शनिवार, 27 अप्रैल 2024
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Written By समय ताम्रकर

दावत-ए-इश्क : फिल्म समीक्षा

दावत-ए-इश्क : फिल्म समीक्षा -
दहेज के नाम पर विभिन्न धर्म के लोग एक से नजर आते हैं। भारतीय समाज का यह रोग वर्षों पुराना है। समय-समय पर कई फिल्मकारों ने अपनी फिल्मों के जरिये इसके बुराई के खिलाफ इतनी बार आवाज उठाई है कि अब यह फिल्मों के लिए घिसा-पिटा विषय हो गया है। 
 
हबीब फैसल द्वारा निर्देशित फिल्म 'दावत-ए-इश्क' भी दहेज जैसी कुरीति के खिलाफ है, लेकिन किरदारों और पृष्ठभूमि में ऐसा बदलाव किया गया है कि फिल्म में नवीनता का आभास होता है। हैदराबाद और लखनऊ जैसे शहरों में इसे फिल्माया गया है जो स्थानीय लज़ीज व्यंजनों के कारण देश भर में प्रसिद्ध है। इन शहरों के अलावा बिरयानी, हलीम, कबाब के स्वाद को भी फिल्म देखते समय दर्शक महूसस करते हैं। कहानी के सारे पात्र मुस्लिम समुदाय से हैं जिससे फिल्म में एक अलग ही रंग देखने को मिलता है। 
जहेज़ के नाम पर मां-बाप अपने आईएस ऑफिसर, डॉक्टर और इंजीनियर बेटों के भाव तय करते हैं और निकाह के लिए लड़की वालों से रकम मांगी जाती है। लड़कों ने पढ़-लिख कर डिग्री तो हासिल कर ली है, लेकिन 'ज्ञान' अर्जित नहीं कर पाए। कपड़ों के मामले में वे भले ही आधुनिक लगते हो, लेकिन वैचारिक रूप से वे वर्षों पुरानी दकियानूसी परंपराओं के हिमायती हैं। यही वजह है कि फिल्म की नायिका गुलरेज़ (परिणीति चोपड़ा) की शादी नहीं हो पा रही है। वह तेज-तर्रार है। जहेज़ मांगने वाले लड़के और मां-बाप को बाहर करने में देर नहीं लगाती। 
 
गुलरेज़ अमेरिका जाकर शू डिजाइनिंग का कोर्स करना चाहती है। उसके पिता (अनुपम खेर) अदालत में क्लर्क है और ये खर्चा उठाना उनके बूते की बात नहीं है। गुलरेज़ को लगता है कि सभी लड़के दहेज मांगने वाले होते हैं। वह इन दहेज लोभियों को सबक सीखाने के लिए एक योजना बनाती है। पूरी दुनिया बेईमानी कर रही है तो हम क्यों ईमानदारी में फांके खाए कहते हुए उसके पिता भी गुलरेज के साथ हो लेते हैं। 
 
 अपने पिता के साथ नाम और पहचान बदलकर वह हैदराबाद से लखनऊ जाती है। एक अमीर लड़के को फांसती है ताकि शादी करने के बाद धारा 498-ए का दुरुपयोग कर उन पर दहेज मांगने का आरोप लगाए और अदालत के बाहर मोटी रकम लेकर समझौता कर ले। इससे उसका अमेरिका जाने का सपना भी पूरा हो जाएगा। 
 
तारिक (आदित्य राय कपूर) को वह अपने जाल में फंसाती है, लेकिन खुद ही फंस जाती है। तारिक न केवल दहेज विरोधी है बल्कि वह इतना अच्छा इंसान है कि गुलरेज उसे चाहने लगती है। अपने ही बुने मकड़जाल से गुलरेज कैसे निकलती है, यह फिल्म का सार है। 
 
हबीब फैसल और ज्योति कपूर ने फिल्म की कहानी मिल कर लिखी है जबकि स्क्रिप्ट और संवाद हबीब के हैं। दहेज जैसे गंभीर विषय पर आधारित होने के बावजूद यह फिल्म हल्की-फुल्की और रोमांटिक है। इतनी सरलता के साथ यह फिल्म संदेश देती है कि कही भी फिल्म भारी या उपेदशात्मक नहीं लगती। 
 
जिसको धोखा देने जा रहे हो उसी से प्यार कर बैठने वाला फॉर्मूला भी बहुत पुराना है, लेकिन हबीब का प्रस्तुतिकरण फिल्म को अलग रंग देता है। हैदराबाद और लखनऊ को उन्होंने खूब फिल्माया और बीच-बीच में व्यंजनों का उल्लेख फिल्म को अलग कलेवर देता है। 
 
फिल्म के किरदारों पर मेहनत की गई है। परिणीति, आदित्य और अनुपम के इर्दगिर्द ही फिल्म घूमती है और ये तीनों किरदार भरपूर मनोरंजन करते हैं। पिता-पुत्री का रिश्ता फिल्म में खूब हंसाता है। वही परिणीति और आदित्य का रोमांटिक ट्रेक भी उम्दा है। संवाद भी कई जगह गुदगुदाते हैं। निर्देशक के रूप में हबीब ने फिल्म में माहौल बहुत ही हल्का-फुल्का रखा है। 
 
स्क्रिप्ट परफेक्ट भी नहीं है। कई जगह फिल्म गड़बड़ा जाती है, लेकिन तुरंत एक अच्छा दृश्य फिल्म को संभाल लेता है। फिल्म के अंत में गुलरेज का कन्फ्यूजन दर्शकों को समझ नहीं आता। तारिक को चाहने के बावजूद गुलरेज का उसे धोखा देना और फिर पछतावा करना को ठीक से दिखाया नहीं गया है। दूसरे हाफ में निर्देशक हड़बड़ी में दिखे। गुलरेज और उसके पिता का नकली पासपोर्ट बनवाना, तारिक के प्रतिष्ठित परिवार को धोखा देना इतनी आसानी से बताया गया है कि यकीन करना थोड़ा मुश्किल होता है, लेकिन फिल्म के मूड और उद्देश्य को देखते हुए इसे इग्नोर किया जा सकता है। 
 
फिल्म के प्रमुख कलाकार टॉप फॉर्म में नजर आएं। परिणीति चोपड़ा ने तेजतर्रार गुलरेज के किरदार को बखूबी निभाया। उनके पिता की भूमिका के रूप में अनुपम खेर ने अपने बेहतरीन अभिनय से दर्शकों को हंसाया। आदित्य राय कपूर पहली बार बतौर अभिनेता के रूप में प्रभावित करने में सफल रहे। साजिद-वाजिद द्वारा संगीतबद्ध दो-तीन गीत गुनगुाने लायक हैं।
 
कुल मिलाकर 'दावत-ए-इश्क' का मजा लिया जा सकता है। 
 
बैनर : यशराज फिल्म्स
निर्माता : आदित्य चोपड़ा
निर्देशक : हबीब फैसल
संगीत : साजिद-वाजिद
कलाकार : आदित्य रॉय कपूर, परिणीति चोपड़ा, अनुपम खेर
सेंसर सर्टिफिकेट : यू * 2 घंटे 3 मिनट 6 सेकंड
रेटिंग : 3/5