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Written By WD

भारतीय ज्योतिष पर क्या कहते हैं विदेशी विद्वान

भारतीय ज्योतिष पर क्या कहते हैं विदेशी विद्वान - भारतीय ज्योतिष पर क्या कहते हैं विदेशी विद्वान
ज्योतिष की प्राचीनता पर विदेशी विद्वानों के अभिमत
 
- ज्योतिषाचार्य डॉ. नेमिचन्द्रजी शास्त्री
 
भारतीय ज्योतिष को प्राचीन और मौलिक केवल भारतीय विद्वान ही सिद्ध नहीं करते, अपितु अनेक भारतीय विद्वानों ने भी इसकी प्राचीनता स्वीकार की है। यहां कुछ विद्वानों के मत प्रस्तुत है- 
 


 


 
1. अलबरूनी ने लिखा है कि 'ज्योतिष शास्त्र में हिन्दू लोग संसार की सभी जातियों से बढ़कर हैं। मैंने अनेक भाषाओं के अंकों के नाम सीखे हैं, पर किसी जाति में भी हजार से आगे की संख्या के लिए मुझे कोई नाम नहीं मिला। हिन्दुओं में 18 अंकों तक की संख्या के लिए नाम हैं जिनमें अंतिम संख्या का नाम परार्ध बताया गया है।'

2. प्रो. मैक्समूलर ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि 'भारतवासी आकाशमंडल और नक्षत्रमंडल आदि के बारे में अन्य देशों के ऋणी नहीं हैं। इन वस्तुओं के मूल आविष्कर्ता वे ही हैं।' 

3. फ्रांसीसी पर्यटक फ्राक्वीस वर्नियर भी भारतीय ज्योतिष-ज्ञान की प्रशंसा करते हुए लिखते हैं कि 'भारतीय अपनी गणना द्वारा चंद्रग्रहण और सूर्यग्रहण की बिलकुल ठीक भविष्यवाणी करते हैं। इनका ज्योतिष ज्ञान प्राचीन और मौलिक है।' 

4. फ्रांसीसी यात्री टरवीनियर ने भी भारतीय ज्योतिष की प्राचीनता और विशालता से प्रभावित होकर कहा है कि 'भारतीय ज्योतिष ज्ञान प्राचीनकाल से ही अतीव निपुण हैं।' 

5. इन्साइक्लोपीडिया ऑफ‍ ब्रिटैनिका में लिखा है‍ कि 'इसमें कोई संदेह नहीं कि हमारे (अंग्रेजी) वर्तमान अंक-क्रम की उत्पत्ति भारत से है। संभवत: खगोल-संबंधी उन सारणियों के साथ जिनको एक भारतीय राजदूत ईस्वीं सन् 773 में बगदाद में लाया, इन अंकों का प्रवेश अरब में हुआ। फिर  ईस्वीं सन् की 9वीं शती के प्रारंभिक काल में प्रसिद्ध अबुजफर मोहम्मद अल् खारिज्मी ने अरबी में उक्त क्रम का विवेचन किया और उसी समय से अरबों में उसका प्रचार बढ़ने लगा। यूरोप में शून्य सहित यह संपूर्ण अंक-क्रम ईस्वी सन् की 12वीं शती में अरबों से लिया गया और इस क्रम से बना हुआ अंकगणित 'अल गोरिट्मस' नाम से प्रसिद्ध हुआ।' 

 

 


6. कॉण्ट ऑर्मस्टर्जन ने लिखा है कि 'वेली द्वारा किए गए गणित से यह प्रतीत होता है‍ कि ईस्वीं सन् से तीन हजार वर्ष पूर्व में ही भारतीयों ने ज्योतिष शास्‍त्र और भूमितिशास्त्र में अच्छी पारदर्शिता प्राप्त कर ली थी।' 

7. कर्नल टॉड ने अपने 'राजस्थान' नामक ग्रंथ में लिखा है कि 'हम उन ज्योतिषियों को कहां पा सकते हैं जिनका ग्रहमंडल-संबंधी ज्ञान अब भी यूरोप में आश्चर्य उत्पन्न कर रहा है।

8. मिस्टर मारिया ग्राह्म की सम्मति है कि 'समस्त मानवीय परिष्कृत विज्ञानों में ज्योतिष मनुष्य को ऊंचा उठा देता है। ... इसके प्रारंभिक विकास का इतिहास संसार की मानवता के उत्थान का‍ विकास है। भारत में इसके आदिम अस्तित्व के बहुत से प्रमाण मौजूद हैं। 

9. मिस्टर सीवी क्लार्क एफजीएफ कहते हैं कि 'अभी बहुत वर्ष पीछे तक हम सुदूर स्थानों के अक्षांश (Longitude) के विषय में निश्चयात्मक रूप से ज्ञान नहीं रखते थे, किंतु प्राचीन भारतीयों ने ग्रहण-ज्ञान के समय से ही इन्हें जान लिया था। इनकी यह अक्षांस, रेखांशवाली प्रणाली वैज्ञानिक ही नहीं, अचूक है।' 

10. प्रो. विल्सन ने कहा है कि 'भारतीय ज्योतिषियों को प्राचीन खलीफों विशेषकर हारूंरशीद और अलमायन ने भलीभांति प्रोत्साहित किया। वे बगदाद आमंत्रित किए गए और वहां उनके ग्रंथों का अनुवाद हुआ।' 

