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Written By समय ताम्रकर
Last Updated : शुक्रवार, 14 नवंबर 2014 (14:39 IST)

किल/दिल : फिल्म समीक्षा

किल/दिल : फिल्म समीक्षा - Kill/Dil, Ranveer Singh, Govindaर् Kill Dil
पिछले कुछ समय से यशराज फिल्म्स एक ही थीम को बार-बार दोहरा रहा है। रब ने बना दी जोड़ी और दिल बोले हडिप्पा एक जैसी थीम पर आधारित थीं। दावत-ए-इश्क और लेडिस वर्सेस रिकी बहल भी मिलती-जुलती थीं। इस वर्ष रिलीज हुई गुंडे और किल/दिल की थीम भी एक जैसी ही है। थोड़-बहुत ट्वीस्ट और टर्न के साथ इसे बदला गया है। शुरुआत के कुछ मिनटों में तो ऐसा लगता है कि बदले हुए कलाकारों के साथ गुंडे ही देख रहे हों। 
 
इस फिल्म से गोविंदा और निर्देशक शाद अली ने वापसी की है। झूम बराबर झूम की असफलता से शाद इतने निराश हुए कि मणिरत्नम के फिर सहायक बन गए। आत्मविश्वास लौटने के बाद उन्होंने वापसी की। शाद अच्छे निर्देशक हैं, लेकिन उन्होंने 'किल/दिल' के लिए जो कहानी चुनी है वो बरसों पुरानी है। अपने प्रस्तुतिकरण से उन्होंने फिल्म को अलग लुक दिया है, लेकिन लेखन ने मामले को उलझा दिया है। 
 
देव (रणवीर सिंह) और टुटु (अली जफर) को सुपारी लेकर हत्या करवाने वाले भैयाजी (गोविंदा) ने कचरे के डिब्बे से तब उठाया जब दोनों को कुत्ते चाट रहे थे। पाल-पोस कर बड़ा किया तो दोनों भैयाजी के लिए भौंकने लगे। भैयाजी फोटो देते और दोनों मिलकर फोटो वाले शख्स की हत्या कर उसे ‍'तारा' बना देते। 
 
देव और टुटु अपने आपको हरामी मानते हैं। सुअर गू खाता है तो ही अच्छा रहता है, गुलकंद पर मुंह मारता है तो उसे हजम नहीं होता। यह मानना है देव का जिसका दिल गुलकंद यानी की दिशा (परिणीति चोपड़ा) पर आ जाता है। अपराधियों को सुधार कर दिशा सही दिशा दिखाती है। ऊंचे घराने की अमीर लड़की है। दिशा फर्राटेदार अंग्रेजी बोलती है तो देव को अंग्रेजी में 'एम' और 'बी' के मतलब ही पता है। 
 
देव को टुटु समझाता है कि महंगी कार के पीछे कुत्ते कितना ही दौड़ ले, भौंक ले, उन्हें कार में नहीं बैठाया जाता है पर देव के भेजे में यह बात नहीं घुसती। प्यार में देव सुधर जाता है। हत्या करना बंद देता है। भैयाजी इसके लिए राजी नहीं है। वह धमकाते हैं। आखिरकार देव तरकीब ढूंढ निकालता है। वह भैयाजी के लिए बुरा और दिशा के लिए अच्छा आदमी बन जाता है। दो नाव की सवारी वह कितनी दूर कर पाता है, यह फिल्म का सार है।
फिल्म की शुरुआत बहुत अच्छी है। देव और टुटु की केमिस्ट्री रंग लाती है। खासतौर पर उन्होंने जो संवाद बोले हैं वो बहुत ही दमदार है। गोविंदा की एंट्री भी जबरदस्त है। वह एक खतरनाक आदमी है जो डांस करता है, गाने गाता है, लेकिन इससे उसका खूंखारपन कम नहीं होता। देव और टुटु के मर्डर वाले सीन, कॉमेडी सीन उम्दा बन पड़े हैं। दिशा से पहली मुलाकात और फिर मुलाकातों का सिलसिला भी मनोरंजन से भरपूर है। 
 
फिल्म में दिक्कत तब से शुरू होती है जब ड्रामा ड्राइविंग सीट पर आता है। दिशा के प्यार में देव का अपने आपको बदलने वाला प्रसंग ठीक से नहीं लिखा गया है इसलिए यह ट्रेक विश्वसनीय नहीं लगता। एक अपराधी अचानक नौकरी करने लगता है इस पर यकीन करना मुश्किल होता है। 
 
दिशा भी आंख मूंद कर देव पर इतना विश्वास क्यों करती है यह समझ से परे है। वह दिल देने के पहले या बाद में एक बार भी नहीं सोचती कि आखिर अपराधियों जैसी बातें करने वाला देव करता क्या है? इन सब बातों को भी छोड़ दें तो इंटरवल के बाद फिल्म में मनोरंजन का ग्राफ नीचे की ओर आ जाता है। क्लाइमेक्स भी रंगहीन है।  
 
शाद अली का निर्देशन अच्छा है। उन्होंने कहानी को अपने प्रस्तुतिकरण से अलग रंग दिया है। अपराधियों की कहानी में संगीत और हास्य की गुंजाइश निकाली है। लेकिन कहानी उन्होंने घिसी-पिटी चुनी है। साथ ही स्क्रीनप्ले की कमियों की भी उपेक्षा की है। उन्होंने अपने प्रस्तुतिकरण से कमियों को छिपाने की कोशिश की है, लेकिन बात नहीं बन पाई है। 
 
रणवीर सिंह फॉर्म में नजर आए हैं। देव के किरदार को उन्होंने बारीकी से पकड़ा और उसे बहुत ही अच्छे तरीके से व्यक्त किया। हास्य और रोमांटिक दृश्यों को भी उन्होंने सहजता से निभाया। परिणीति चोपड़ा का अभिनय अच्छा है, लेकिन उनका किरदार ठीक से नहीं लिखा गया है। टुटु के रोल में अली जफर का चुनाव सही नहीं कहा जा सकता। उनका अभिनय अच्छा है, लेकिन अपराधी का रोल निभाते समय वे अपनी शिष्टता को छोड़ नहीं पाए। हालांकि रणवीर और अली की जोड़ी अच्छी नजर आई। गोविंदा के अभिनय को देख लगता है कि काश उनका रोल और लंबा होता। कई दृश्यों में वे अपने साथी कलाकारों पर भारी पड़े हैं।
 
तकनीकी रूप फिल्म मजबूत है। फिल्म का बैकग्राउंड म्युजिक उम्दा है। शंकर-अहसान-लॉय की धुन पर गुलजार ने गीत लिखे हैं जो कहानी को आगे बढ़ाते हैं, हालांकि कुछ गाने फिल्म में बाधा उत्पन्न करते हैं।
 
किल/दिल में अभिनय, संवाद, संगीत पर मेहनत की गई है, लेकिन लेखन विभाग की कमजोरी फिल्म पर भारी पड़ी है।
 
बैनर : यशराज फिल्म्स
निर्माता : आदित्य चोपड़ा
निर्देशक : शाद अली
संगीत : शंकर-अहसान-लॉय
कलाकार : रणवीर सिंह, परिणीति चोपड़ा, गोविंदा, अली जफर, आलोकनाथ
सेंसर सर्टिफिकेट : यूए * 2 घंटे 7 मिनट 47 सेकंड
रेटिंग : 2/5