन बनने के बजाय 'गोलियों की रासलीला- रामलीला' में छोटा रोल करना ज्यादा बेहतर है। निखिल द्विवेदी ने जमकर बोर किया है। दमनदीप सिंह औसत रहे हैं। 
 
यह 'तमंचा' जंग लगा हुआ है, जिसका कोई उपयोग नहीं है। 
 
बैनर : फैशनटीवी फिल्म्स, ए वाइल्ड एलिफेन्ट्स मोशन पिक्चर्स
निर्माता : सूर्यवीर सिंह भुल्लर
निर्देशक : नवनीत बहल
संगीत : कृष्णा
कलाकार : निखिल द्विवेदी, रिचा चड्ढा, दमनदीप सिंह
सेंसर सर्टिफिकेट : यूए * 1 घंटा 53 मिनट 37 सेकंड 
रेटिंग : 0.5/5