11. डॉक्टर राबर्टसन का कथन है कि '12 राशियों का ज्ञान सबसे पहले भारतवासियों को ही हुआ था। भारत ने प्राचीनकाल में ज्यो‍तिर्विद्या में अच्छी उन्नति की थी।' 

12. प्रो. कोलब्रुक और बेवर साहब ने लिखा है कि 'भारत को ही सर्वप्रथम चान्द्र नक्षत्रों का ज्ञान था। चीन और अरब के ज्योतिष का विकास भारत से ही हुआ है। उनका क्रांतिमंडल हिन्दुओं का ही है। नि:संदेह उन्हीं से अरब वालों ने इसे लिया था।' 

13. विख्यात चीनी विद्वान लियांग चिचाव के शब्दों में 'वर्तमान सभ्य जातियों ने जब हाथ-पैर हिलाना भी प्रारंभ नहीं किया था, तभी हम दोनों भाइयों (चीन और भारत) ने मानव संबंधी समस्याओं को ज्योतिष जैसे विज्ञान द्वारा सुलझाना आरंभ कर दिया था।


 


 
14. प्रो. वेलस महोदय ने फ्लेफसर साहब की कुछ पंक्तियां उद्धृत की हैं जिनका आशय है कि ज्योतिष ज्ञान के बिना बीजगणित की रचना कठिन है। 

15. डी. मार्गन ने स्वीकार किया है कि 'भारतीयों का गणित और ज्योतिष यूनान के किसी भी गणित या ज्योतिष सिद्धांत की अपेक्षा महान है। इनके तत्व प्राचीन और मौलिक हैं।' 

16 . डॉ. थीबो बहुत सोच-विचार और समालोचना के अनंतर इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि 'भारत ही रेखागणित के मूल सिद्धांतों का आविष्कर्ता है। इसने नक्षत्र-विद्या में भी पुरातन काल में ही प्रवीणता प्राप्त कर ली थी, यह रेखागणित के सिद्धांतों का उपयोग इस विद्या को जानने के लिए करता था।' 

17. वर्जेस महोदय ने सूर्य सिद्धांत के अंग्रेजी अनुवाद के परिशिष्ट में अपना मत उद्धृत करते हुए बताया है कि भारत का ज्योतिष टालमी के सिद्धांतों पर आश्रित नहीं है, अपितु इसने ईस्वीं सन् के बहुत पहले ही इस विषय का पर्याप्त ज्ञान प्राप्त कर लिया था।

उपर्युक्त उद्धरणों से स्पष्ट है कि भारतीय ज्योतिष शास्त्र का उद्भव स्थान भारत ही है। इसने किसी देश से सीखकर यहां प्रचार नहीं किया है। श्री लोकमान्य तिलक ने अपनी 'ओरियन' नामक पुस्तक में बताया है कि भारत का नक्षत्र-ज्ञान, जिसका कि वेदों में वर्णन आता है, इस्वी सन् कम से कम 5 हजार वर्ष पहले का है।

भारतीय नक्षत्र विद्या में अत्यंत प्रवीण थे। अतएव बेबिलोन या यूनान अथवा ग्रीस से भारत में यह विद्या नहीं आई है। ईसा से पूर्व इस शास्त्र में आदान-प्रदान भी नहीं हूआ, किंतु ईस्वीं सन् 2-6 शती तक विदेशियों के अत्यधिक संपर्क के कारण पर्याप्त आदान-प्रदान हुआ है। पाश्चात्य सभ्यता के स्नेही कुछ समालोचक इसी काल के साहित्य को देखकर भारतीय ज्योतिष को यूनान या ग्रीस से आया बतलाते हैं। 

बेबिलोनी भाषा के कुछ शब्द ऐसे भी हैं, जो संस्कृत में ज्यों-के-त्यों पाए जाते हैं। ज्योतिषशास्त्र में इन शब्दों का प्रयोग देखकर इसे बेबिलोन से आया हुआ सिद्ध करने की असफल चेष्टा कुछ समीक्षक करते हैं, किंतु ज्योतिष के मूल बीजों और अपनी परंपरा के अवलोकन से यह स्पष्ट हो जाता है कि यह विज्ञान भारतीय ज्योतिषियों के मस्तिष्क की ही उपज है। हां, जैसे इस देश ने अरब आदि को इस विज्ञान की शिक्षा दी है, उसी प्रकार यूनान और बेबिलोन से पुराना संपर्क होने के कारण कुछ ग्रहण भी किया। पर इसका अर्थ यह कदापि नहीं है कि ये देश ही इस विज्ञान के लिए भारत के गुरु हैं।
 
जीआरके ने अपनी 'हिन्दू एस्ट्रॉनॉमी' नामक पुस्तक में बताया है कि 'भारत ने टालमी के ज्योतिष सिद्धांत का उपयोग तो कल ही किया है, किंतु प्राचीन यूनानी सिद्धांतों की परंपरा का निर्वाह ही बहुत काल तक करता रहा है। इसके मूलभूत सिद्धांत यवनों के संपर्क से ही प्रस्फुटित हुए हैं। राशियों की नामावली भी भारतीय नहीं है' आदि। गंभीरता से सोचने पर तथा इस शास्त्र के इतिहास का अवलोकन करने पर यह धारणा भ्रांत सिद्ध हो जाती है। अत: ईस्वी सन् से कम-से-कम 10 हजार वर्ष पहले भारत ने ज्योतिष विज्ञान का आविष्कार किया था।

साभार : कल्याण