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Written By समय ताम्रकर

हंटर : फिल्म समीक्षा

हंटर : फिल्म समीक्षा - Hunterrr, Hindi Film, Hunter
हंटर फिल्म का हीरो मंदार सेक्स की तुलना पोटी करने से करता है। कहता है कि सेक्स करना पोटी करने की तरह शारीरिक जरूरत है। अपने को वह वासु मानता है। वासु यानी कि जो सेक्स करने की चाहत को काबू में नहीं रख पाता है। लव और सेक्स को लेकर वह कन्फ्यूज नहीं है, लेकिन ये 'हंटर' खुद प्यार का शिकार बन जाता है। 
निर्देशक हर्षवर्धन कुलकर्णी ने मंदार के बचपन से लेकर तो उसके 'अंकल' बनने की यात्रा को फिल्म में पेश किया है। इस यात्रा में बचपन वाला पक्ष मजेदार है। यौवन की दहलीज पर कदम रखते ही हार्मोंस में परिवर्तन होने लगता है और विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण बढ़ने लगता है। 
 
मंदार का बचपन 1990 के दौर का है जब कोचिंग क्लास की बंक मार वह अमिताभ बच्चन की 'अग्निपथ' देखने जाता है, लेकिन टिकट न मिलने पर एक सेक्सी फिल्म देखता है। इस फिल्म देखने के बाद सेक्स करने की इच्छा उसमें जागृत हो जाती है और 13-14 साल का लड़का भीड़ वाले इलाके में महिलाओं से टकराने लगता है। यह वो दौर था जब सी-ग्रेड फिल्मों के निर्माता कांति शाह की फिल्में परदे जवानी की दहलीज पर खड़े टीनएजर्स के लिए आकर्षण हुआ करती थी। वर्तमान में तो यह सब फिंगर टिप्स पर उपलब्ध है।

 
मंदार बड़ा हो गया, लेकिन सेक्स को लेकर उसका दिमाग टीनएजर की तरह रहा। डरपोक किस्म के मंदार ने किसी के साथ जबरदस्ती नहीं की, लेकिन लड़की देख सेटिंग करने की कोशिश हर बार की। कई बार कामयाबी भी मिली जब सविता भाभी नुमा औरतें उसकी जिंदगी में आईं। अपना स्कोर हंड्रेड नॉटआउट बताने में उसे गर्व होता है।
 
मंदार को झटका तब लगता है जब फ्लर्टिंग करने के चक्कर में उसे अंकल कहा जाता है और पिटाई कर दी जाती है। उसे अपने दोस्त नजर आते हैं जो शादी कर सैटल हो चुके हैं। वह वासु बन थक चुका है और सैटल होना चाहता है। मां-बाप के दबाव में कुछ लड़कियों से मिलता है और अपने बारे में सही-सही बात बता देता है। जाहिर है उसे रिजेक्ट होना ही था। 
 
आखिरकार तृप्ति नामक लड़की के सामने वह अपने आपको 'दूध की तरह धुला' के रूप में पेश करता है। उसे यह अरेंज मैरिज किसी भी हालत में करना ही है। यही से फिल्म बिखरने लगती है। तृप्ति और मंदार की प्रेम कहानी को बेहद लंबा खींचा गया है। हर्षवर्धन ने इस मामले पर इतने फुटेज खर्च किए हैं कि सिनेमाहॉल में दर्शकों को महसूस होने लगता है कि यह फिल्म खत्म भी होगी या नहीं। प्यार है या नहीं का कन्फ्यूजन हम पहले भी कई फिल्मों में देखते आए हैं और यह प्रसंग इस फिल्म में भी देखने को मिलता है।
 
शुरुआत में फिल्म अपेक्षाएं जगाती हैं, लेकिन फिर इन उम्मीदों पर पानी फिर जाता है। कुछ अनावश्यक बातें भी फिल्म में जोड़ी गई हैं, जैसे एअरपोर्ट पर मंदार अपनी रिश्तेदार को लेने आया है और वहां उसे एक लड़की मिलती है जो उसके साथ होटल जाने को तैयार हो जाती है। इसको लेकर एक गलतफहमी पैदा की गई है। आश्चर्य की बात तो ये है कि मंदार उस लड़की से उसका नाम भी नहीं पूछता है। 
 
निर्देशक हर्षवर्धन कुलकर्णी का कहानी को परदे पर पेश करने का तरीका भी कन्फ्यूजिंग है। बार-बार फिल्म अतीत और वर्तमान में झूलती रहती है जिसकी कोई जरूरत नहीं थी। मंदार के शादी करने के फैसले को भी ठीक से जस्टिफाई नहीं किया गया है। साथ ही मंदार को ऐसा शख्स दिखाया गया है जिसके दिमाग में सेक्स का कीड़ा हमेशा कुलबुलाता रहता है, लेकिन तृप्ति से कई मुलाकातों के बावजूद वह तृप्ति के सामने ऐसी कोई इच्छा नहीं रखता? जबकि मंदार अपनी छवि की कभी परवाह नहीं करता। 
 
राइटिंग डिपार्टमेंट में फिल्म कमजोर साबित हुई है। एक लव स्टोरी को 'वासु' वाला तड़का लगा कर पेश किया गया है। जब तक वासुगिरी फिल्म में दिखाई गई है फिल्म अच्छी लगती है, लेकिन उसके बाद फिल्म ट्रेक से उतर जाती है। हालांकि इस एडल्ट कॉमेडी में कई क्षण मनोरंजक भी हैं।
 
फिल्म की सबसे अच्छी बात इसकी कास्टिंग है। हर कलाकार अपनी भूमिका में परफेक्ट लगता है। गुलशन देवैया ने अमोल पालेकर से प्रेरित होकर अपना किरदार निभाया है और अपना काम बेहतरीन तरीके से किया है। 'बदलापुर' के बाद राधिका आप्टे का एक बार फिर जोरदार अभिनय तृप्ति के रूप में देखने को मिलता है। साई तम्हाणकर ने पड़ोस वाली सेक्सी भाभी का किरदार को सेक्स अपील के साथ पेश किया है। 
 
फिल्म का संगीत मधुर है। 'नैना' और 'बचपन' सुनने लायक हैं। अल्ताफ राजा द्वारा गाया 'दिल लगाना' का भी अच्छा उपयोग किया गया है। 
 
हंटर ने जाल तो अच्छा बिछाया, लेकिन इसमें शिकार नहीं फंसा।  
 
बैनर : शेमारू एंटरटेनमेंट, फालकन फिल्म्स, टेलरमेड फिल्म्स, फैंटम फिल्म्स
निर्माता : कृति नखवा, रोहित चुगानी, केतन मारू, विकास बहल, विक्रमादित्य मोटवाने, अनुराग कश्यप
निर्देशक : हर्षवर्धन कुलकर्णी
संगीत : खामोश शाह
कलाकार : गुलशन देवैया, राधिका आप्टे, साई तम्हाणकर, सागर देशमुख 
सेंसर सर्टिफिकेट : ए * 2 घंटे 21 मिनट 
रेटिंग : 2/5