-दिव्या आर्या (बीबीसी न्यूज़, इम्फाल से)
manipur violence : 2 महीने से अधिक हो गए लेकिन कुकी महिला मैरी (बदला हुआ नाम) पुलिस में शिकायत दर्ज कराने का साहस नहीं जुटा पाईं। उनकी 18 साल की बेटी को उनके घर के ठीक बाहर से किडनैप कर लिया गया। आरोप है कि उनके साथ रातभर गैंगरेप हुआ और दूसरी सुबह बुरी तरह घायल अवस्था में दरवाज़े पर छोड़ दिया गया।
जब मैं राहत शिविर के बाहर मैरी से मिली तो उन्होंने मुझे बताया कि हमलावरों ने मेरी बेटी को धमकी दी थी कि अगर उसने कुछ कहा तो उसे वे मार डालेंगे। मई में जबसे मणिपुर में मैतेई और कुकी समुदायों के बीच जातीय हिंसा भड़की है, मैरी राहत शिविर में रह रही हैं।
इस हिंसा में अब तक 130 लोगों की जान गई है और 60,000 से अधिक लोग अपने घरों से विस्थापित हो गए हैं।
लेकिन पिछले सप्ताह कुछ ऐसा हुआ, जिसने चीज़ों को बदल दिया है।
दो कुकी महिलाओं को भीड़ द्वारा निर्वस्त्र कर दौड़ाने का एक वीडियो सोशल मीडिया पर सामने आया।
इस घटना ने बड़े पैमाने पर आक्रोश को पैदा किया और चौतरफ़ा इसकी निंदा की गई। इसके बाद छह लोगों को गिरफ़्तार किया गया, जिनमें एक नाबालिग़ भी है।
इंसाफ़ की उम्मीद में मैरी ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराने का फ़ैसला किया।
वो कहती हैं कि मैंने सोचा कि अगर अभी मैंने ये नहीं किया तो मुझे दूसरा मौक़ा नहीं मिलेगा। मैं हमेशा अफसोस करूंगी कि अपनी बेटी के हमलावरों को सज़ा दिलाने की मैंने कोशिश भी नहीं की।
जब भीड़ ने घेर लिया
19 साल की चिन अभी भी डरी हुई हैं कि उनके साथ भी वैसी ही घटना घट सकती थी।
चिन बताती हैं कि वो और उनकी दोस्त नर्सिंग की पढ़ाई कर रही हैं और जिस हॉस्टल में रही थीं, वहां उन्हें कुकी होने के कारण निशाना बनाया गया और हमला किया गया।
उन्होंने बताया कि जिस कमरे में हम छिपे हुए थे, भीड़ उसका दरवाज़ा लगातार पीट रही थी और चिल्ला रही थी कि तुम्हारे आदमियों ने हमारी महिलाओं का बलात्कार किया, अब हम ऐसा ही तुम्हारे साथ करेंगे।
दंगों और हिंसा के दौरान, दूसरे समुदाय को नीचा दिखाने के लिए महिलाओं को बर्बर शारीरिक और यौन हिंसा का शिकार बनाया जाता रहा है।
ऐसा लगता है कि कुकी मर्दों द्वारा मैतेई महिला के साथ यौन उत्पीड़न की कुछ अपुष्ट ख़बरों से मैतेई पुरुषों की भीड़ चिन और उनके दोस्त के ख़िलाफ़ ग़ुस्से से भरी हुई थी।
चिन कहती हैं कि डर से मेरी हालत ख़राब थी और मैंने मां को फ़ोन कर कहा कि मुझे जान से भी मारा जा सकता है, हो सकता है कि तुमसे ये मेरी आख़िरी बातचीत हो।
इसके कुछ मिनटों में ही चिन और उनके दोस्त को खींच कर बाहर निकाला गया, सड़कों पर घसीटा गया और बेहोश होने तक पीटा गया।
वो कहती हैं कि इसी वजह से हम बच गए क्योंकि भीड़ को लगा कि हम मर गए हैं।
उनको अस्पताल में होश आया जहां बताया गया कि पुलिस ने उन्हें यहां भर्ती कराया है।
इज़्ज़त और शर्मिंदगी
राज्य में जातीय संघर्ष भड़कने के बाद से अविश्वास की दरार और चौड़ी होती गई है, लेकिन एक बात समान है और वो है महिलाओं के ख़िलाफ़ हिंसा।
अब मणिपुर में मिश्रित आबादी वाले इलाक़े नहीं बचे हैं। अधिकांश ईसाई कुकी पहाड़ियों में केंद्रित हैं और अधिकांश हिंदू मैतेई मैदानों में हैं।
