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Last Modified: मुंबई , सोमवार, 3 नवंबर 2014 (18:45 IST)

विदा... बॉलीवुड की 'महारानी' सदाशिव अमरापुरकर

विदा... बॉलीवुड की 'महारानी' सदाशिव अमरापुरकर - Actor Sadashiv Amrapurkar
-सुनील जैन
 
मुंबई। बॉलीवुड फिल्मों की 'महारानी' सदाशिव अमरापुरकर नहीं रहे। बॉलीवुड के जानेमाने अभिनेता सदाशिव अमरापुरकर का सोमवार तड़के यहां निधन हो गया। हिंदी फिल्म 'सड़क' में  लाल बड़ी बिंदी और चेहरे पर व्यंगात्मक कुटिल मुस्‍कान वाली एक निर्मम किन्नर 'महारानी' की  उनकी भूमिका आज भी दर्शकों के जहन में सिहरन जगाती है। काफी समय से फेफड़ों की बीमारी से जूझ रहे चौंसठ वर्षीय  अभिनेता पिछले कुछ दिन से इलाज के लिए मुंबई के कोकिलाबेन धीरुभाई अंबानी  अस्पताल  में भर्ती थे, जहां आज तड़के उनका निधन हुआ।
 
उनके परिवार  के  अनुसार अमरापुरकर  का अंतिम संस्कार कल उनके गृहनगर अहमदनगर में किया जाएगा। आज उनके पार्थिव शव को स्थानीय भैदास ऑडिटोरियम  में लोगों के अंतिम दर्शन के लिए रखा जाएगा। सदाशिव के परिवार में उनकी पत्नी और तीन बेटियां हैं।
 
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इस नायाब अभिनेता के निधन पर शोक व्यक्त करते हुए उन्हें एक 'प्रतिभाशाली अभिनेता' बताया। बॉलीवुड सहित उनके प्रशंसकों ने भी उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि दी है। उनकी बेटी रीमा अमरापुरकर जो खुद भी फिल्मों से जुड़ी हैं, ने कहा, पापा सब लोगों को बहुत प्रिय थे। 
 
फिल्मों में  विशेष तौर पर नकारात्मक किरदार निभाने के लिए मशहूर सदाशिव को फिल्म 'अर्धसत्य' के लिए फिल्म फेयर बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर और 'सड़क' में नकारात्मक किरदार के लिए बेस्ट एक्टर का अवॉर्ड मिला था। पर्दे पर अपने नकारात्मक किरदारों के जरिए लोगों में खौफ पैदा करने वाला यह अभिनेता असल जिंदगी में एक बेहद सज्जन किस्म का इंसान रहा, जिसका जुड़ाव विभिन्न सामाजिक गतिविधियों से बना रहा।
 
'अर्द्धसत्य', 'तेरी मेहरबानियां', 'हुकूमत', 'आखिरी रास्ता', 'खतरों के खिलाड़ी', 'सड़क', 'आंखें', 'दुश्मन', 'कुली नंबर वन' और 'हम साथ-साथ हैं' जैसी कई  हिंदी फिल्मों में काम कर चुके सदाशिव ने अपने फिल्मी करियर की शुरुआत मराठी सिनेमा से की। 
 
सदाशिव  के निधन से  मुंबई फिल्म जगत  में एक शोक  की  लहर फैल  गई। अभिनेता अमिताभ बच्चन सहित सभी की आंखें इस खबर से नम थीं। अभिनेता रजा  मुराद  के अनुसार अगर बॉलीवुड  के दस दमदार खलनायक  चरित्रों  की  बात  करें  तो  उनमें से नि:संदेह दो चरित्र सदाशिव  द्वारा निभाए होंगे। 
 
अमरापुरकर को दो बार फिल्मफेयर पुरस्कार मिला था। 1984 में उन्हें 'अर्धसत्य' में सर्वश्रेष्ठ सहायक कलाकार की भूमिका के लिए पुरस्कार से नवाजा गया, जबकि 1991 में उन्हें 'सड़क' फिल्म के लिए सर्वश्रेष्ठ खलनायक का पुरस्कार मिला था। उन्होंने आंखें इश्क, कुली नंबर 1 और गुप्त : द हिडन ट्रुथ सहित कई फिल्मों में काम किया था। बाद में उन्होंने अपना ध्यान मराठी फिल्मों पर केंद्रित कर दिया था। 
 
अमरापुरकर 2012 में आई 'बांबे टॉकीज' फिल्म में अंतिम बार दिखे थे। वे पिछले कुछ सालों से सिर्फ चुनिंदा फिल्में ही कर रहे थे और सामाजिक कार्यों में ज्यादा रुचि ले रहे थे। पिछले कुछ समय से अमरापुरकर फिल्म उद्योग से दूर ही रहे। आखिरी बार वे 2012 में फिल्म बॉम्बे टॉकीज में बड़े पर्दे पर नजर आए थे। यह फिल्म भारतीय सिनेमा के शताब्दी वर्ष का जश्न मनाने के लिए बनाई गई थी।
 
