शुक्रवार, 26 अप्रैल 2024
  • Webdunia Deals
  1. मनोरंजन
  2. बॉलीवुड
  3. आलेख
  4. Amjad Sabri, Sabri Brothers, Qawwali
Written By

अमजद साबरी : कव्वाली का रॉकस्टार

अमजद साबरी : कव्वाली का रॉकस्टार - Amjad Sabri, Sabri Brothers, Qawwali
अमजद फरीद साबरी के खून में संगीत था या यूं कहे कि उन्होंने साबरी परिवार में इसीलिए जन्म लिया ताकि वे अपनी गायकी का परचम दुनिया भर में लहराएं। अपनी कव्वालियों से वे अपने चाहने वालों को नहला रहे थे और उनके पास देने के लिए बहुत कुछ बाकी था कि उन्हें असमय ही हमसे छिन लिया गया। 
 
45 वर्षीय कव्वाल और सूफियाना संगीत की दुनिया के बड़े नाम अमजद को गोली मार दी गई। जिसने भी सुना स्तब्ध रह गया। आखिरकार एक गायक की क्या किसी से दुश्मनी हो सकती है? सभी की जुबां पर एक ही बात थी, क्यों? जांच-पड़ताल के नाटक होंगे। हो सकता है कि कसूरवार पकड़ा भी जाए, लेकिन क्या इससे नुकसान की भरपाई हो सकेगी? अमजद के अंदर मौजूद कई चीजें उनके साथ ही दफन हो जाएगी और दुनिया के सामने नहीं आएंगी। 


 
साबरी ब्रदर्स की लोकप्रियता का आलम 
अमजद के परिवार के बारे में बात की जाए तो उनके पिता गुलाम फरीद और चाचा मकबूल ने 'साबरी ब्रदर्स' के नाम से मशहूरी हासिल कर दुनिया भर में कव्वाली को पहचान दिलाई। इसी परंपरा पर अमजद भी आगे चले। साबरी ब्रदर्स ने जब भी साथ में कव्वाली गाई उन्हें खूब चर्चा मिली। उनकी लोकप्रियता और मशहूरी का यह आलम था कि महफिलों में लोग देर रात तक उनका इंतजार करते थे। सूफी कला और सूफी कविता के क्षेत्र में साबरी परिवार का अतुलनीय योगदान है। 'भर दो झोली', 'ताजदार-ए-हरम', 'मेरा कोई नहीं है तेरे सिवा' साबरी की यादगार कव्वालियों में से हैं। 
 
कव्वाली का रॉकस्टार 
23 दिसम्बर 1970 को जन्मे अमजद ने नौ वर्ष की उम्र से ही अपने पिता से संगीत सीखना शुरू कर दिया था। 12 वर्ष की उम्र में स्टेज पर अपने पिता के साथ परफॉर्म करने लगे। पिता और चाचा के नक्शेकदम पर चलते हुए उन्होंने तेजी से अपनी पहचान बना ली। गायिकी में उन्होंने आधुनिक शैली अपनाई जिस वजह से उन्हें कव्वाली का 'रॉकस्टार' भी कहा जाता था। 
 
हाल ही में अमजद को उस समय चर्चा मिली जब सलमान खान अभिनीत फिल्म 'बजरंगी भाईजान' में साबरी ब्रदर्स की कव्वाली 'भर दो झोली' को शामिल किया गया। फिल्म के लिए इसे अदनान सामी ने गाया। अमजद ने कॉपीराइट का उल्लेख करते हुए इसका विरोध किया। इस कव्वाली को उनके पिता गुलाम फरीद और चाचा मकबूल ने गाया था। 
 
अमजद आतंकियों के निशाने पर पिछले कुछ समय से थे। सुरक्षा भी मांगी थी। उन पर ईशनिंदा के आरोप लगे थे। कहा गया कि उनकी कव्वाली से धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंची है। इस मामले को गंभीरता से नही लिया गया। बेवक्त उन्हें हमसे छीन लिया गया। 
 
सुरों को बंदूक के धमाके से चुप कराने की कोशिश की गई है, लेकिन ये नापाक इरादे कभी कामयाब नहीं हो पाएंगे।