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आर्थिक कारणों से मुस्लिम युवा उच्च शिक्षा से वंचित

नई दिल्ली| Naidunia| Last Modified सोमवार, 5 मार्च 2012 (08:45 IST)
एक सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार आर्थिक रूप से पिछड़ेपन के कारण छात्र उच्च शिक्षा की तरफ नहीं जा रहे हैं। उच्च शिक्षा के स्थान पर मुस्लिम युवाओं का अल्पकालिक पाठ्यक्रमों में अधिक रुझान देखा गया है।


मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने उच्च शिक्षा के प्रति मुस्लिम युवाओं के रुझान में कमी के कारणों का पता लगाने के लिए एक सर्वेक्षण कराया था जिसमें 402 छात्रों से अलग-अलग 30 प्रश्न पूछे गए थे। सर्वेक्षण में कहा गया है कि उच्च शिक्षा में मुस्लिम छात्रों की भागीदारी में कमी का कारण जल्द पैसा कमाने की मजबूरी है। इस वजह से वे पारंपरिक पारिवारिक पेशे को अपनाते हैं, ताकि अपने परिवार को सहारा दे सकें। पारिवारिक पेशे को अपनाने की प्रमुख वजह आर्थिक सुरक्षा की गारंटी है। उच्च शिक्षा में मुस्लिम युवाओं के रुझान में कमी आने, विशेष तौर पर स्नातकों की संख्या घटने का कारण पता लगाने के लिए मंत्रालय ने यह कवायद की थी। उच्च शिक्षा में मुस्लिम युवाओं की कम भागीदारी के बीच एक महत्वपूर्ण बात यह सामने आई है कि मुस्लिम छात्रों में डिप्लोमा और सर्टिफिकेट कोर्स के प्रति अधिक रुचि देखी गई है। डिप्लोमा और सर्टिफिकेट पाठ्यक्रमों में मुस्लिम छात्रों के दाखिले की दर 22.4 प्रतिशत दर्ज की गई है ,जबकि गैर मुसलमानों के दाखिले की दर 19.2 प्रतिशत रही है। सर्वेक्षण के अनुसार, मुस्लिम युवा स्कूली शिक्षा के बाद से ही पैसा कमाने की जरूरत महसूस करने लगते हैं। आर्थिक बाध्यता के कारण वे अपने पारिवारिक पेशे से जुड़ जाते हैं। सरकार ने उच्च शिक्षा में सहभागिता बढ़ाने में मदरसा स्कूली शिक्षा की भूमिका को महत्वपूर्ण बताया है। इस संबंध में मदरसा के आधुनिकीकरण को तेजी से आगे बढ़ाने और इसे किसी दूसरे माध्यमिक स्कूल के स्तर तक लाने की जरूरत भी बताई गई है।

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