अपनी खास शैली के लिए पहचाने जाने वाले बहुमुखी प्रतिभा के धनी सदाशिव अमरापुरकर ने अपने तीन दशकों से भी लंबे करियर में चाहे खलनायक की भूमिका की हो या कोई हास्य भूमिका, दोनों में ही वे अपने अभिनय के जादू से भारतीय सिनेमा के दर्शकों का दिल जीतने में कामयाब रहे। उनके  हाव-भाव, उनकी  हंसी, उनके संवाद  उनके  अभिनय की  विशिष्टता  थी।
 
अमरापुरकर ने फिल्म सड़क में निर्मम किन्नर की एक यादगार भूमिका निभाई थी। फिल्म सड़क में इन्होंने एक किन्नर के किरदार को इतनी जीवंतता से निभाया कि इसके लिए इन्हें फिल्मफेयर अवॉर्ड से सम्मानित किया गया। इसके साथ ही वे सर्वश्रेष्ठ नकारात्मक भूमिका के लिए सम्मान पाने वाले पहले अभिनेता बन गए थे। अर्धसत्य में खलनायक और इश्क में एक स्वार्थी पिता की भूमिका को भी उन्होंने सहजता के साथ बड़े पर्दे पर जीवंत कर दिया था।
 
वर्ष 1956 में नासिक के एक ऑटो चालक के घर जन्मे अमरापुरकर का असली नाम गणेश कुमार नारवोडे था लेकिन वर्ष 1974 में उन्होंने अपना नाम सदाशिव रख लिया था। अपने परिवार और मित्रों के बीच तात्या के नाम से मशहूर अमरापुरकर का बचपन अहमदनगर में बीता। छोटी उम्र से ही अमरापुरकर को अभिनय का शौक रहा और वे अपने स्कूल-कॉलेज में विभिन्न नाटकों में हिस्सा लेते रहे।
 
अमरापुरकर एक प्रशिक्षित गायक भी थे लेकिन उन्हें बताया गया था कि मध्यम सुर के गायन के कारण वे इस क्षेत्र में ज्यादा प्रसिद्धि हासिल नहीं कर पाएंगे। इसलिए 21 साल की उम्र में सदाशिव ने थिएटर और मंच का रुख कर लिया। उन्होंने 50 से ज्यादा नाटकों में अभिनय किया और वर्ष 1979 तक वे मराठी सिनेमा में भी छोटी-मोटी भूमिकाएं निभाते रहे।
 
1981-82 में उन्होंने मराठी नाटक 'हैंडस अप' में नाटय अभिनेता अविनाश मसूरेकर और भक्ति बारवे ईनामदार के साथ काम किया। यह नाटक सुपरहिट रहा और अमरापुरकर फिल्म निर्देशक गोविंद निहलानी की नजरों में आ गए। निहलानी उस समय अपनी फिल्म 'अर्धसत्य' में प्रमुख खलनायक की भूमिका निभा सकने वाले कलाकार की तलाश में थे। फिल्म सफल रही और अमरापुरकर के अभिनय को काफी सराहना मिली। संवाद बोलने का उनका अंदाज उस दौर में हिंदी फिल्मों के खलनायकों से काफी जुदा था। 'अर्धसत्य' के बाद अमरापुरकर ने पुराना मंदिर, नासूर, मुद्दत, वीरू दादा, जवानी और फरिश्ते जैसी फिल्मों में कुछ किरदार निभाए।
 
वर्ष 1987 में अमरापुरकर धर्मेंद्र अभिनीत फिल्म हुकूमत में मुख्य खलनायक की भूमिका में आए। यह फिल्म एक ब्लॉकबस्टर रही, जिसने मिस्टर इंडिया से भी ज्यादा कमाई की। अमरापुरकर धर्मेंद्र के लिए काफी शुभ साबित हुए और उसके बाद से ये दोनों कई फिल्मों में एकसाथ नजर आए। वर्ष 1991 में आई फिल्म 'सड़क' में इन्होंने एक किन्नर के किरदार को इतनी जीवंतता से निभाया कि इसके लिए इन्हें फिल्मफेयर अवॉर्ड से सम्मानित किया। इसके साथ ही वे सर्वश्रेष्ठ नकारात्मक भूमिका के लिए सम्मान पाने वाले पहले अभिनेता बन गए थे।
 
वर्ष 2000 के बाद से वे बमुश्किल ही हिंदी फिल्मों में नजर आए। हिंदी में 300 से ज्यादा दमदार भूमिकाएं निभाने वाले अमरापुरकर ने बंगाली, उड़िया और हरियाणवी फिल्मों में भी अपना हाथ आजमाया। विदा... महारानी। खलनायकों को नायकों के समकक्ष ला खड़ा करने के लिए अमरापुरकर को हमेशा याद किया जाएगा। (वीएनआई)