सेना और राज्य पुलिस के चेक प्वाइंट के अलावा दोनों ही समुदायों ने अपने गांव की सीमा पर अस्थायी बैरिकेड लगा रखे हैं।
रात में टकराव की ख़बरें आती हैं और शाम होते ही कर्फ्यू लगा दिया जाता है। जबसे हिंसा शुरू हुई तबसे इंटरनेट बंद हुए ढाई महीने हो गए हैं।
इन सबके बीच 2 महिलाओं के वायरल वीडियो ने लोगों को एक साथ आने का एक कारण भी बना है।
इस घटना की निंदा के लिए दोनों कुकी और मैतेई महिलाओं की ओर से प्रदर्शन आयोजित किए गए हैं।
मणिपुर में पुरानी परंपरा रही है कि बराबरी की मांग वाले आंदोलनों में महिलाओं की बराबर की साझीदारी रहती है।
मीरा पैबिस (महिला मशालधारी) की सदस्य, जिन्हें इमास या मदर्स ऑफ़ मणिपुर के नाम से जाना जाता है।
मीरा पैबिस (महिला मशालधारी), जिन्हें इमास या मदर्स ऑफ़ मणिपुर के नाम से जाना जाता है, मैतेई महिलाओं का एक शक्तिशाली संगठन है, जिसने राज्य के अत्याचार और मानवाधिकार उल्लंघन के मामलों के ख़िलाफ़ मुखर आवाज उठाई है।
सिनाम सुअर्नलता लीमा नोंगपोक सेकमाई ब्लाक के गांवों में मीरा पैबिस की अगुवाई करती हैं। ये वही इलाक़ा है, जहां भीड़ के हमले का वायरल वीडियो शूट किया गया था और हमलावर भी यहीं के थे।
लीमा कहती हैं कि जैसे ही उन्होंने ये वीडियो देखा, गांव वालों ने ख़ुद ही मुख्य अभियुक्त को पुलिस के हवाले कर दिया।
इसके बाद ब्लॉक की मीरा पैबिस इकट्ठा हुईं और उसका घर जला दिया।
लीमा कहती हैं कि आग लगाना ये एक प्रतीक है कि समुदाय उन आदमियों द्वारा किए गए जघन्य अपराध की निंदा करता है और उनके कृत्य पूरे मैतेई समाज को बदनाम नहीं कर सकते।
घर जलाने के बाद अभियुक्त की पत्नी और 3 बच्चों को भी गांव से बाहर निकाल दिया गया।
एक ऐसे समाज में एक भीड़ ये सब कैसे कर सकी, जहां महिलाओं का अत्यधिक सम्मान किया जाता है?
लीमा कहती हैं कि ये उन मैतेई महिलाओं के लिए ग़म और बदले की कार्रवाई थी, जिन पर कुकी पुरुषों ने हमला किया था।
हालांकि वो निजी तौर पर इस तरह के किसी हमले के बारे में नहीं जानती हैं लेकिन यौन हिंसा की पीड़िताओं पर सामाजिक शर्म के कारण लगाई गई मैतेई महिलाओं की चुप्पी को वो ज़िम्मेदार ठहराती हैं।
जबसे हिंसा भड़की है, तबसे अबतक मैतेई महिलाओं के ख़िलाफ़ यौन हिंसा की किसी भी ख़बर से पुलिस ने इनकार किया है।
मैतेई समुदाय का प्रतिनधित्व करने वाले संगठन कोकोमी के प्रवक्ता खुरैजाम अथाउबा आरोप लगाते हैं कि 'बहुत सारे हमले हुए हैं, लेकिन उनकी ख़बर प्रकाश में नहीं आई।'
वो कहते हैं कि हमारी महिलाएं खुलेआम अपने साथ हुए अत्याचार के बारे में बातें कर या पुलिस में शिकायत दर्ज कर अपने सम्मान से समझौता नहीं करना चाहतीं।
उनके अनुसार, संघर्ष की वजह से हुई हत्याओं और विस्थापन के मुद्दे पर फोकस रहना चाहिए।
इंसाफ़
वायरल वीडियो में दिख रही एक महिला के भाई का दुख कहीं ज़्यादा भारी है।
भीड़ ने उसकी बहन को निर्वस्त्र किया और उसके साथ यौन उत्पीड़न किया, इसके बाद उनके पिता और छोटे भाई को मार डाला।
वो और उनकी मां किसी तरह बच गए क्योंकि पड़ोस के गांव में वो अपने रिश्तेदार के यहां थे और जब हिंसा शुरू हुई तो वे वहीं फंस गए थे।
उस 23 साल के नौजवान से जब भी मैं उसके रिश्तेदार के घर के छोटे से कमरे में मिली, अधिकांश समय उसका चेहरा भावशून्य था।
मैंने पूछा कि वो सरकार या पुलिस से क्या चाहते हैं?
