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Written By WD

84 महादेव : श्री अरुणेश्वर महादेव(76)

84 महादेव : श्री अरुणेश्वर महादेव(76) - Aruneshwar Mahadev
प्रजापिता ब्रह्मा की दो कन्या थी एक का नाम था कद्रु ओर दूसरी विनता। दोनों का विवाह कश्यप मुनि से किया गया। कश्यप मुनि भी दो पत्नी पाकर प्रसन्न थे। एक दिन दोनों ने कश्यप मुनि से वरदान प्राप्त किया। कद्रु ने सौ नाग पुत्रों की माता होने ओर विनता ने दो पुत्र जो नाग पुत्रों से भी अधिक बलवान हो, ऐसा वर प्राप्त किया। एक समय दोनों कन्याएं गर्भवती हुई। इस बीच कश्यप मुनि वन में तपस्या करने के लिए चले गए। कद्रु ने 100 नाग पुत्रों को जन्म दिया। दूसरी ओर विनता को दो अण्डे हुए, जिसे उसने एक पात्र में रख दिया। 500 वर्ष बीत जाने के बाद भी विनता को पुत्र की प्राप्ति नहीं हुई तो उसने एक अंडे को फोड़ दिया।

देखा कि उसमें  एक बालक है जिसका धड़ व सिर है परंतु पैर नहीं है। क्रोध में आकर बालक अरुण ने अपनी माता को श्राप दिया कि लोभवश पूरा निर्मित होने के पूर्व ही आपने मुझे बाहर निकाला है इसलिए मैं श्राप देता हुं कि आप दासी होगी ओर दूसरा बालक 500 वर्ष बाद उसे दासी जीवन से मुक्त कराएगा। श्राप देने के बाद बालक अरूण रूदन करने लगा कि उसने अपनी माता को श्राप दिया। उसका रूदन सुनकर नारद मुनि वहां आए और अरुण से कहा कि अरूण जो कुछ हुआ है वह परमात्मा की इच्छा से हुआ है। तुम महाकाल वन में जाओ। वहां उत्तर दिशा में स्थित शिवलिंग के दर्शन-पूजन करों। अरुण महाकाल वन में आया। शिवलिंग का पूजन किया। शिव ने उसकी आराधना से प्रसन्न होकर उसे सूर्य का सारथी बनने का वरदान दिया।

कश्यप मुनि के पुत्र अरुण के पूजन करने के कारण शिवलिंग अरुणेश्वर महादेव के नाम से विख्यात हुआ। मान्यता है कि जो भी मनुष्य अरुणेश्वर के दर्शन करता है उसके पितृ को मोक्ष की प्राप्ति होती है। इनका मंदिर रामघाट में पिशाच मुक्तेश्वर के पास राम सीढ़ी के सामने है।