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Last Modified: शुक्रवार, 13 अक्टूबर 2023 (14:25 IST)

'तुम्बाड' एक्टर सोहम शाह को लगता है हॉरर फिल्मों से डर, वेबदुनिया संग बातचीत में किया खुलासा

'तुम्बाड' एक्टर सोहम शाह को लगता है हॉरर फिल्मों से डर, वेबदुनिया संग बातचीत में किया खुलासा | Tumbbad actor Sohum Shah feels scared of horror films
Tumbbad actor sohum shah Interview: कई राष्ट्रीय और कई अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार जीतने वाली फिल्म 'तुम्बाड' की रिलीज को 5 साल पूरे हो चुके हैं। यह फिल्म एक हॉरर फिल्म थी लेकिन इसके साथ ही इसके अभिनय और इसकी सिनेमैटोग्राफी ने लोगों को इतना प्रभावित किया कि 5 साल हो जाने के बाद भी इस फिल्म के नाम से लोगों को हर सीन याद आ जाता है। देखा जाए तो एक संपूर्ण एंटरटेनमेंट से भरी हुई तकनीकी तौर पर बेहतरीन फिल्म का नाम है 'तुम्बाड़'। ऐसे में 5 साल पूरे हो जाने पर फिल्म के अभिनेता सोहम शाह से वेबदुनिया ने बातचीत की।
 
अभिनेता सोहम शाह बड़ी खुशी से अपने अनुभव साझा करते हुए बताते हैं कि जब हम यह फिल्म बना रहे थे तो हमें तो लगा कि यह फिल्म जिंदगी भर तक चलती रहेगी। कभी खत्म नहीं होगी। 2012 इस साल में हमने फिल्म की शुरुआत की और फिर मुझे याद है आखिरी के 3 या 4 साल तो हमारी यह हालत हो गई थी कि हमें लगा कि बाप रे अब तो यह फिल्म कभी नहीं खत्म होने वाली है। 
 
ऑफिस में सिर्फ चार लोग हुआ करते थे एक क्रिएटिव डायरेक्टर, एक एडिटर और एक प्रोडक्शन सुपरवाइजर हम चारों उम्मीद हारने लगते थे। सोचते थे कब फिल्म खत्म होगी। कभी वीएफएक्स कभी एडिटिंगतो कभी कुछ और परेशानी। अब देखता हूं तो लगता है यह फिल्म रिलीज हुए 5 साल भी हो गए फिल्म बनाने के साथ साल 70 सालों के बराबर और रिलीज होने के बाद के 5 साल 5 मिनट के बराबर। लेकिन फिर भी एक शांति होती है दिल को कि चलिए फिल्म रिलीज हुई लोगों के सामने आइ और इसे बहुत सारा प्यार मिला।
 
क्योंकि थोड़ा समय हो गया है। क्या आपको आज भी तुम्बाड के तारीफ करते हैं?
बिल्कुल बिल्कुल बिल्कुल, कितनी बार यह होता है कि जब मैं सोशल मीडिया पर कुछ लिख रहा होता हूं तो पढ़ने वाले को कोई फर्क ही नहीं पड़ता है कि मैं किस विषय के बारे में लिख रहा हूं। या क्या बात कर रहा हूं सवाल सिर्फ है आपकी तुम्बाड 2 कब आ रही है। अच्छा लगता है जब लोग मुझे तुम्बाड बॉय के नाम से पुकारते हैं।
 
तुम्बाड की फोटोग्राफी और लाइटिंग इफेक्ट भी लोगों को बहुत पसंद आया। वह सिनेमैटोग्राफी लोगों के मन को भाई है। आपका क्या मत है जब आपने पहली बार देखा फिल्म को बैठकर तब आपके दिल में क्या मत था।
मैं तो कोई ट्रेन्ड डॉक्टर हूं नहीं। एक्टिंग करना पसंद आता था, इसलिए मैं एक्टर बना। जब आप मुझसे पूछेंगे तकनीकी तौर पर तो मुझे बहुत ज्यादा समझ में नहीं आता है लेकिन क्या होता है जब आप अपने साथ काम करने वाले लोगों को उस एक फिल्म के लिए पैशन के साथ काम करते देखते हैं तो आपको लगता है कि अच्छा यह कुछ ऐसा बन रहा है जो बड़े कमाल का होने वाला है अब मिसाल के तौर पर हमारे एक सीन में गहरे कुएं में शूट होना था तो इसके पहले कि मैं उतर कर देखूं और एक्टिंग करूं हैं मेरे सिनेमेटोग्राफर रस्सी पकड़कर नीचे जाते हैं। सारी अवलोकन करते हैं और बाहर आ जाते हैं। उनका जो कमिटमेंट होता है उस सीन के प्रति को देखकर समझ में आ जाता है कि यह बहुत ही सुंदर कोई काम होने वाला है। 
 
