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Written By भाषा
Last Modified: कानपुर , बुधवार, 30 अप्रैल 2014 (12:23 IST)

मुश्किल में मुरली मनोहर, हार का खतरा...

मुश्किल में मुरली मनोहर, हार का खतरा... -
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कानपुर। भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी ने उन्नाव, महोबा, फतेहपुर और झांसी में पार्टी के प्रत्याशियों का प्रचार किया, लेकिन उन्होंने कानपुर में डॉ. मुरली मनोहर जोशी को उनके भाग्य के भरोसे पर छोड़ दिया है। यहां तक मोदी के कानुपर देहात से लगी सीट अकबरपुर में पार्टी प्रत्याशी का प्रचार किया लेकिन जोशी के अलग से जोशी के लिए कानपुर में रैली करने की जरूरत नहीं समझी।

जब से डॉ. जोशी ने मोदी की लहर की बजाय भाजपा की लहर का बयान दिया तब से लगता है कि दोनों के बीच समीकरण भी बदल गए हैं। बयान से पहले जहां कानपुर में अकेले जोशी के पोस्टर लगे थे और उनमें भाजपा को वोट देने के लिए कहा गया था। लेकिन बाद में ऐसे पोस्टर भी लगाए गए जिनमें मोदी और जोशी को गले मिलते दिखाया गया है, लेकिन अब इसका भाजपा और डॉ. जोशी को कितना लाभ मिलता है, यह तो भविष्य में ही तय होगा। लेकिन एक बात यह है कि कानपुर में डॉ. जोशी को सीट जीतने में अकल्पनीय मुश्किलें आ रही हैं। पहली बात तो मोदी तो क्या पार्टी के अन्य बड़े नेताओं ने भी उनके पक्ष में प्रचार नहीं किया।

समाजवादी पार्टी की ओर से मुलायम, बसपा के लिए मायावती और कांग्रेस के लिए राहुल गांधी सभा कर चुके हैं, लेकिन डॉ. जोशी अपनी ही पार्टी में अछूत बन गए। जबकि उनके विरोधी श्रीप्रकाश जायसवाल के पक्ष में बहुचत सारे तर्क दिए जाते हैं। पहली बार को वे शहर के रहने वाले हैं और लगभग हर सप्ताह दिल्ली से कानपुर आते रहते हैं। जायसवाल तीन बार कानपुर से ही चुनाव जीत चुके हैं और चौथी बार फिर से जीतने के लिए कोशिश कर रहे हैं।

कैसे मांग रहे वोट डॉ. जोशी... पढ़ें अगले पेज पर....


दूसरी ओर डॉ. जोशी की कोई एक सीट तय नहीं रही है। कभी वे अल्मोड़ा से, कभी इलाहाबाद से तो कभी वाराणसी से चुनाव लड़ते रहे हैं। इसलिए शहरवासियों के लिए वे बाहरी प्रत्याशी हैं जबकि जायसवाल को पूरी तरह से कनपुरिया कह सकते हैं।

एक बात से डॉ. जोशी के स्वभाव के बारे में भी जानकारी मिलती है कि स्थानीय लोगों का कहना है कि एक उम्मीदवार (जायसवाल) लोगों से हाथ मिलाकर वोट मांग रहा है तो दूसरा हाथ हिलाकर (डॉ. जोशी)। एक ने कानपुर में विकास के काम करवाए हैं तो दूसरे के पास केवल वायदे हैं, ऐसी स्थिति में लोग किसको तरजीह देंगे, यह समझना बहुत कठिन नहीं है।

कानपुर में सबसे ज्यादा ब्राह्मण मतदाता हैं, लेकिन पिछले जितने भी चुनाव हुए हैं उनमें जातिगत समीकरणों का असर नहीं देखा गया। शहर की राजनीति भी जातिवाद से परे है, इसलिए डॉ. जोशी को राहत मिलने की कोई बात नजर नहीं आती है। जायसवाल के खिलाफ कोयला घोटाले का मामला है, लेकिन स्थानीय लोगों को इस मुद्‍दे से कोई लेना-देना नहीं है।

वे इतना चाहते हैं कि उनका सांसद उनके बीच रहे और जायसवाल इस आधार पर पूरी तरह से खरे उतरते हैं। वे हर सप्ताह दिल्ली से कानपुर आते हैं। शहर के मतदाताओं का कहना है कि यहां चुनाव कांग्रेस या भाजपा के बीच नहीं है वरन असली लड़ाई दो लोगों और उनके व्यक्तित्वों को लेकर है और इसमें जायसवाल बाजी मारते लगते हैं।