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Written By BBC Hindi
Last Updated : बुधवार, 15 अप्रैल 2020 (09:56 IST)

कोरोना वायरस : '1930 की महामंदी' के बाद 'ऐतिहासिक संकट' में दुनिया की अर्थव्यवस्था

कोरोना वायरस : '1930 की महामंदी' के बाद 'ऐतिहासिक संकट' में दुनिया की अर्थव्यवस्था - The world economy in historical crisis after the Great Depression of 1930
- एस. पिंग चान
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने कहा है कि दुनियाभर के देशों की अर्थव्यवस्थाओं को इतना ज़्यादा नुक़सान हो रहा है कि इस साल वैश्विक अर्थव्यवस्था में 3 फ़ीसदी की गिरावट आएगी। आईएमएफ़ ने इसे 'साल 1930 की महामंदी' के बाद के दशकों की सबसे ख़राब वैश्विक गिरावट क़रार दिया है। आईएमएफ का कहना है कि कोरोना वायरस (Corona virus) की महामारी ने दुनिया को ऐतिहासिक संकट में डाल दिया है।

संस्था ने ये भी कहा है कि कोविड-19 की महामारी लंबे समय तक बनी रही तो संकट को संभालने में सरकारों और केंद्रीय बैंकों की काबिलियत की असली परीक्षा होगी। आईएमएफ की मुख्य अर्थशास्त्री गीता गोपीनाथ ने कहा, कोरोना संकट अगले दो साल में विश्व की जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) का नौ खरब डॉलर बर्बाद कर देगा।

ऐतिहासिक लॉकडाउन
हालांकि आईएमएफ़ ने दुनिया की अर्थव्यवस्था पर जारी किए गए अपने ताज़ा 'वर्ल्ड इकॉनॉमिक आउटलुक' में ब्रिटेन, जर्मनी, जापान और अमेरिका जैसे देशों में उठाए गए 'त्वरित और ठोस उपायों' की सराहना की है।

हालांकि 'वर्ल्ड इकॉनॉमिक आउटलुक' में ये भी कहा गया है कि कोई भी देश इस नुक़सान से बच नहीं पाएगा। अगर साल 2020 की दूसरी छमाही में कोविड-19 की महामारी पर काबू पा लिया गया तो अगले साल वैश्विक विकास 5.8 फ़ीसदी की दर संभल सकता है।

गीता गोपीनाथ ने मंगलवार को कहा कि 'ऐतिहासिक लॉकडाउन' ने कोरोना संकट की वजह से 'गंभीर अनिश्चितता' का सामना कर रही सरकारों के सामने एक 'मनहूस सच्चाई' लाकर रख दी है। साल 2021 में आंशिक भरपाई की संभावना जताई गई है। लेकिन जीडीपी की दर कोरोना से पहले वाले दौर से कम ही रहेगी। साथ ही हालात किस हद तक सुधर पाएंगे, इसे लेकर भी अनिश्चितता बरकरार रहेगी। मुमकिन है कि विकास के पैमाने पर बेहद ख़राब नतीजे आएं।

अमेरिका और चीन का हाल
गीता गोपीनाथ ने कहा कि 1930 की आर्थिक महामंदी के बाद ऐसा पहली बार हो सकता है कि विकसित और विकासशील देश दोनों ही मंदी के चक्र में फंस जाएं। विकसित देशों के मामले में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने चेतावनी दी है कि इनकी अर्थव्यवस्थाएं कोरोना से पहले के दौर के उच्च स्तर को साल 2022 से पहले हासिल नहीं करने वाली हैं।

अमेरिकी अर्थव्यवस्था को इस साल 5.9 फ़ीसदी का नुक़सान उठाना पड़ सकता है। साल 1946 के बाद उसके लिए ये सबसे बड़ा नुक़सान होगा। अमेरिका में इस साल बेरोज़गारी दर 10.4 फ़ीसदी रहने की संभावना है। साल 2021 तक अमेरिकी अर्थव्यवस्था में 4.7 फ़ीसदी की दर से विकास के साथ कुछ सुधार होने की उम्मीद जताई गई है।

चीन के मामले में आईएमएफ़ का कहना है कि इस साल उसकी अर्थव्यवस्था 1.2 फ़ीसदी के साथ बढ़ सकती है। साल 1976 के बाद चीन के लिए ये सबसे धीमी विकास दर होगी। साल 1991 के बाद ऑस्ट्रेलिया को पहली बार मंदी का सामना करना पड़ सकता है।

आईएमएफ़ ने ये भी चेतावनी दी है कि अगर महामारी पर काबू पाने में बहुत वक़्त लगा और साल 2021 में कोरोना संकट वापस लौटा तो हालात बहुत ख़राब हो सकते हैं और वैश्विक जीडीपी को और आठ फ़ीसदी का नुक़सान उठाना पड़ सकता है।जो अर्थव्यवस्थाएं बहुत ज़्यादा क़र्ज़ में दबी हैं, उनके लिए हालात बिगड़ सकते हैं। ऐसे देशों को कोई क़र्ज़ नहीं देना चाहेगा और इससे उनके क़र्ज़ लेने की लागत बढ़ जाएगी।

वित्तीय संकट
लंबे समय तक लॉकडाउन रहने से आर्थिक गतिविधियां ठप पड़ गई हैं लेकिन आईएमएफ़ ने कहा है कि क्वारंटीन और सोशल डिस्टेंसिंग महत्वपूर्ण उपाय हैं।संस्था ने कहा है कि वायरस को फैलने से रोकने के लिए ये ज़रूरी क़दम हैं और इनसे हेल्थ केयर सिस्टम को संभलने का वक़्त मिला है।

महामारी के आर्थिक दुष्प्रभावों से निपटने के लिए आईएमएफ़ ने चार प्राथमिकताएं सामने रखी हैं। पहला ये कि हेल्थ केयर सिस्टम में ज़्यादा पैसा लगाया जाए, कर्मचारियों और कारोबारियों को वित्तीय मदद दी जाए, केंद्रीय बैंक अपनी मदद जारी रखें और बुरी हालत से संभलने के लिए ठोस योजना हो।

आईएमएफ़ ने दुनिया से वैक्सीन और इलाज खोजने की दिशा में मिलकर काम करने की अपील भी की है। संस्था ने कहा है कि कई विकासशील देशों को आने वाले सालों और महीनों में क़र्ज़ से राहत की ज़रूरत पड़ेगी। 
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