कोई भी फिल्म है तभी होती है जब लोग उससे जुड़ते हैं। आपको क्या लगता है इस फिल्म में ऐसा क्या था जो लोग जुड़े और फिल्म हिट हुई।
मैं अपनी बात बताऊं मैं एक बड़ी फैमिली से नाता रखता हूं। हम साथ साथ हैं जैसी फैमिली हमारी फैमिली है। हर जगह इमोशंस होते हैं लेकिन भारत में यह इमोशन थोड़े ज्यादा ही होते हैं तो वह माता-पिता भाई-बहन सब आपस में मिलजुल कर रहने वाले, एक दूसरे की हर बात जानने वाले, टांग खींचने वाले ऐसे परिवार से जुड़ा हुआ तो मुझे हमेशा लगता था कि फिल्म में पारिवारिक मूल्य होना ही चाहिए। कुछ इस तरीके से होना चाहिए ताकि लोग उससे जुड़ सके। 
 
आपको मजे की बात बताता हूं। इस फिल्म के हमने तीन चार अंत रखे थे। एक क्लाइमैक्स तो हमने शूट भी कर लिया था जिसमें विनायक है वह दादी बन जाता है और जो पांडुरंग है वह उसे एक बोरी में लपेटता है और दूसरी जगह ले कर जा रहा होता है बड़े से मैदान में और पीछे से भारत सरकार की गाड़ियां आ रही होती है। मैं इस अंत से बहुत खुश नहीं था। मैंने कह दिया कि आपको जितना वीएफएक्स करवाना है करवाइए जितना रीटेक करना है करवाइए जितना प्रोस्थेटिक मेकअप लगवाना है लगवाइये, लेकिन अंत यह नहीं होगा क्योंकि यह एक पारिवारिक अंत नहीं हो सकता। शायद मेरी सोच थी उस वजह से लोग भी जुड़ते गए और उनके दिल में यह फिल्म बस गई।
 
अपनी इस फिल्म के अलावा कोई डरावनी फिल्म पसंद आती है। 
मैं सच कहूं मैं एक नंबर का फट्टू इंसान हूं। मैं कभी भी हॉरर फिल्म देखना पसंद नहीं करता। एक हॉरर मैंने देखी वह वह है राज, एक फिल्म देखी थी भूत और भूत में भी मैं बीच में उठकर घर के लिए चला गया था। एक वीराना नाम की फिल्म देखी थी क्योंकि वह बड़ी फनी थी। इसलिए मुझे याद है बाकी मैं एक नंबर का डरपोक इंसान हूं। फिल्म नहीं देखता है। ऐसी कभी भी मेरी पत्नी भी जब घर कुछ दिनों के लिए बाहर जाती है तब वह मुझसे पूछती है। तुम रात में अकेले सो लोगे ना और अगर नहीं कर पाओ तो डॉमेस्टिक हेल्प को बुला लेना। वह आगे वाले रुम में सो जाएगा। 
 
मतलब अगर मैंने कोई डरावनी फिल्म देख ली तो आप मान लीजिए कि रात भर मुझे नींद नहीं आने वाली। साथ ही आनंद राय जो हमारे साथ फिल्म प्रस्तुत कर रहे थे, उनकी भी यही हालत है। उनको भी डरावनी फिल्में बिल्कुल पसंद नहीं आती। वह देखते ही नहीं। मतलब हालत तो यह थी कि हम उन्हें फिल्म दिखाना चाहते थे, लेकिन वह तैयार ही नहीं थे। भरी दोपहर में उन्हें यह फिल्म दिखाई है। उनके ऑफिस वालों ने समझाया कि आंखों के ऊपर हाथ रख लेना। हाथों के बीच में थोड़ा सा सुराख कर लेना और फिर देख लेना। उन्होंने फिल्म बड़े डरते डरते देखी, फिल्म पसंद भी आई। और फिर जा कर वो जुड़े।

आपके आगे और क्या सपने हैं? 
हम थुंबाड 2 और 3 लेकर आने वाले हैं काम भी शुरू गया है बस इंतजार कीजिए। हम ये बनाना चाहते हैं लेकिन समय लग सकता है। बस कोशिश रहेगी कि जनता की उम्मीद पर खरे उतर सकें।
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