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Last Modified: बुधवार, 17 जनवरी 2018 (11:09 IST)

ऐसी महामारी जिससे नाचते-नाचते लोग मरने लगे

ऐसी महामारी जिससे नाचते-नाचते लोग मरने लगे - dance singing epidemic in france
जॉन वॉलर ('टाइम टू डांस: टाइम टू डाई' के लेखक)
 
जुलाई, 1518, फ्रांस के स्ट्रॉसबर्ग शहर में अचानक एक महिला ने नाचना शुरू कर दिया। कई दिनों बाद भी वो महिला ऐसे ही नाचती रही। एक सप्ताह के अंदर करीब 100 और लोगों को नाचने की तलब होने लगी।
 
उस वक्त वहां के अधिकारियों को लगा कि इस बीमारी का इलाज भी दिन-रात नाचने से ही होगा। उन लोगों को एक अलग कर एक हॉल में ले जाया गया। डांस जारी रखने में मदद करने के लिए वहां बांसुरी और ड्रम बजाने वालों की व्यवस्था की गई। पेशेवर नर्तकों को पैसे दिए गए ताकि लोगों को हौंसला बना रहे।
 
लेकिन कुछ ही दिनों में कमज़ोर दिल वाले लोगों ने दम तोड़ना शुरू कर दिया। अगस्त 1518 के अंत तक करीब 400 लोग इस पागलपन का शिकार हो चुके थे। आखिरकार उन्हें ट्रकों में भरकर स्वास्थ्य केंद्र ले जाना पड़ा था। सितंबर के शुरुआत में ये बीमारी ख़त्म होनी शुरू हुई। लेकिन ये पहली बार नहीं था कि यूरोप में एक ऐसी बीमारी फैली थी।
 
धर्म के ख़िलाफ
साल 1518 से पहले 10 बार इसी तरह की महामारी फैल चुकी थी। साल 1674 में आज के बेल्जियम के कई शहर ऐसी बीमारी की चपेट में थे, लेकिन 1518 की घटना के बारे में ज़्यादा दस्तावेज़ मौजूद हैं। लेकिन यूरोप में यकीनन ही ये अपने तरह की पहली और आखिरी घटना नहीं थी। 
 
एक प्रचलित मान्यता के अनुसार ये नर्तक अर्गाट नाम का एक फंगस अपने शरीर में इंजेक्ट करते थे। लेकिन इसकी उम्मीद कम है क्योंकि अर्गाट खून का सप्लाई रोक देता है जिससे समन्वय बिठाकर नाचना मुश्किल हो जाता है। ये भी मान्यता है कि ये लोग एक विधर्मी पंथ का हिस्सा थे। लेकिन ये भी मुश्किल लगता है क्योंकि पीड़ित भी नृत्य नहीं करना चाहते थे। नर्तकियों ने भी मदद की ज़रूरत जताई थी। इसके अलावा इन लोगों को कभी धर्म के ख़िलाफ नहीं माना जाता था।
 
अवचेतन की अवस्था
कुछ लोग इन्हें एक कलेक्टिव हिस्टीरिया भी मानते हैं। ये मुमकिन है क्योंकि 1518 में स्टार्सबर्ग के ग़रीब भूख, बीमारी और आध्यात्मिक निराशा से जूझ रहे थे। मेरा मानना है कि ये नर्तक अवचेतन की अवस्था में थे, क्योंकि अगर ये नहीं होता तो वो इतनी देर तक नाच नहीं पाते।
 
ये अवस्था उन्हीं लोगों में होती है तो कि दिमागी तौर से काफी परेशान रहते हैं या फिर आध्यात्मिक तौर ध्यान की अवस्था में होते हैं। स्ट्रासबर्ग में स्थितियां कुछ ऐसी ही थीं। वहां के ग़रीब लोग दिमागी तौर पर परेशान थे, सूखे की समस्या और कई तरह के बीमारियों से जूझ रहे थे।
 
इसके अलावा हमें ये भी पता है कि वो लोग सेन वीटो नाम के एक संत पर विश्वास करते थे जो उनके दिमाग पर काबू करने की शक्ति रखता था और उनसे ऐसे नृत्य करवा सकता था।
 
धार्मिक इलाज
अभिशाप का डर भी लोगों को अवचेतन में धकेलने में कामयाब हो सकता है, और एक बार यह हो जाता है, तो लोग दिन रात नाचते रहते हैं। ये कहा जा सकता है कि ये महामारी निराशा और डर का नतीजा था।
 
माना जाता है कि ये महामारी ख़त्म होने के पीछे का कारण था कि लोगों को धार्मिक मान्यताओं से विश्वास धीरे धीरे कम होने लगा। ये कहा जा सकता है स्ट्रास्बर्ग जैसे शहर में बदलाव के लिए विरोध शुरू हुए और किसी संत के पंथ को मानने से लोगों ने इनकार कर दिया। लंबे समय के हिसाब से देखा जाए तो अलौकिक मान्यताओं से आगे बढ़कर समाज तार्किक और वैज्ञानिक आधारों को मानने लगा।
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