चीन को चार साल में पछाड़ सकता है भारत
आर्थिक समीक्षा में अर्थव्यवस्था की गुलाबी तस्वीर पेश करते हुए अगले चार साल में चीन को पछाड़कर भारत के सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के रूप में स्थापित होने का सपना दिखाया गया है लेकिन इसमें घरेलू अर्थव्यवस्था पर राजकोषीय घाटे और महँगाई की काली छाया भी साफ दिखाई देती है।वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी द्वारा गुरुवार को लोकसभा में पेश 2009-10 की समीक्षा में कहा गया है कि भारतीय अर्थव्यवस्था हाल की विश्व व्यापी मंदी के असर से मुक्त हो कर फिर तेज गति की राह की ओर मुड़ चुकी है और अगले चार साल में भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था बन सकता है।राजकोषीय घाटे पर अंकुश लगाने के लिए प्रोत्साहन पैकेज की चरणबद्ध वापसी का सुझाव देते हुए समीक्षा में सरकारी खर्चें की समीक्षा कर उन्हें दिशा देने, अनाज, खाद और डीजल की कीमतों को बाजार पर छोड़ने तथा जरूरत मंदों की सीधे सब्सिडी देने की जरूत पर बल दिया गया है।समीक्षा में खाने-पीने की चीजों की दो अंकों में पहुँची महँगाई दर पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए सरकार के खाद्य प्रबंधन पर उँगली उठाई गई है। इसमें कहा गया है कि सरकारी गोदाम में रखे गेहूँ चावल भंडार की सुखद स्थिति को छोड़ खरीफ फसलों की विफलता का ज्यादा प्रचार होने से मुनाफाखोरी और सटटेबाजी को बढ़ावा मिला, जिससे महँगाई बढ़ गई।चीनी की कीमतों के बारे में आयातित चीनी के उठान में विलंब को सबसे बड़ी वजह बताया गया। सरकार से खाद्य पदार्थों के आपूर्ति प्रबंधन को व्यवस्थित करने पर जोर दिया गया है।समीक्षा में सरकार से समाज के वंचित तबके को विकास प्रक्रिया में बराबर का भागीदार बनाते हुए सटीक एजेंडे के साथ सरकारी कार्यक्रमों को पूरा करने और उच्च स्तर पर भ्रष्टाचार समाप्त करने तथा प्रशासनिक सुधार पर जोर दिया गया है।समीक्षा ने पिछले कुछ महीनों से अर्थव्यवस्था के सभी मोर्चें पर आते सुधार को देखते हुए कहा है कि अब प्रोत्साहन पैकेज की समीक्षा होनी चाहिए और जिन क्षेत्रों में इसकी जरूरत नहीं है, वहाँ से इसकी विदाई कर दी जानी चाहिए।इसमें कहा गया है कि सरकारी व्यय को नई दिशा दी जानी चाहिए और निवेश की कमी वाले क्षेत्रों में इसे बढ़ाया जाना चाहिए।वित्त मंत्रालय के आर्थिक सलाहकार द्वारा तैयार इस समीक्षा में वित्त मंत्री को पेट्रोलियम पदार्थों, रासायनिक खाद और अनाज पर दी जाने वाली सब्सिडी में भी कमी लाने की सलाह दी गई है।इसमें कहा गया है कि सब्सिडी का इसके लक्षित वर्ग में समुचित लाभ पहुँच रहा है या नहीं, इस पर समय समय पर सवाल उठते रहे इसलिए सरकार को सब्सिडी प्रक्रिया में बदलाव कर सीधे जरूरतमंद को सब्सिडी देनी चाहिए।संसद में आज ही पेश 13वें वित्त आयोग की रपट में भी सरकार को राजकोषीय मजबूती और कर सुधारों के क्षेत्र में जल्द कदम उठाने की सलाह दी गई है। आर्थिक समीक्षा में भी इसका उल्लेख करते हुए कहा गया है कि वित्त आयोग की रपट स्वीकार करते हुए उसकी सिफारिशों पर गौर किया जाना चाहिए हालाँकि प्रणब आयोग की सिफारिशों को मान लेने के बारे में कह चुके हैं।उद्योग जगत ने प्रोत्साहन पैकेज एक साल और जारी रखने का आग्रह किया है जबकि अर्थशास्त्रियों ने इनकी बिदाई पर जोर दिया है। शेयर बाजार ने आर्थिक समीक्षा के प्रति उदासीन रूख दिखाया। (भाषा)