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होलिका दहन : नहीं रहेगी 'भद्रा' की बाधा

होलिका दहन : नहीं रहेगी 'भद्रा' की बाधा - Holika Dahan
होलिका दहन 5 मार्च को है। इस बार होलिका दहन में भद्रा की बाधा नहीं रहेगी। भद्रा की बाधा इसलिए उत्पन्न नहीं होगी क्योंकि भद्रा 5 मार्च 2015 को सुबह 10 बजकर 29 मिनट पर समाप्त हो जाएगी ।


 
होलिका दहन का शुभ मुहूर्त शाम 6 बजकर 10 मिनट से मध्य रात्रि 11 बजे तक रहेगा। शास्त्रों में बताया है कि होलिका दहन प्रदोष व्यापिनी फाल्गुन पूर्णिमा के दिन भ्रद्रारहित काल में होलिका दहन किया जाता है। ऐसा धर्म सिंधु में निहित है।
 
यदि प्रदोष के समय भद्रा व्याप्त हो और भद्रा निशीथकाल अर्थात अर्ध रात्रि से पूर्व ही समाप्त हो रही हो तो भद्रा के पश्चात तथा आधी रात से पूर्व ही होलिका दहन किया जाना चाहिए ऐसा शास्त्रों में बताया गया है।
 
यदि भद्रा आधी रात से पहले समाप्त न हो और अगले दिन की सुबह तक व्याप्त हो और अगले दिन पूर्णिमा प्रदोषव्यापिनी भी नहीं हो तो ऐसी स्थिति में पहले दिन ही भद्रा का मुख छोड़कर प्रदोषकाल में होलिका दहन कर लेना उचित होता है।
 
भद्रा के मुख का त्याग करके निशा मुख में होली का पूजन करना शुभफलदायक सिद्ध होता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार भी पर्व-त्योहारों को मुहूर्त शुद्धि के अनुसार मनाना शुभ एवं कल्याणकारी है। विधिवत रुप से होलिका का पूजन करने के बाद होलिका का दहन किया जाता है। होलिका दहन सदैव भद्रा समय के बाद ही किया जाता है. इसलिये दहन करने से भद्रा का विचार कर लेना चाहिए।


 
ऐसा माना जाता है कि भद्रा समय में होलिका का दहन करने से क्षेत्र विशेष में अशुभ घटनाएं होने की सम्भावना बढ़ जाती है। इसके अलावा चतुर्दशी तिथि, प्रतिपदा में भी होलिका का दहन नहीं किया जाता है। सूर्यास्त से पहले कभी भी होलिका दहन नहीं करना चाहिए। होलिका दहन करने समय मुहूर्त आदि का ध्यान रखना शुभ माना जाता है
 
होलिका पूजन करने के लिए होली से आठ दिन पहले होलिका दहन वाले स्थान को गंगाजल से शुद्ध कर उसमें सूखे उपले, सूखी लकड़ी, सूखी घास को इकट्ठा कर लेते हैं । जिस दिन यह कार्य किया जाता है, उस दिन को होलाष्टक प्रारम्भ का दिन भी कहा जाता है। होली का डंडा स्थापित होने के बाद सिंध नदी व सतलज नदी के तटीय संबंधित क्षेत्र में होलिका दहन होने तक कोई शुभ कार्य संपन्न नहीं किया जाता है। अन्य क्षेत्रौ में होलाष्टक का कोई दोष नहीं लगता है ।
 
क्‍या होती है भद्रा :-  भगवान सूर्यदेव की पुत्री माना जाता है भद्रा को। इसे यमराज और शनि की सगी बहन बताया है। विष्टि नामक एक करण जब-जब आता है तब भद्रा का दोष लगता है। शास्‍त्रों में कहा गया है कि श्रावणी यानि रक्षाबंधन और फाल्‍गुनी यानि होलिका दहन नहीं करना चाहिए। ऐसा करने से हानि की आशंका रहती है।

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