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Last Updated : शुक्रवार, 17 नवंबर 2017 (11:31 IST)

विदेशी धरती पर भारतीय युवक के राजा बनने के दावे का पूरा सच

विदेशी धरती पर भारतीय युवक के राजा बनने के दावे का पूरा सच - Kingdom of Dikshit
- अभिमन्यु कुमार साहा
इन दिनों एक भारतीय युवक सोशल मीडिया पर अपने एक अजीबो-ग़रीब दावे के कारण देश-दुनिया की वेबसाइट्स पर छाया हुआ है। इस युवक का नाम है सुयश दीक्षित जो इंदौर का है। सुयश ने अपने फेसबुक पोस्ट में दुनिया की एक लावारिस जगह को अपना देश बताकर खुद को उसका राजा घोषित कर दिया है।
 
सुयश ने इस जगह पर झंडे गाड़ते हुए अपनी तस्वीर शेयर की है और देश का नाम 'किंगडम ऑफ दीक्षित' बताया है। उन्होंने एक वेबसाइट भी बनाया है जिसपर विदेशी निवेश और नागरिकता के लिए आवेदन मांगे गए हैं। इस दावे के बाद क्या सुयश वास्तव में इस जगह के राजा बन गए हैं? क्या वो पहले इंसान हैं जिन्होंने इस जगह की खोज की है और उस पर अपना दावा किया है...?
 
जवाब है- नहीं। दरअसल, जिस भूभाग पर उन्होंने अपना दावा ठोका है उस जगह का नाम है बीर तवील। यह दुनिया का एक ऐसा इलाका है जिस पर कोई भी इंसान अपना दावा कर सकता है। लेकिन क्यों, इस सवाल का जवाब इसके इतिहास में छिपा है। इतिहास जानने से पहले जानिए इस इलाके के बारे में।
 
क्या है बीर तवील?
बीर तवील 2060 वर्ग किलोमीटर में फैला एक इलाका है जो मिस्र और सूडान की सीमा पर स्थित है। यह एक लावारिस इलाका है जिस पर किसी देश का दावा नहीं है। न्यूकासल यूनिवर्सिटी के सोशल ज्योग्राफी के प्रोफ़ेसर ने अपनी किताब 'अनट्रूली प्लेसेसः लॉस्ट स्पेसेस, सीक्रेट सिटीज़ एंड अदर इंस्क्रूटेबल ज्योग्राफ़ीज़' में बीर तवील पर पूरा एक चैप्टर लिखा है।
 
वो लिखते हैं कि यह पृथ्वी ग्रह पर यह एकलौती ऐसी जगह है जो इंसानों के रहने लायक तो है, लेकिन इस पर कोई देश दावा नहीं करता है। किताब के मुताबिक मिस्र और सूडान बीर तवील को इसलिए नहीं चाहते हैं क्योंकि दोनों देश इससे सटे एक बड़े भूभाग पर अपना दावा करते हैं। यह भूभाग है हलाईब। यह त्रिकोणीय इलाका है जो लाल सागर के तट पर 20,580 वर्ग किलोमीटर में बसा है।
इतिहास और लावारिस होने की कहानी
ब्रिटिश शासनकाल में दोनों देशों के बीच दो सीमाएं तय की गई थीं। पहली सीमा 1899 में और दूसरी 1902 में। प्रोफ़ेसर एलस्टेयर बोनेट ने लिखा है कि 1899 में दोनों देशों के बीच 1239 किलोमीटर लंबी सीधी सीमारेखा तय की गई थी जिसमें बीर तवील और हलाईब को अलग-अलग भूभाग बताया गया।
 
मिस्र इस सीमा संधि को स्वीकारने को तैयार था और बीर तवील को सूडान के हवाले करने को राज़ी हो गया था। जबकि आर्थिक रूप से फ़ायदे वाले हलाईब को वो अपने पास रखना चाहता था। 1902 में एक नई सीमा तय की गई जो पहले लिए गए फ़ैसले के सीधा उल्टा थी। फ़ैसले में बीर तवील को मिस्र और हलाईब को सूडान के हवाले किया गया।
 
ब्रिटिश शासकों को कहना था कि नए फ़ैसले में दोनों भूभाग को जातीय और भौगोलिक समानताओं के आधार पर बांटा गया था। मिस्र को नए फ़ैसले पर आपत्ति थी और उसने इसे स्वीकारने से मना कर दिया। सूडान ने भी हलाईब की चाहत में बीर तवील को नहीं अपनाया।
 
लावारिस होने की असली वजह
एलस्टेयर बोनेट की किताब के मुताबिक नब्बे के दशक के शुरुआती सालों में सूडान ने हलाईब में तेल तलाशने की अनुमति दी। मिस्र ने इसका विरोध किया और 1899 में हुए फ़ैसले का हवाला देते हुए इलाके पर कब्ज़ा कर लिया।
 