नौजवान का जबाव था कि उस भीड़ के हर शख़्स को गिरफ़्तार करो, ख़ासकर उन्हें जिन्होंने मेरे पिता और भाई को मार डाला और दोनों समुदायों के साथ निष्पक्ष होकर बर्ताव करें।
दोनों समुदायों में जिन लोगों से हम मिले, ऐसा लगा कि केंद्र और राज्य सरकारों में उनका भरोसा कम हुआ है।
विपक्षी पार्टियों ने कार्रवाई की मांग की है, संसद की कार्रवाई को रोक दिया है और पूरे देश में प्रदर्शन रैलियों का आयोजन किया है।
राज्य के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह मैतेई समुदाय से आते हैं।
उन्होंने 'अभियुक्त के ख़िलाफ़ सख़्त से सख़्त सज़ा, जिसमें मौत की सज़ा' भी शामिल है, का वादा किया है, लेकिन जब उनसे पूछा गया कि हिंसा को ख़त्म करने में विफलता के लिए वो कब इस्तीफ़ा देंगे, उन्होंने कहा कि मैं इन सबमें नहीं पड़ना चाहता, मेरा काम है राज्य में शांति लाना और फसाद करने वालों को सज़ा दिलाना।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी मणिपुर हिंसा पर अपनी चुप्पी तब तोड़ी जब 2 महिलाओं के वीडियो ने बड़े पैमाने पर आक्रोश पैदा किया।
लेकिन लीमा के लिए, उस बयान ने उनके समुदाय की छवि ख़राब की है।
वो कहती हैं कि प्रधानमंत्री बोले, जब कुकी महिला पर हमला हुआ, उन सबके बारे में क्या जिसका हम लोग सामना कर रहे हैं, क्या हम मैतेई महिलाएं भारत की नागरिक नहीं हैं?
इस वीडियो ने मणिपुर हिंसा को सुर्खियों में ला दिया है।
ग्रेसी हाओकिप एक रिसर्च स्कॉलर हैं और निर्सिंग स्टूडेंट चिन समेत हिंसा के पीड़ितों की मदद कर रही हैं।
ग्रेसी कहती हैं कि अगर ये वीडियो नहीं सामने आता तो हमें सरकार और अन्य राजनीतिक पार्टियों की ओर से इतनी तवज्जो नहीं मिलती।
वो कहती हैं कि ये उन पीड़ितों को मदद करेगा जो अपनी ज़िंदगी को संभालने की कोशिश करते हुए आपबीती को बताने का साहस जुटाया है।
चिन ने अपने समुदाय की महिलाओं के बीच दिए अपने भाषण के बारे में मुझे बताया। उन्होंने लोगों से कहा कि उन्होंने अपने इलाक़े में एक दूसरे नर्सिंग इंस्टीट्यूट में एडमिशन ले लिया है।
वो कहती हैं कि मेरी मां ने मुझसे कहा कि ईश्वर ने किसी वजह से मुझे ज़िंदा बचाया है, इसलिए मैंने तय किया है कि मैं अपने सपने अधूरा नहीं छोड़ूंगी।(Photo Courtesy: BBC)