सूडान ने 2010 में एक नई रणनीति बनाई। उसने हलाईब में घुसने की कोशिश की और स्थानीय लोगों को सूडान के चुनावों में वोट करने को कहा। लेकिन स्थानीय अधिकारियों ने सूडान को इलाके के अंदर घुसने नहीं दिया। वर्तमान में मिस्र 1899 में हुए सीमा संबंधी फ़ैसले को मानते हुए हलाईब पर अपना दावा करता है और बीर तवील को उसने सूडान के लिए छोड़ दिया है।
 
सूडान बीर तवील को इसलिए नहीं अपनाता है क्योंकि वो अगर ऐसा करता है तो हलाईब पर उसका दावा ख़ारिज हो जाएगा और मान लिया जाएगा कि वो 1899 की संधि से संतुष्ट है।
 
क्या यहां कोई नहीं रहता?
बीर तवील रेगिस्तानी इलाका है। यहां रेत के साथ पत्थर चारों तरफ मिलते हैं। प्रो। एलस्टेयर बोनेट के मुताबिक दशकों पहले यहां की भूमि पर कृषि की संभावनाएं थीं।
 
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस अवांछित इलाके में लंबे समय तक सूखा पड़ा जिससे कृषि की जो भी संभावनाएं बची थीं वो खत्म हो चुकी हैं। कई मीडिया रिपोर्ट्स में यह भी दावा किया गया है कि बीर तवील में कोई नहीं रहता। यह पूरी तरह से ग़लत है। इलाके का उपयोग आज भी अबाब्दा और बिशारीन जनजाति के लोग करते हैं जिनका जुड़ाव मिस्र से है। यहां वे अपने पशुओं को चराते हैं, सामान ढुलाई और रेत में कैंप बनाकर रहते हैं।
 
इससे पहले किसने किया दावा
सुयश पहले व्यक्ति नहीं हैं जिन्होंने बीर तवील पर अपना दावा किया है। इससे पहले भी कई लोग और संस्थाएं ऐसे दावे कर चुकी हैं। अधिकतर दावे सोशल मीडिया और ऑनलाइन माध्यमों से किए गए हैं। लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इन दावों को संजीदगी से नहीं लिया गया है। मिस्र और सूडान भी दावों पर प्रतिक्रिया नहीं देते हैं। वो अगर प्रतिक्रिया देंगे तो वे हलाईब पर अपने दावे को कमज़ोर कर लेंगे।
 
*2010 में 14 लोगों के समूह ने इस इलाके पर अपना दावा किया। यह दावा ऑनलाइन किया गया था। नागरिकता के लिए प्रयोग के तौर पर फ़ोटो आईडी कार्ड भी जारी किए गए थे।
 
*2011 में 'दि गार्डियन' से जुड़े लेखक जैक शैंकर ने बीर तवील में अपना झंडा गाड़कर इलाके पर नियंत्रण का दावा किया था।
 
*2014 में अमेरिका के जेरेमी हेटन ने इलाके पर दावा किया था। वो अपनी सात साल की बेटी को इलाके की राजकुमारी बनाना चाहते थे।
 
*उन्होंने भी इलाके में अपना झंडा लगाया था। बीबीसी रेडियो 5 को दिए इंटरव्यू में उन्होंने कहा था, "मेरी बेटी राजकुमारी बनना चाहती है। उसका सपना पूरा हो सके, इसलिए मैंने दोनों देशों को चिट्ठी लिखी है।"
 
*इस तरह के कई दावे समय-समय पर लोग करते रहे हैं।
 
क़ानूनी प्रावधान
पटना के चाणक्या नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी में इंटरनेशनल लॉ पढ़ाने वाली सुगंधा सिन्हा ने बताया कि किसी देश पर दावा करने के लिए कई चीजें प्रमाणित करनी होती हैं, इसमें इलाके का इतिहास भी शामिल है। अगर इलाके को लेकर इतिहास में किसी तरह का विवाद रहा है तो उसे भी रेखांकित किया जाएगा। अगर कोई व्यक्ति देश बनाने का दावा करता है तो उसे इलाके के नागरिकों के बारे में बताना होगा।
 
सुगंधा आगे बताती हैं, "यह भी बताना होगा कि नागरिक दावा करने वाले व्यक्ति को अपना नेता मानते हैं या नहीं। अगर लोग वहां पहले से रह रहे हैं तो उनकी सहमति अनिवार्य है। एक देश बनाना और उसका राजा खुद को घोषित करना कोई खेल नहीं हैं।" बीर तवील को लेकर पहले के सभी दावे झंडे गाड़ने तक सीमित रह गए हैं और उसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर संजीदगी से नहीं लिया गया है। संभवतः आज भी बीर तवील मिस्र और सूडान के बीच विवादित इलाका है, जो अनसुलझा है।
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